आयुर्वेद महोदधि हिंदी पुस्तक पीडीएफ | Ayurved Mahodadhi Hindi Book PDF Download
सुषेण नामक एक महान् वैद्य का वर्णन आदिकवि वाल्मीकि विरचित रामायण में उपलब्ध होता है। राम-रावण युद्ध में भयंकर शक्तिप्रहार से लक्ष्मण के मूर्च्छित हो जाने पर अत्यन्त व्याकुल व विषादग्रस्त हुए मर्यादापुरुषोत्तम श्रीराम को आश्वस्त करते हुए सुषेण ने लक्ष्मण की चेतना लौटाने के लिए महोदय नामक पर्वत से विशल्यकरणी, सावर्ण्यकरणी, सञ्जीवकरणी व सन्धानी नामक महौषधियाँ लाने का निर्देश दिया।
उनके निर्देश पर हनुमान त्वरित गति से औषधियाँ ले आए तथा सुषेण ने नस्य के रूप में लक्ष्मण को औषधियाँ दीं, तदनन्तर वीर लक्ष्मण तुरन्त घाव व पीड़ा से मुक्त होकर उठ खड़े हुए। किंवदन्ती के अनुसार कुछ लोगों द्वारा यह ग्रन्थ उसी वैद्यराज सुषेण द्वारा रचित माना जाता है। ग्रन्थ में उपलब्ध निम्न श्लोक द्वारा भी कुछ ऐसा ही भाव प्रकट होता है- मया सुषेणेन कृतं हिताय प्राणप्रसादं जनयेच्च शीघ्रम्। श्रीरामचन्द्रक्षितिपालकाय सुसुश्रुते वै चरके यदुक्तम्।
परन्तु वस्तुतः ऐसा नहीं है। वास्तविकता यह है कि दक्षिण भारत के एक कवित्त्वशक्ति-सम्पन्न वैद्यराज सुषेण ने यह ग्रन्थ अपने आश्रयदाता राजा रामचन्द्र के लिए बनाया था। इसमें चरक, सुश्रुत आदि के अतिरिक्त कुछ अर्वाचीन ग्रन्थों से भी सामग्री ली गई। इस प्रकार यह अर्वाचीन रचना है, परन्तु बहुत ही सुन्दर, सुललित व उपयोगी है। ग्रन्थकार के जन्मस्थान, निवासस्थान, स्थितिकाल आदि के विषय में विशेष जानकारी के लिए गवेषणा अपेक्षित है।
यद्यपि ग्रन्थारम्भ में सुषेण ने कहा है कि मेरा विषय-प्रतिपादन समस्त मुनिसम्मत है- अर्थात् प्राचीन संहिताकार मुनियों के आधार पर है, तथापि आयुर्वेद के मुनिसम्मत सिद्धान्तों को सूक्ष्म व तत्त्वदर्शिनी दृष्टि से विस्तारपूर्वक प्रस्तुत करने में सुषेण की सूझ-बूझ व सूक्ष्मेक्षिका बहुत ही अभिनन्दनीय व वन्दनीय है। इन्होंने आयुर्वेद के सिद्धान्तों का बहुत ही वैज्ञानिक, तर्कपूर्ण व सरस वर्णन किया है।
अन्नपान-विधि के प्रसंग में सकल जगत् का जीवनाधार होने से जल का ही सुषेण द्वारा सर्वप्रथम वर्णन किया गया है। वह भी इतनी सूक्ष्मेक्षिका के साथ कि उनके आयुर्वेद-विषयक अगाध ज्ञान व अद्भुत कवित्वशक्ति को देख पाठक आश्चर्यचकित हो जाता है। जल के विषय में स्वास्थ्य-सम्बन्धी दृष्टिकोण के साथ जितना सूक्ष्म व विस्तृत विवेचन इस ग्रन्थ में उपलब्ध है, वैसा अन्यत्र प्रायः दुर्लभ है।
इसी प्रकार दुग्ध आदि पदार्थों का विवेचन भी बहुत ही तथ्यपरक व विशद रूप में किया गया है। दुहने के अनन्तर दूध को शीघ्र ही न उबाला जाए तो वह किस प्रकार विकृत व घातक हो जाता है, इसका वर्णन द्रष्टव्य है- मुहूर्तपञ्चकादूर्ध्वं क्षीरं भजति विक्रियाम्। तदेव द्विगुणे काले विषवद्धन्ति मानवम्।। तस्माच्छ्रुतं चाप्यशृतं पयस्तात्कालिकं पिबेत्।
दोहन करने पर पाँच मुहूर्त के अनन्तर दूध विकृत हो जाता है। इससे दुगुने काल में तो यह इतना विकृत हो जाता है कि विषतुल्य बनकर मारक हो जाता है। इसलिए उबले या बिना उबले दूध को तत्काल ही पी लेना चाहिए, अधिक देर तक नहीं रखना चाहिए; क्योंकि देर तक रखने से दूध विकृत हो जाता है। इस प्रकार के उल्लिखित तथ्यों को देखकर आधुनिक चिकित्सा पद्धति वाले चिकित्सक भी आयुर्वेदीय चिकित्सा पद्धति के प्रति हार्दिक रूप से श्रद्धावनत होते हैं।
Book | आयुर्वेद महोदधि / Ayurved Mahodadhi |
Author | Shri Balkrishna Acharya |
Language | Hindi |
Pages | 196 |
Size | 3.8 MB |
File | |
Category | Ayurveda |
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