हम संघर्ष की तपती धरा से बचने के लिए शीतल युक्त मार्ग को चुनते हैं और यही हमें पतन के मार्ग तक पहुंचाती है।- विनायक दामोदर सावरकर
हिंदू पदपादशाही हिंदी पुस्तक पीडीएफ / Hindu Padpadshahi Hindi Book PDF
शालिवाहन संवत् १५५२ (ई.स. १६३०) में शिवाजी महाराज का जन्म हुआ। उनके जन्म के कारण इस दिन को नवयुग का प्रारंभ दिन बनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। शिवाजी महाराज के जन्म से पहले भी हिंदूवीरों ने हिंदूजाति के सम्मान की रक्षा के लिए आक्रमणकारियों के अविरत आक्रमणों का डटकर सामना करते हुए रणवेदी पर अपनी आहूति चढ़ाई थी।
उनसे पहले विजयश्री से वंचित रहे इन हुतात्माओं जैसी ही शूरता से लड़ते हुए शिवाजी महाराज ने यश और कीर्ति प्राप्त की। उन्होंने विजय की एक लहर का निर्माण किया जो आगे चलकर अधिकाधिक प्रचंड होती गई।
एक शताब्दी से भी अधिक काल तक हिंदूधर्म की विजय पताका को अपने माथे पर धारण किए यह लहर वैभव से परम वैभव की ओर तथा उपलब्धि से और बड़ी उपलब्धि की ओर बढ़ती गई।
गजनी के मोहम्मद के आक्रमण के साथ प्रारंभ हुए मुसलमानोके भारतविजय के ज्वार में पूरा भारतवर्ष जैसे डूब गया था। उस ज्वार में से जिन्होंने अपना सिर उठाकर और ऊंची स्वर में चेतावनी दी कि 'खबरदार! इसके आगे एक कदम भी बढ़ाया तो याद रखना', ऐसे पहले राष्ट्रपुरुष थे शिवाजी महाराज।
सामान्यतः यह कहा जा सकता है कि शालिवाहन संवत् १५५१ के पूर्व जब भी हिंदू और आक्रमणकारी सेनाओं का आमना-सामना हुआ, कभी हिंदुओं का नेता मृत होने के कारण, तो कभी किसी सेनापति की दगाबाजी के कारण हिंदुओं को पराजय का ही मुँह देखना पड़ा।
शिवाजी महाराज के उदय होने के पूर्व हिमालय से लेकर दक्षिण में समुद्र तक प्रत्येक युद्ध का परिणाम किसी-न-किसी कारणवश हिंदूध्वज के विरुद्ध होने का एक क्रम ही बन गया था।
महाराज दाहिर का दुर्भाग्य, जयपाल का संघर्ष तथा पृथ्वीराज का पतन उपर्युक्त कथन की पुष्टि के लिए काफी हैं। लेकिन शिवाजी महाराज के समर्थ हाथों ने अपने लोगों के इस दुर्भाग्य की रेखा को एकदम उलटी दिशा में घुमा दिया। बाद में कभी भी हिंदूध्वज को आक्रांताओं के ध्वज के सामने झुकने की नौबत नहीं आई।
इससे पहले प्रत्येक माता हिंदुओकी पराजय की प्रचलित कहानियाँ, पराजय के कारणों पर प्रकाश डालते हुए अपने बच्चों को सुनाती थी। किंतु बाद में मराठों की विजय मालिका ने इन्हीं कहानियों को विजय-गर्व के साथ सुनाने का दर्जा दिलवाया।
शिवाजी महाराज का चरित्र लिखनेवाले उनके समकालीन इतिहासकार उल्लेख करते हैं कि जैसे-जैसे वे बड़े होते गए, हिंदूजाति की राजनीतिक परतंत्रता की अवस्था से उनकी खिन्नता बढ़ती गई। मंदिरों को आक्रमणकारी अपने पैरों तले रौंद रहे हैं और अपने पुराने वैभव के अवशेषों को अपमानित कर रहे यह देखकर उनका हृदय विदीर्ण हो गया।
Book | Hindu Padpadshahi Hindi PDF |
Author | Vinayak Damodar Savarkar |
Language | Hindi |
Pages | 165 |
Size | 2 MB |
File | |
Category | Hinduism |
Download | Click on the button given below |