प्रबोध सुधाकर हिंदी पुस्तक पीडीएफ | Prabodh Sudhakar Hindi Book PDF


Prabodh Sudhakar Hindi Book PDF



प्रबोध सुधाकर हिंदी पुस्तक पीडीएफ | Prabodh Sudhakar Hindi Book PDF Download

नित्य एकरस आनन्दस्वरूप, सच्चिन्मात्र, स्वयंप्रकाश, पुरुषोत्तम, अजन्मा और ईश्वर, यदुनाथ श्रीकृष्णचन्द्रकी वन्दना करता हूँ। जिनका साक्षात् वर्णन करनेमें श्रुति भी मूकके समान मौन हो जाती है, वे (भगवान्) क्या हम मनुष्यों की वाणीके विषय हो सकते हैं ? यद्यपि भगवान् ऐसे हैं तथापि अध्यात्म शास्त्रों के सारोंसे तथा हरिचिन्तन और कीर्तनाभ्यास आदि से उनका कथन किया ही जाता है।

सम्पादन किये हुए अभ्यास, ज्ञान और भक्ति आदि नाना उपायोंसे भी बिना वैराग्यके मनुष्यको मुक्तिका अधिकार नहीं होता। वैराग्य, आत्मज्ञान और भक्ति-मुक्तिके ये तीन साधन बतलाये गये हैं, इनमें तृष्णाहीनतारूप वैराग्य ही प्रथम है। वह वितृष्णता समस्त देहधारियोंके भीतर अहंता और ममतासे छिपी हुई है। उनमेंसे अहंता देहमें होती है और ममता स्त्री-धन आदि विषयोंमें हुआ करती है।

यह देह किससे बना है और इसका विषयोंसे क्या सम्बन्ध है ?" ऐसा विचार करते रहनेसे अहंता और ममता निवृत्त हो जाती है। स्त्री और पुरुषके संयोगसे रज और वीर्यका मेल होनेपर जीव अपने कर्मानुसार गर्भमें प्रवेश करके धीरे-धीरे देह धारण करता है। फिर नौ मासतक मल-मूत्र और कफादिसे पूर्ण माताको कोखरूप बड़ी भारी कन्दरामें पड़ा हुआ यह जीव जठरानलकी ज्वालाओंसे जला करता है।

प्रसत्रके समय यदि दैववश बालक टेढ़ा हो जाता है तो उसे शस्त्रोंसे काट-काटकर अति बलपूर्वक बाहर निकाला जाता है। अपवा यदि ठीक-ठीक प्रसव भी हुआ तो जिस समय वह प्रबल प्रसुतिवायुके द्वारा संकुचित योनिछिद्रसे बाहर निकाला जाता है उस समयका क्लोश भी अकथनीय होता है। जन्मके अनन्तर भी आधि, व्याधि, वियोग, स्वजनोंकी विपत्ति, कलह और बहुत समयतक रहनेवाली दरिद्रता आदिसे जितना दुःख उठाना पड़ता है क्या उसका वर्णन किया जा सकता है ?

कर्मबन्धनसे बँधा हुआ जीव मनुष्य, पशु, पक्षी और तिर्यगादि चौरासी लाख योनियोंमें भ्रमता हुआ नाना प्रकारकी विपत्तियाँ झेलता है। उन सब योनियोंमें मनुष्य-देह सर्वश्रेष्ठ है; उस नरदेहमें भी उच्च कुलमें जन्म, अपने कुटुम्बके आचार-विचार तथा श्रुतिज्ञानको पाकर भी जिनको आत्मा और अनात्माका विवेक तथा देहकी विनाशशीलताका ज्ञान नहीं हुआ वे भले ही बड़े बुद्धिमान् हों, ऐसी स्थितिमें उनकी आयु व्यर्थ ही जाती है।


Bookप्रबोध सुधाकर / Prabodh Sudhakar
AuthorGitapress
LanguageHindi
Pages86
Size3 MB
FilePDF
CategoryHindi Books, Hinduism
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