Hindu Saheban Nahi Samjhe Gita Ved Puran PDF



Hindu Saheban Nahi Samjhe Gita Ved Puran PDF


हिन्दू साहेबान ! नहीं समझे गीता, वेद, पुराण | Hindu Saheban Nahi Samjhe Gita Ved Puran PDF


विश्व के सब भाईयों तथा बहनों को मेरा शत्-शत् प्रणाम। हिन्दू साहेबानों से मेरा निवेदन है कि इस पुस्तक को कृपया निष्पक्ष बुद्धि से दिल थामकर पूरा पढ़ना। हिन्दू समाज के लिए यह पुस्तक संजीवनी है तथा वरदान सिद्ध होगी। भक्तात्मा हिन्दुओं से मेरा करबद्ध निवेदन है कि इस पुस्तक के अमृतज्ञान के सत्य तथा असत्य को जानने के लिए आप गीता प्रेस गोरखपुर से प्रकाशित व मुद्रित तथा श्री जयदयाल गोयन्दका जी द्वारा अनुवादित "पदच्छेद अन्वय साधारण भाषाटीकासहित श्रीमद्भगवत गीता" साथ रखें। अजब आनंद आएगा क्योंकि इसमें अनुवादक ने शब्दों के अर्थ आमने-सामने भिन्न-भिन्न किए हैं। अन्य अनुवादकों ने ऊपर संस्कृत में मूल पाठ रखा है, नीचे केवल अनुवाद सीधा किया है। शब्दों के अर्थ भिन्न-भिन्न नहीं किए हैं। यदि मुझ पर भरोसा करो तो उस गीता की भी आवश्यकता नहीं है क्योंकि मैंने उसी पुस्तक की फोटोकॉपी लगाई हैं।

पुस्तक "हिन्दू साहेबान! नहीं समझे गीता, वेद, पुराण" का आधार सूक्ष्मवेद यानि तत्त्वज्ञान है। समझने के लिए प्रमाण वेदों, गीता, महाभारत तथा पुराणों आदि शास्त्रों से लिए हैं। सूक्ष्मवेद में कहा है कि :- ब्रह्मा, विष्णु तथा महेशा । तीनूं देव दयालु हमेशा ।। तीन लोक का राज है ब्रह्मा, विष्णु महेश ।। तीनों देवता कमल दल बसैं, ब्रह्मा, विष्णु, महेश । प्रथम इनकी बंदना, फिर सुन सतगुरू उपदेश ।।

अर्थात् सूक्ष्मवेद में अध्यात्म का सम्पूर्ण ज्ञान है। उसमें कहा है कि तीनों देवता श्री ब्रह्मा जी, श्री विष्णु जी तथा श्री शिव जी बहुत दयालु हृदय के हैं। इनकी केवल तीन लोक (स्वर्ग लोक, पाताल लोक, पृथ्वी लोक) में सत्ता है। ये तीन लोक के मालिक हैं, परंतु लोक तो बहुत सारे हैं जिनका मालिक परम अक्षर ब्रह्म है जिसकी सत्ता तीनों लोकों समेत सब पर है। मोक्ष प्राप्ति के लिए प्रथम इन तीनों देवताओं की बंदना अर्थात् मान-सम्मान यानि साधना करनी होती है। फिर सतगुरू का उपदेश सुनो जो परम अक्षर ब्रह्म की पूजा साधना बताएगा।

विश्व के मानव को सत्य ज्ञान सुनाकर सनातनी बनाना है क्योंकि पिछला इतिहास बताता है कि पहले केवल एक सनातन पंथ ही था। तत्त्वज्ञान के अभाव से हम धर्मों में बंटते चले गए जो विश्व में अशांति का कारण बना है। एक-दूसरे के जानी दुःश्मन बन गए हैं। यह बात विश्व का मानव निर्विरोध मानता है कि सबका मालिक (परमात्मा) एक है। परंतु वह कौन है? कैसा है यानि साकार है या निराकार है? मानव रूप में या अन्य रूप में? यह प्रश्न वाचक चिन्ह अभी तक लगा है।

इस पुस्तक में वह प्रश्नवाचक चिन्ह पूर्ण रूप से हटा दिया है। सत्य को ग्रहण करना, असत्य से किनारा करना, एक नेक मानव का परम कर्तव्य बनता है। इस पुस्तक में एक शब्द भी चारों वेदों व वेदों के सार रूप श्रीमद्भगवत गीता, पुराणों तथा सूक्ष्मवेद से बाहर नहीं है। सूक्ष्मवेद में बताया है कि विश्व के सभी जीवात्मा परमशांति वाले सनातन परम धाम में उस परमात्मा के पास रहते थे। 

इस विषय में गीता अध्याय 18 श्लोक 62 में कहा है कि हे भारत! तू सर्वभाव से उस परमेश्वर की शरण में जा, उसकी कृपा से ही तू परमशांति को तथा सनातन परम धाम यानि सत्यलोक को प्राप्त होगा। उस परमेश्वर का प्रमाण : गीता अध्याय 8 श्लोक 1 में अर्जुन ने प्रश्न किया कि आपने गीता अध्याय 7 श्लोक 29 में जो तत् ब्रह्म कहा है वह तत् ब्रह्म क्या है? जिसका उत्तर देते हुए गीता अध्याय 8 श्लोक 3, 8, 9, 10, गीता अध्याय 15 श्लोक 4 तथा 17 आदि में कहा है। 

जिस लोक में वह तत् ब्रह्म यानि परम अक्षर ब्रह्म (सत्यपुरुष) रहता है, उसमें परमशांति है यानि महासुख है। उस सनातन परम धाम में गए साधक फिर लौटकर संसार में नहीं आते । जीवात्मा जब से परम अक्षर ब्रह्म यानि परमेश्वर से बिछड़ी है यानि उस परमशांति वाले सनातन परम धाम से काल ब्रह्म के दुःखालय लोक में आई है, उसी समय से इसको उस सुख का अभाव खल रहा है जो परमात्मा के पास था। उस सुख की खोज में इधर-उधर भटक रही है। इस यात्रा में जैसा भी मार्गदर्शक मिला, उस पर विश्वास कर लिया क्योंकि भक्त का हृदय नम्र व श्रद्धायुक्त होता है।


BookHindu Saheban Nahi Samjhe Gita Ved Puran
AuthorKabir Printers
LanguageHindi
Pages456
Size9 MB
FilePDF
CategoryHindi Books, Hinduism
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