लक्ष्य हिंदी पुस्तक पीडीएफ | Goals Hindi Book PDF

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Goals Hindi Book PDF


लक्ष्य हिंदी पुस्तक पीडीएफ / Goals Hindi Book PDF - All Chapters :


आमुख

प्रस्तावना

1. अपनी संभावना का ताला खोलें

2. अपनी जिंदगी की बागडोर थामें

3. अपने भविष्य का निर्माण करें

4. अपने जीवनमूल्यों को स्पष्ट करें

5. अपने सच्चे लक्ष्य तय करें

6. अपना प्रमुख निश्चित उद्देश्य तय करें

7. अपने विश्वासों का विश्लेषण करे

8. शुरुआत से शुरू करें

9. अपनी प्रगति मापें

10. राह की बाधाओं को हटा दें

11. अपने क्षेत्र में विशेषज्ञ बनें

12. सही लोगों से जुड़ें

13. कार्ययोजना बनाएँ

14. अपने समय का सही प्रबंधन करें

15. हर दिन अपने लक्ष्यों की समीक्षा करें

16. अपने लक्ष्यों की मानसिक तस्वीर लगातार देखें

17. अपने अतिचेतन मन को सक्रिय करें

18. हर समय लचीले रहें

19. अपनी जन्मजात रचनात्मकता का ताला खोलें

20. हर दिन कुछ करें

21. सफल होने तक जुटे रहे

समापन- आज ही कर्म करें


आमुख :

यह पुस्तक महत्वाकांक्षी लोगों के लिए है ऐसे लोगों के लिए, जो ज़्यादा तेज़ी से आगे बढ़ना चाहते हैं। अगर आप भी यही चाहते हैं, तो यह पुस्तक आप ही के लिए लिखी गई है। इसमें बताए गए विचारों पर अमल करके आप बरसों की कड़ी मेहनत से बच सकते हैं और अपने महत्वपूर्ण लक्ष्य ज़्यादा तेजी से हासिल कर सकते हैं।

मैं दो हज़ार से ज़्यादा बार श्रोताओं को संबोधित कर चुका हूँ। मैंने चौबीस देशों में तेईस हज़ार से ज़्यादा लोगों के सामने भाषण दिया है। मेरे सेमिनार और भाषणों की समयसीमा पाँच मिनट से लेकर पाँच दिन तक रही है। हर बार मैंने उस ख़ास विषय से सर्वश्रेष्ठ विचार बताने पर ध्यान केंद्रित किया है, जो मैं उस पल उस श्रोतासमूह के सामने बता सकता था। विभिन्न विषयों पर अनगिनत भाषण देने के बाद अगर मुझे कुछ कहने के लिए सिर्फ़ पाँच मिनट का वक़्त दिया जाए और सफल बनाने वाला कोई एक सबसे अचूक विचार बताने को कहा जाए, तो मैं आपसे कहूँगा, "अपने लक्ष्य तय करें, उन्हें हासिल करने की योजना बनाएँ और अपनी योजना पर हर रोज़ मेहनत करें।"

अमल करने पर यह सलाह आपकी इतनी ज़्यादा मदद करेगी, जितनी कोई दूसरी चीज़ नहीं करेगी। कई यूनिवर्सिटी ग्रेजुएट्स ने मुझे बताया है कि यह साधारण सी सलाह उनके लिए चार साल के गहन अध्ययन से ज़्यादा मूल्यवान साबित हुई है। इस विचार ने मेरी और लाखों अन्य लोगों की ज़िंदगी बदल दी है। यह आपकी भी ज़िंदगी बदल देगा।

कुछ समय पहले सफल लोगों का एक समूह शिकागो में अपने जीवन के अनुभवों को आपस में बाँटने के लिए एकत्रित हुआ। वे सभी मिलियनेअर या मल्टीमिलियनेअर थे। ज़्यादातर सफल लोगों की तरह ही वे भी ज़िंदगी में मिली सफलता और वरदानों को लेकर विनम्र व कृतज्ञ थे। जब इस बारे में बातचीत हुई कि उन्होंने जीवन में इतना कुछ कैसे हासिल किया, तो उनमें से सबसे समझदार व्यक्ति ने उठकर कहा कि उसके हिसाब से "लक्ष्य से ही सफलता मिलती है; बाकी हर चीज़ तो बस कमेंट्री है।"

आपका समय और ज़िंदगी बेशक़ीमती है। समय और ज़िंदगी की सबसे बड़ी बर्बादी यह है कि आप किसी ऐसी चीज़ को पाने में बरसों लगा दें, जिसे सिर्फ़ चंद महीनों में ही हासिल किया जा सकता था। इस पुस्तक में दी गई लक्ष्य निर्धारण और लक्ष्य प्राप्ति की व्यावहारिक, आज़माई हुई प्रक्रिया एक ऐसी ही चीज़ है। इस पर अमल करके आप कम समय में इतना ज़्यादा हासिल कर सकेंगे, जिसकी आपने कल्पना भी नहीं की होगी। आप इतनी तेज़ी से तरक्की करेंगे कि ख़ुद आप और आपके आस-पास के लोग हैरान रह जाएँगे।

सरल और आसानी से लागू होने वाली इन विधियों और तकनीकों का अनुसरण करके आप भविष्य में ग़रीबी से अमीरी तक पहुँच सकते हैं। कुंठा से संतुष्टि तक पहुँच सकते हैं। आप अपने दोस्तों और परिवार से आगे निकल सकते हैं और अपने अधिकांश परिचितों से ज़्यादा सफल हो सकते हैं।

अपने भाषणों, सेमिनारों और परामर्श के दौरान मैंने दुनिया भर के बीस लाख से भी ज़्यादा लोगों के साथ काम किया है। मैंने बार-बार पाया है कि स्पष्ट लक्ष्य होने पर सामान्य बुद्धि वाला व्यक्ति भी ऐसे जीनियस से आगे निकल जाएगा, जिसे यह मालूम ही न हो कि वह दरअसल चाहता क्या है।

मेरा व्यक्तिगत मिशन स्टेटमेंट बरसों से यही है: "लोगों को उनके लक्ष्यों तक ज़्यादा तेज़ी से पहुँचने में मदद करना।"

इस पुस्तक में हर उस चीज़ का सार है, जिसे मैंने सफलता, उपलब्धि और लक्ष्य प्राप्ति के क्षेत्रों में आज तक सीखा है। आगे के पन्नों में बताए गए स्पष्ट क़दमों का अनुसरण करके आप जीवन की अगली कतार में पहुँच जाएँगे। मेरे बच्चों के लिए यह पुस्तक एक नक़्शे और मार्गदशिका जैसी है। तुम चाहे जहाँ रहो, यह मनचाही मंज़िल तक पहुँचने पहुँचने में में तुम्हारी मदद करेगी। मेरे दोस्तों और पाठकों के लिए, इसे मैंने इसलिए लिखा, क्योंकि मैं आपको एक आज़माया हुआ सिस्टम देना चाहता हूँ, जिसका इस्तेमाल करके आप ज़िंदगी भर फ़ास्ट ट्रैक पर चल सकें।

स्वागत है! एक महान, नया और रोमांचक अभियान शुरू होने वाला है।


प्रस्तावना :

यह जीने के लिहाज़ से अद्भुत समय है। आज रचनात्मक और संकल्पवान लोगों के सामने लक्ष्य हासिल करने के जितने ज़्यादा मौक़े हैं, उतने पहले कभी नहीं रहे। हालाँकि अर्थव्यवस्था और ज़िंदगी में अल्पकालीन उतार-चढ़ाव आते रहते हैं, लेकिन इसके बावजूद हम शांति और समृद्धि के एक अभूतपूर्व युग में दाखिल हो रहे हैं।

सन् 1900 में अमेरिका में सिर्फ़ पाँच हज़ार मिलियनेअर थे। सन् 2000 में मिलियनेअरों की संख्या बढ़कर पचास लाख हो गई, जिनमें से ज़्यादातर ख़ुद अपने दम पर मिलियनेअर बने हैं - और वह भी एक ही पीढ़ी में। विशेषज्ञों का अनुमान है कि अगले दो दशकों में 20 से 30 लाख नए मिलियनेअर बन जाएँगे। आपका लक्ष्य भी उनमें से एक बनना होना चाहिए। यह पुस्तक आपको इसका तरीक़ा बताएगी।

अठारह साल की उम्र में पढ़ाई पूरी किए बिना मैंने हाई स्कूल छोड़ दिया। मैं एक छोटे से होटल में बर्तन माँजने का काम करने लगा। वहाँ से निकलकर मैं कार धोने की नौकरी करने लगा। उसके बाद फ़र्श धोने का काम करने लगा। अगले कुछ सालों तक मैं मेहनत-मज़दूरी वाले बहुत से काम करता रहा और पसीना बहाकर रोज़ी-रोटी कमाता रहा। मैंने आरा मशीनों और फ़ैक्ट्रियों में काम किया। मैंने खेतों और पशुपालन केंद्रों पर काम किया। मैंने लकड़ी के पीठों में चेन सॉ पर काम किया और लॉगिंग का मौसम ख़त्म होने पर कुएँ भी खोदे।

मैंने ऊँची इमारतों पर मज़दूर का काम किया और नॉर्थ अटलांटिक में नॉर्वे के जहाज़ पर नाविक का काम भी किया। अक्सर मैं अपनी कार या किसी सस्ते लॉज में सोता था। तेईस साल की उम्र में मैं कटाई के मौसम में घुमंतू खेतिहर मज़दूर का काम करता था, खलिहान में पुआल के ऊपर सोता था और किसान के परिवार के साथ भोजन करता था। मैं अशिक्षित और अकुशल मज़दूर था और फ़सल कटने के बाद फिर बेरोज़गार हो जाता था।

जब मुझे मेहनत-मज़दूरी का कोई काम नहीं मिला, तो मैं सेल्स लाइन में चला गया, जहाँ मुझे प्रॉडक्ट बेचने पर कमीशन मिलता था। मैं ऑफ़िस और घरों में जाकर अजनबियों को समान बेचने की कोशिश (Cold Calling) करने लगा। अक्सर मेरा लक्ष्य दिन भर में सिर्फ़ एक सामान बेचना होता था, ताकि लॉज का किराया निकल आए और उस रात सोने की जगह मिल जाए। यह ज़िंदगी की कोई बेहतरीन शुरुआत तो नहीं थी।


जिस दिन मेरी ज़िंदगी बदल गई

फिर एक दिन मैंने एक काग़ज उठाया और उस पर अपने लिए बिलकुल असंभव नज़र आने वाला लक्ष्य लिख दिया। यह लक्ष्य था, ऑफ़िस और घर-घर जाकर सामान बेचना और हर महीने 1,000 डॉलर कमाना। मैंने उस काग़ज को मोड़कर दूर रख दिया और फिर वह मुझे दोबारा कभी नहीं दिखा।

लेकिन तीस दिन बाद मेरी पूरी ज़िंदगी बदल गई। इस दौरान मैंने सामान बेचने की एक ऐसी तकनीक खोजी, जिसे आज़माने के पहले ही दिन मेरी आमदनी तीन गुनी हो गई। इस दौरान मेरी कंपनी के मालिक ने एक उद्यमी को कंपनी बेच दी, जो शहर में नया आया था। अपना लक्ष्य लिखने के ठीक तीस दिन बाद नए मालिक ने मुझे 1,000 डॉलर प्रति माह देने का प्रस्ताव रखा, ताकि मैं सेल्स कर्मचारियों का प्रमुख बन जाऊँ और बाक़ी सेल्स कर्मचारियों को भी सामान

बेचने के वे गुर सिखा सकूँ, जिनकी बदौलत मैं बाक़ी सबसे ज़्यादा सामान बेच रहा था। मैंने यह प्रस्ताव स्वीकार कर लिया और उस दिन के बाद मेरी ज़िंदगी पहले जैसी नहीं रही। अठारह महीनों के भीतर मैं वह काम छोड़कर दूसरा ज़्यादा बड़ा काम करने लगा और इसके बाद तीसरा काम। मैं सेल्समैन से सेल्स मैनेजर बन गया और मेरे अधीनस्थों की संख्या बढ़ गई। मैंने 95 लोगों की सेल्स टीम नियुक्त की और उसे सफलता के गुर सिखाए। पहले मुझे

रोज़ाना यह चिंता हुआ करती थी कि आगे खाना मिलेगा या नहीं, लेकिन अब मेरी जेब 20 डॉलर के नोटों से भरी भरी रह रहती थी।

मैं अपने सेल्स कर्मचारियों को सिखाने लगा कि वे अपने लक्ष्य कैसे लिखें और ज़्यादा असरदार ढंग से सामान कैसे बेचें। बहुत ही कम समय में उनकी आमदनी भी कई गुना हो गई। दरअसल, उनमें से कईयों की आमदनी तो दस गुना बढ़ गई। आज उनमें से कई मिलियनेअर और मल्टीमिलियनेअर हैं।

यह ग़ौर करना महत्वपूर्ण है कि पच्चीस साल की उम्र के बाद से मेरी ज़िंदगी का ग्राफ़ हमेशा ऊपर की तरफ़ ही नहीं गया है। इसमें कई उतार भी आए हैं और सफलताओं के साथ-साथ अस्थायी असफलताएँ भी मिली हैं। मैं अस्सी से ज़्यादा देशों की यात्रा कर चुका हूँ, वहाँ रह चुका हूँ या काम कर चुका हूँ। मैंने फ्रेंच, जर्मन और स्पेनिश भाषाएँ सीखी हैं और मैं बाईस अलग- अलग क्षेत्रों में काम कर चुका हूँ।

अनुभहीनता और कई बार तो निरी मूर्खता के कारण मैंने अपनी सारी दौलत गँवा दी या फिर ख़र्च कर डाली और मुझे दोबारा शुरू करना पड़ा कई मर्तबा जब भी यह होता था, तो मैं एक काग़ज लेकर बैठ जाता था और उस पर अपने नए लक्ष्य लिखने लगता था। मैं इस काम में जिन विधियों का इस्तेमाल करता था, वे आपको आगे के पन्नों में मिलेंगी। कई सालों तक लक्ष्य बनाने और उन्हें हासिल करने के बाद मैंने आख़िरकार अपनी सीखी

हुई हर चीज़ को एक सिस्टम में ढालने का फ़ैसला किया। मैंने सभी विचारों और रणनीतियों को एक जगह पर एकत्रित किया। इस तरह लक्ष्य बनाने की ऐसी विधि और प्रक्रिया विकसित हुई, जिसका एक आरंभ, मध्य, और अंत था। फिर मैं हर दिन इसका अनुसरण करने लगा।

एक साल में मेरी ज़िंदगी दोबारा बदल गई। उस साल जनवरी में मैं एक किराए के अपार्टमेंट में किराए के फ़र्नीचर के साथ रह रहा था। मुझ पर 35,000 डॉलर का कर्ज़ था और मेरे पास एक सेकंड हैंड कार थी, जिसका मैंने भुगतान नहीं किया था। दिसंबर तक मैं एक लाख डॉलर के कॉन्डोमिनियम और एक नई मर्सिडीज़ कार का मालिक बन गया था, मैंने अपने सारे कर्ज़ चुका दिए थे और मेरे ख़ाते में 50,000 डॉलर थे।

इसके बाद तो मैं सफलता को लेकर सचमुच गंभीर हो गया। मुझे एहसास हो गया कि लक्ष्य तय करने में कमाल की ताक़त होती हैं। मैंने लक्ष्य तय और हासिल करने पर सैंकड़ों-हज़ारों घंटे तक पढ़ा और शोध किया। मुझे जो भी सर्वश्रेष्ठ विचार मिले, उन्हें संशोधित करके मैंने एक पूरी प्रक्रिया में ढाला, जो बेहद कारगर और सफल थी।


यह कोई भी कर सकता है

1981 में मैं वर्कशॉप्स और सेमिनारों में अपना सिस्टम सिखाने लगा, जो अब पैंतीस देशों के बीस लाख लोगों तक पहुँच चुका है। मैंने अपने कोर्स के ऑडियो और वीडियो टेप्स बनाए, ताकि दूसरे उनका आसानी से इस्तेमाल कर सकें। अब तक हम कई भाषाओं में दुनिया के लाखों लोगों को इन सिद्धांतों का प्रशिक्षण दे चुके हैं।

मैंने पाया कि ये विचार हर जगह, हर व्यक्ति के लिए, लगभग हर देश में काम करते हैं, चाहे आपकी शिक्षा, अनुभव या पृष्ठभूमि जो भी हो।

सबसे अच्छी बात, इन विचारों की बदौलत आपकी ज़िंदगी की बागडोर आपके हाथों में आ सकती है, जैसा मैंने और दूसरे लोगों ने पाया। लक्ष्य निर्धारण के नियमित और व्यवस्थित अभ्यास की बदौलत ही हम ग़रीब से अमीरी, कुंठा से संतुष्टि, कम उपलब्धि से सफलता तक पहुँच गए। यह सिस्टम आपके लिए भी यही करेगा।

मैंने जल्द ही यह सीख लिया कि योजना न होने से तो कैसी भी योजना का होना अच्छा होता है। वैसे इस मामले में पहिए का दोबारा आविष्कार करने की क्या ज़रूरत है? लगभग सारे जवाब पहले से ही मौजूद हैं। शून्य से कैरियर शुरू करने वाले लाखों स्त्री-पुरुष इन सिद्धांतों पर अमल करके ज़बर्दस्त सफलता पा चुके हैं। और उन्होंने जो किया है, आप भी वही कर सकते हैं, बशर्ते आपको तरीक़ा मालूम चल जाए।

आगे के पन्नों में आप इक्कीस सबसे महत्वपूर्ण विचार और रणनीतियाँ सीखेंगे। इनकी बदौलत आप हर वह चीज़ हासिल कर सकते हैं, जिसे आप ज़िंदगी में हासिल करना चाहते हैं। आप पाएँगे कि आप कितना हासिल कर सकते हैं, इसकी कोई सीमा नहीं है सिवाय उन सीमाओं के, जो आप अपनी कल्पना पर लगाते हैं। और चूँकि आपकी कल्पना की कोई सीमा नहीं है। इसलिए आपके हासिल करने की भी कोई सीमा नहीं हैं। यह बहुत ही महान खोज है। आइए, शुरू करते हैं।

हज़ार मील लंबी यात्रा भी एक क़दम से ही शुरू होती है।


Goals Hindi PDF Chapter 1 - अपनी संभावना का ताला खोलें

आम इंसान की संभावना उस महासागर की तरह है, जिसमें यात्रा नहीं की गई है, उस नए महाद्वीप की तरह है, जिसे खोजा नहीं गया है। संभावनाओं की पूरी दुनिया मुक्त होने और महान काम करने के लिए मार्गदर्शन का इंतज़ार कर रही है - ब्रायन ट्रेसी

सफलता का मतलब लक्ष्य है और बाक़ी सारी चीज़ें कमेंट्री हैं। सभी सफल लोग पूरी तरह लक्ष्य केंद्रित होते हैं। वे जानते हैं कि वे क्या चाहते हैं और उसे हासिल करने के लिए वे हर दिन अपना पूरा ध्यान केंद्रित करते हैं।

लक्ष्य तय करने की आपकी क्षमता ही सफलता की सबसे प्रमुख योग्यता है। लक्ष्य आपके सकारात्मक मस्तिष्क का ताला खोलते हैं और मंज़िल तक पहुँचाने वाले मददगार विचारों तथा ऊर्जा को मुक्त करते हैं। लक्ष्यों के बिना आप बस ज़िंदगी की लहरों पर डूबते-उतराते रहते हैं, जबकि लक्ष्य होने पर आप तीर की तरह उड़कर सीधे निशाने पर पहुँच जाते हैं।

सच तो यह है कि आपमें इतनी ज़्यादा नैसर्गिक संभावना है कि उसका पूरा इस्तेमाल करने के लिए आपको शायद सौ से ज़्यादा बार जन्म लेना पड़ेगा। आपने अब तक जो भी हासिल किया है, वह आपकी सच्ची संभावना का सिर्फ़ एक छोटा सा अंश है। सफलता का एक नियम यह है : इससे कोई फ़र्क नहीं पड़ता कि आप कहाँ से आ रहे हैं; फ़र्क़ तो इस बात से पड़ता है कि आप कहाँ जा रहे हैं। और आप कहाँ जा रहे हैं, यह सिर्फ़ आप और आपके विचार ही तय करते हैं।

स्पष्ट लक्ष्य होने पर आपका आत्मविश्वास बढ़ता है, आपकी क्षमता का विकास होता है और आपकी प्रेरणा का स्तर ऊँचा होता है। जैसा कि सेल्स प्रशिक्षक टॉम हॉपकिन्स कहते हैं, "लक्ष्य उपलब्धि की अँगीठी का ईंधन हैं।"


आप अपना खुद का संसार रचते हैं

शायद मानव इतिहास की महानतम खोज यह है कि आपके मस्तिष्क में आपके जीवन के लगभग हर पहलू का निर्माण करने की शक्ति होती है। मानव निर्मित जगत में आप अपने चारों ओर जो भी चीज़ देखते हैं, वह किसी इंसान के दिमाग़ में एक विचार के रूप में आई थी और उसके बाद ही भौतिक जगत् में साकार हुई। आपके जीवन की हर चीज़ किसी विचार, इच्छा, आशा या सपने के रूप में शुरू हुई थी या तो आपके दिमाग़ में या फिर किसी और के दिमाग़ में। आपके विचार रचनात्मक होते हैं। वे आपकी दुनिया और आपके साथ होने वाली हर चीज़ को आकार देते हैं।

सभी धर्मों, सभी दर्शनों, मेटाफ़िज़िक्स, मनोविज्ञान और सफलता का महान सार यह है : आप जिसके बारे में ज़्यादातर वक़्त सोचते हैं, वही बन जाते हैं। आपका बाहरी जगत अंततः आपके आंतरिक जगत का प्रतिबिंब बन जाता है। आपको वही प्रतिबिंब दिखता है, जिसके बारे में आप ज़्यादातर समय सोचते हैं। आप जिसके बारे में भी सोचते हैं, वह लगातार आपकी ज़िंदगी में प्रकट होता है।

कई हज़ार सफल लोगों से पूछा गया कि वे ज़्यादातर समय किस चीज़ के बारे में सोचते हैं। सफल लोगों का सबसे आम जवाब यह था कि वे ज़्यादातर वक़्त अपनी मनचाही चीज़ और उसे पाने के बारे में सोचते हैं।

असफल और दुखी लोग ज़्यादातर वक़्त अनचाही चीज़ों के बारे में सोचते और बातें करते हैं। वे अपनी समस्याओं और चिंताओं के बारे में बातचीत करते हैं तथा ज़्यादातर समय दूसरों को दोष देते रहते हैं। लेकिन सफल लोग अपने विचारों और बातों को अपने सबसे प्रबल इच्छित लक्ष्यों पर केंद्रित रखते हैं। वे ज़्यादातर वक़्त उस चीज़ के बारे में सोचते और बातें करते , जिसे वे पाना चाहते हैं।

हैं स्पष्ट लक्ष्यों के बिना जीना घने कोहरे में कार चलाने जैसा है। चाहे आपकी कार कितनी ही दमदार हो, चाहे इंजीनियरिंग कितनी ही बेहतरीन हो, आप धीमे-धीमे, झिझकते हुए कार चलाएँगे और बढ़िया से बढ़िया सड़क पर भी गति नहीं पकड़ पाएँगे। लक्ष्य स्पष्ट करने से कोहरा तत्काल छँट जाता है और आपको अपनी योग्यताओं तथा ऊर्जाओं पर ध्यान केंद्रित करने और उनका इस्तेमाल करने का मौक़ा मिल जाता है। स्पष्ट लक्ष्य आपको यह सामर्थ्य देते हैं कि आप अपनी ज़िंदगी के एक्सीलरेटर को दबा दें और उस सफलता की ओर तेज़ी से बढ़ें, जिसे आप वाक़ई हासिल करना चाहते हैं।


आपका स्वचालित लक्ष्य केंद्रित कार्य

इस प्रयोग के बारे में सोचें : आप एक पत्रवाहक कबूतर (homing pigeon) को उसके बसेरे से बाहर निकालकर एक पिंजरे में रखते हैं, उस पिंजरे पर कंबल ढँककर एक बक्से में पैक कर देते हैं और फिर उस बक्से को एक बंद ट्रक में रख देते हैं। आप किसी भी दिशा में हज़ार मील दूर चले जाएँ और इसके बाद अपना ट्रक खोलें, बक्सा बाहर निकालें, कंबल हटाएँ और कबूतर को पिंजरे से बाहर निकाल दें। वह फ़ौरन हवा में उड़ जाएगा, तीन चक्कर लगाएगा और फिर बिना किसी ग़लती के एक हज़ार मील दूर स्थित अपने बसेरे की तरफ़ चल देगा। दुनिया के किसी भी अन्य प्राणी के पास यह अविश्वसनीय साइबरनेटिक, लक्ष्य-केंद्रित हुनर नहीं होता है - सिवाय इंसान के।

आपमें भी लक्ष्य हासिल करने की वही योग्यता है, जो पत्रवाहक कबूतर में है। दरअसल, आपमें एक और अद्भुत चीज़ है। जब आपका लक्ष्य बिलकुल स्पष्ट होता है, तो आपको तो यह पता करने की भी ज़रूरत नहीं है कि यह कहाँ है या इसे कैसे हासिल करना है। आप ठीक-ठीक क्या पाना चाहते हैं, बस इतना फ़ैसला भर कर लेने से ही आप बिना किसी ग़लती के अपने लक्ष्य की ओर बढ़ने लगेंगे और आपका लक्ष्य बिना किसी ग़लती के आपकी ओर बढ़ने लगेगा। बिलकुल सही समय और जगह पर आप और आपका लक्ष्य एक-दूसरे से मिल जाएँगे।

आपके मस्तिष्क की गहराई में स्थित इस अविश्वसनीय साइबरनेटिक मेकेनिज़्म की वजह से आप लगभग हमेशा अपने लक्ष्य हासिल कर लेते हैं, चाहे वे जो भी हों। अगर आपका लक्ष्य रात को घर आकर टीवी देखना है, तो आप लगभग हमेशा इसे पा लेंगे। अगर आपका लक्ष्य सेहत, ख़ुशी और दौलत से भरी अद्भुत ज़िंदगी जीना हो, तो आप इसे भी पा लेंगे। ठीक कंप्यूटर की तरह ही आपका लक्ष्य खोजने वाला मेकेनिज़्म भी अपनी तरफ़ से कोई निर्णय नहीं लेता। यह स्वचालित होता है और आपकी मनचाही चीज़ को लगातार आपकी ओर लाता है, चाहे वह जो भी हो।

प्रकृति आपके लक्ष्यों के आकार के बारे में परवाह नहीं करती। अगर आप छोटे लक्ष्य तय करते हैं, तो आपका स्वचालित लक्ष्य प्राप्ति तंत्र आपको छोटे लक्ष्य हासिल करने में समर्थ बनाएगा। अगर आप बड़े लक्ष्य तय करते हैं, तो यह नैसर्गिक क्षमता आपको बड़े लक्ष्य हासिल करने में समर्थ बनाएगी। आपके लक्ष्यों का आकार, प्रकार और विवरण पूरी तरह आप पर निर्भर करता है। इसलिए यह महत्वपूर्ण है कि आप ज़्यादातर वक़्त किस चीज़ के बारे में सोचने का चुनाव करते हैं।


लोग लक्ष्य तय क्यों नहीं करते 

यह एक अच्छा सवाल है: अगर लक्ष्य खोजना स्वचालित है, तो फिर इतने कम लोगों के पास स्पष्ट, लिखित, नापने योग्य, समयबद्ध लक्ष्य क्यों होते हैं? हर किसी के पास ऐसे लक्ष्य क्यों नहीं होते, जिनकी दिशा में वे हर दिन काम करें? यह जीवन का एक बड़ा रहस्य है। मुझे यक़ीन है कि चार कारणों से लोग अपने लक्ष्य तय नहीं करते :


वे लक्ष्यों को महत्वपूर्ण नहीं मानते 

पहली बात, ज़्यादातर लोगों को लक्ष्यों के महत्व का एहसास ही नहीं होता। अगर आप ऐसे घर में पले-बढ़े हैं, जहाँ किसी के पास लक्ष्य नहीं रहे हों या फिर ऐसे समूह में रहे हों, जहाँ लक्ष्यों पर कभी बातचीत न हुई हो या उन्हें महत्व न दिया गया हो, तो वयस्क होने के बाद भी आप लक्ष्यों की शक्ति से अनजान रह सकते हैं। आपको यह पता ही नहीं चलेगा कि लक्ष्य तय करने और हासिल करने की आपकी योग्यता आपकी ज़िंदगी पर किसी दूसरी योग्यता से ज़्यादा असर डालती है। अपने आस-पास ग़ौर से देखें। आपके कितने दोस्तों या परिजनों के पास स्पष्ट लक्ष्य हैं और वे अपने लक्ष्यों के प्रति समर्पित हैं?


वे जानते ही नहीं हैं कि लक्ष्य कैसे तय किए जाते हैं

लोगों के पास लक्ष्य न होने का दूसरा कारण यह है कि वे यह जानते ही नहीं हैं कि लक्ष्य तय कैसे किए जाते हैं। इससे भी बुरी बात, कि कई लोग सोचते हैं कि उनके पास पहले से ही लक्ष्य हैं, जबकि उनके पास दरअसल इच्छाओं या सपनों की शृंखला भर होती है, जैसे "ख़ुश रहो," या "बहुत सा पैसा बनाओ" या "अच्छा पारिवारिक जीवन जियो।"

लेकिन उन्हें लक्ष्य नहीं कहा जा सकता। ये तो सिर्फ़ फंतासियाँ हैं, जो हर एक के पास होती हैं। लक्ष्य, इच्छा से एकदम अलग होता है। यह स्पष्ट होता है, लिखित होता है और विशिष्ट होता है। इसे किसी को भी जल्दी से और आसानी से बताया जा सकता है। आप इसकी दिशा में अपनी प्रगति को नाप सकते हैं। जब आप इसे हासिल कर लेते हैं या नहीं कर पाते, तो आप यह बात जान जाते हैं।

यह संभव है कि किसी नामी यूनिवर्सिटी से बड़ी डिग्री लेने के बावजूद आपको लक्ष्य निर्धारण के बारे में एक घंटे का भी प्रशिक्षण न मिला हो। लगता है, जैसे हमारे स्कूलों और यूनिवर्सिटीज़ की शैक्षिक सामग्री तय करने वाले लोग ज़िंदगी में सफलता हासिल करने में लक्ष्य निर्धारण के महत्व को लेकर बिलकुल अंधे हैं। और ज़ाहिर है, अगर बालिग होने तक आपने लक्ष्यों के बारे में कभी सुना ही नहीं है, जैसा मेरे साथ हुआ था, तो आपको पता भी नहीं होगा कि वे आपके हर काम में कितने महत्वपूर्ण होते हैं।


वे असफलता से डरते हैं

लोगों के लक्ष्य तय न करने का तीसरा कारण है असफलता का डर। असफलता से दिल को चोट पहुँचती है। यह भावनात्मक और अक्सर आर्थिक दृष्टि से भी दुखदायी और कष्टकारी होती है। हर व्यक्ति कभी न कभी असफल हो चुका है। हर बार हम ज़्यादा सतर्क होने और भविष्य में असफलता से बचने का संकल्प करते हैं। इसके अलावा, कई लोग अचेतन रूप से ख़ुद को नुक़सान पहुँचाने वाली भारी ग़लती करते हैं: असफलता से बचने के लिए वे लक्ष्य ही तय नहीं करते। वे सफलता की अपनी संभावना से काफ़ी निचले स्तर पर ही काम करते-करते ज़िंदगी गुज़ार देते हैं।


उन्हें अस्वीकृति का डर होता है

लोगों के पास लक्ष्य न होने का चौथा कारण है अस्वीकृति (rejection) का डर। लोग इस बात से डरते हैं कि अगर उन्होंने कोई लक्ष्य तय किया और कामयाब नहीं हो पाए, तो दूसरे लोग उनकी आलोचना करेंगे या हँसी उड़ाएँगे। यह भी एक कारण है कि शुरुआत में आपको अपने लक्ष्य गोपनीय रखने चाहिए। किसी को भी न बताएँ। दूसरों को परिणाम देखने दें, उन्हें पहले से कुछ भी न बताएँ। जो वे जानते ही नहीं हैं, उससे वे आपको चोट नहीं पहुँचा सकते।


शीर्षस्थ 3 प्रतिशत लोगों में शामिल हों

मार्क मैक्कॉरमैक ने अपनी पुस्तक व्हाट दे डोन्ट टीच यू एट हार्वर्ड बिज़नेस स्कूल में 1979 और 1989 के बीच हार्वर्ड में हुए एक अध्ययन के बारे में बताया है। 1979 में हार्वर्ड के एमबीए ग्रेजुएट्स से पूछा गया, "क्या आपने अपने भविष्य के लिए स्पष्ट, लिखित लक्ष्य तय किए हैं और उन्हें हासिल करने की कोई योजना बनाई है?" पता चला कि सिर्फ 3 प्रतिशत ग्रेजुएट्स के पास लिखित लक्ष्य और योजनाएँ थीं। तेरह प्रतिशत के पास लक्ष्य तो थे, लेकिन उन्होंने लिखे नहीं थे। 84 प्रतिशत के पास स्पष्ट लक्ष्य ही नहीं थे, सिवाय इसके कि वे बिज़नेस स्कूल से जाने के बाद गर्मियों का आनंद लें।

दस साल बाद 1989 में शोधकर्ताओं ने उस क्लास के सदस्यों से दोबारा संपर्क किया। उन्होंने पाया कि जिन 13 प्रतिशत के पास अलिखित लक्ष्य थे, वे लक्ष्य न बनाने वाले 84 प्रतिशत विद्यार्थियों से औसतन दोगुना कमा रहे थे। लेकिन उन्हें सबसे आश्चर्यजनक बात तो यह थी कि हार्वर्ड छोड़ते वक़्त जिन 3 प्रतिशत ग्रेजुएट्स के पास स्पष्ट, लिखित लक्ष्य थे, वे बाक़ी सभी 97 प्रतिशत से औसतन दस गुना ज्यादा कमाई कर रहे थे। इन लोगों के मामले में इकलौता फ़र्क़ स्पष्ट लक्ष्यों का था, जो उन्होंने पढ़ाई पूरी करते वक़्त बनाए थे।


कोई साइन बोर्ड नहीं 

स्पष्टता का महत्व समझना आसान है। कल्पना करें कि आप किसी बड़े शहर के बाहरी इलाक़े में खड़े हैं और आपसे उस शहर में किसी ख़ास घर या ऑफ़िस तक गाड़ी से पहुँचने को कहा जाता है। लेकिन यहाँ एक पेंच है सड़क पर कोई साइन बोर्ड नहीं है और आपके पास शहर का नक़्शा भी नहीं है। सच तो यह है कि आपको उस घर या ऑफ़िस का सिर्फ़ बहुत सतही वर्णन ही बताया गया है। सवाल यह है, आपको क्या लगता है कि नक़्शे और साइन बोर्ड के बिना आपको शहर में वह मकान या ऑफ़िस खोजने में कितना समय लगेगा?

जवाब है, पूरी ज़िंदगी भी लग सकती है। अगर आप कभी उस मकान या ऑफ़िस को खोज लें, तो यह बहुत हद तक क़िस्मत का मामला होगा। और दुखद बात यह है कि ज़्यादातर लोग अपनी ज़िंदगी इसी तरह जीते हैं।

अधिकांश लोग ज़िंदगी भर नक़्शे और साइन बोर्ड के बिना दुनिया में निरुद्देश्य यात्रा शुरू कर देते हैं। यह जीवन में बिना लक्ष्यों और योजनाओं के काम शुरू करने जैसा है। वे बीच राह में चीज़ें सोचने के आदी होते हैं। नतीजा यह होता है कि आमतौर पर, दस-बीस साल नौकरी करने के बावजूद वे कड़के बने रहते हैं, अपनी नौकरी में दुखी नज़र आते हैं, अपने जीवनसाथी से असंतुष्ट रहते हैं और बहुत कम तरक्की कर पाते हैं। और इसके बावजूद वे हर रात घर जाकर टीवी देखते हैं और चीज़ों के बेहतर होने की उम्मीद करते हैं। लेकिन वे शायद ही कभी बेहतर होती हैं। अपने आप तो नहीं ही होतीं।


ख़ुशी के लिए लक्ष्यों की ज़रूरत होती है

अर्ल नाइटिंगेल ने एक बार लिखा था, "ख़ुशी किसी सार्थक आदर्श या लक्ष्य की क्रमिक प्राप्ति है।"

आप सच्ची ख़ुशी तभी महसूस करते हैं, जब आप किसी महत्वपूर्ण चीज़ की ओर क़दम- दर-क़दम प्रगति कर रहे होते हैं। लोगोथेरेपी के संस्थापक विक्टर फ़ैकल ने लिखा था कि इंसान की सबसे बड़ी ज़रूरत ज़िंदगी में अर्थ और उद्देश्य का एहसास होना है।

लक्ष्य आपको अर्थ और उद्देश्य दोनों का एहसास दिलाते हैं। लक्ष्य आपको दिशा का एहसास भी दिलाते हैं। अपने लक्ष्यों की ओर आगे बढ़ते वक़्त आप ज़्यादा खुश और शक्तिशाली महसूस करते हैं। आप ज़्यादा ऊर्जावान और प्रभावी महसूस करते हैं। आप ज़्यादा कार्यकुशल, योग्य और आत्मविश्वासी महसूस करते हैं। लक्ष्यों की ओर उठा हर क़दम आपके इस विश्वास को बढ़ा देता है कि आप भविष्य में ज़्यादा बड़े लक्ष्य तय कर सकते हैं और उन्हें पा भी सकते हैं।

आज जितने लोग भविष्य के बारे में चिंतित हैं और परिवर्तन से डर रहे हैं, उतने इतिहास में किसी और युग में नहीं रहे। लक्ष्य निर्धारण का एक बहुत बड़ा फ़ायदा यह है कि लक्ष्य होने पर आप जीवन में परिवर्तन की दिशा को नियंत्रित कर सकते हैं। लक्ष्य होने पर आप यह सुनिश्चित कर सकते हैं कि आपनी ज़िंदगी के ज़्यादातर परिवर्तन आप ख़ुद तय करें और वे आपकी मनचाही दिशा में हों। लक्ष्य होने पर आप हर काम को सार्थक और उद्देश्यपूर्ण बना सकते हैं।

यूनानी दार्शनिक अरस्तू की एक महत्वपूर्ण नसीहत यह थी कि इंसान एक उद्देश्यपूर्ण (teleological) प्राणी है। ग्रीक शब्द टेलियाँस का अर्थ है लक्ष्य। अरस्तू का निष्कर्ष था कि इंसान का हर काम किसी न किसी अर्थ में उद्देश्यपूर्ण होता है। आप सिर्फ तभी खुश रहते हैं, जब आप कोई ऐसा काम कर रहे हों, जो आपको मनचाही चीज़ की ओर ले जा रहा हो। तो फिर बड़ा सवाल यह है, आपके लक्ष्य क्या हैं? आप किन उद्देश्यों पर निशाना साध रहे हैं? आप दिन के अंत में कहाँ पहुँचना चाहते हैं?

स्पष्टता ही सब कुछ है

आपकी नैसर्गिक संभावना असाधारण है। आपके भीतर इसी वक़्त लगभग हर वह लक्ष्य हासिल करने की क्षमता है, जिसे आप अपने लिए तय कर लें। अपने प्रति आपकी सबसे बड़ी ज़िम्मेदारी यह है कि आप पूरी पूरी तरह स्पष्ट कर लें कि आप ठीक-ठीक क्या चाहते हैं और आप इसे सबसे अच्छी तरह कैसे हासिल कर सकते हैं। अपने सच्चे लक्ष्यों के बारे में आप जितने ज़्यादा स्पष्ट होंगे, आपके बेहतर जीवन की संभावना भी उतनी ही ज़्यादा होगी।

आपने शायद यह बात सुनी होगी कि आम इंसान सिर्फ़ अपनी 10 प्रतिशत क्षमता का ही इस्तेमाल कर पाता है। दुखद सच्चाई यह है कि स्टैनफ़ोर्ड यूनिवर्सिटी के अनुसार आम आदमी अपनी सिर्फ 2 प्रतिशत मानसिक क्षमता का ही इस्तेमाल कर पाता है। बाक़ी क्षमता रिज़र्व रहती है और बाद के किसी समय के लिए बचाकर रखी जाती है। यह ठीक वैसा ही होगा, जैसे आपके माता-पिता आपके लिए एक लाख डॉलर का ट्रस्ट फंड छोड़ जाएँ, लेकिन आप ख़र्च करने के लिए ज़िंदगी भर में सिर्फ़ 2,000 डॉलर ही निकालें। परिणाम बाक़ी 98,000 डॉलर अकाउंट की ही शोभा बढ़ाते रहे और आप उनका इस्तेमाल ही नहीं कर पाए।


ज्वलंत इच्छा विकसित करें

लक्ष्य प्राप्ति का शुरुआती बिंदु है इच्छा। अगर आप सचमुच अपने लक्ष्य हासिल करना चाहते हैं, तो आपको उनके लिए ज्वलंत इच्छा विकसित करनी होगी। जब आपकी इच्छा तीव्र होती है, तभी आपको तमाम बाधाओं से उबरने की ऊर्जा और जोश मिलता है।

अच्छी ख़बर यह है कि आप जिस चीज़ को लंबे समय तक और प्रबलता से चाहें, उसे अंततः हासिल कर सकते हैं।

महान ऑइल बिलियनेअर एच. एल. हंट से एक बार सफलता का रहस्य पूछा गया। उन्होंने जवाब दिया कि सफलता के लिए दो चीज़ों की ज़रूरत होती है और सिर्फ दो ही चीज़ों की ज़रूरत होती है। उन्होंने कहा, पहली बात, आपको यह पक्का पता होना चाहिए कि आप क्या चाहते हैं। क्योंकि ज़्यादातर लोग यह बात कभी पता कर ही नहीं पाते। दूसरी बात, आपको वह क़ीमत तय कर लेनी चाहिए, जो आप अपनी मनचाही चीज़ को पाने के लिए चुकाना चाहते हैं और फिर आपको वह क़ीमत चुकाने में जुट जाना चाहिए।


सफ़लता का कैफ़ेटेरिया मॉडल

ज़िंदगी रेस्तराँ के बजाय बफ़े या कैफ़ेटेरिया ज़्यादा है। रेस्तराँ में आप पूरा भोजन करने के बाद बिल चुकाते हैं। लेकिन बफ़े या कैफ़ेटेरिया में आप खुद परोसते हैं और भोजन का आनंद लेने से पहले ही पूरी क़ीमत चुकाते हैं। कई लोग ग़लती से यह मान बैठते हैं कि सफलता मिलने के बाद वे उसकी क़ीमत चुका देंगे। वे ज़िंदगी के स्टोव के सामने बैठकर कहते हैं, "पहले मुझे थोड़ी गर्मी दो, फिर मैं तुममें लकड़ी डालूँगा।"

जैसा कि प्रेरक वक्ता ज़िग ज़िग्लर ने एक बार कहा था, "सफलता की लिफ़्ट ख़राब हो गई है। लेकिन सीढ़ियाँ हमेशा मौजूद हैं।"

अरस्तू का एक और महत्वपूर्ण निष्कर्ष यह था कि इंसान के हर काम का अंतिम उद्देश्य व्यक्तिगत ख़ुशी पाना है। उनके अनुसार आपके हर काम का मक़सद किसी न किसी तरह अपनी खुशी बढ़ाना है। आप ख़ुशी पाने में सफल हों या असफल, ख़ुशी हमेशा आपका अंतिम लक्ष्य होती है।


ख़ुशी की कुंजी

लक्ष्य तय करना, हर दिन उनकी दिशा में काम करना और अंततः उन्हें हासिल करना ज़िंदगी में ख़ुशी की कुंजी है। लक्ष्य तय करने में इतनी शक्ति है कि उन्हें हासिल करने की दिशा में पहला क़दम उठाने से पहले ही आप रोमांचित हो उठते हैं। उनके बारे में सोचने भर से ही आप ख़ुश हो जाते हैं।

अपनी पूरी संभावना का ताला खोलने और उसे मुक्त करने के लिए आपको हर दिन लक्ष्य निर्धारण और लक्ष्य प्राप्ति की आदत डाल लेनी चाहिए ज़िंदगी भर के लिए। आपका फ़ोकस लेज़र जैसा होना चाहिए, ताकि आप अनचाही चीज़ के बजाय हमेशा मनचाही चीज़ के बारे में सोचते और बातें करते रहें। आपको इसी पल संकल्प कर लेना चाहिए कि आप लक्ष्य तक पहुँचने वाले प्राणी बनेंगे, गाइडेड मिसाइल या पत्रवाहक कबूतर बनेंगे और बिना चूके अपने महत्वपूर्ण लक्ष्यों की ओर बढ़ेंगे।

लंबे, सुखद, स्वस्थ और समृद्ध जीवन की इससे बड़ी कोई गारंटी नहीं है कि आप अपनी मनचाही चीज़ हासिल करने और मनचाहा व्यक्ति बनने पर लगातार काम करें। स्पष्ट लक्ष्य होने पर आप व्यक्तिगत और व्यावसायिक सफलता की अपनी पूरी संभावना मुक्त कर सकते हैं। लक्ष्य आपको हर बाधा पार करने और भावी उपलब्धि को असीमित बनाने में समर्थ बनाते हैं।


अपनी संभावना का ताला खोलें

1. कल्पना करें कि आप अपने लिए जो भी लक्ष्य तय करेंगे, आपमें उसे हासिल करने की जन्मजात योग्यता है। आप सचमुच क्या बनना, पाना और करना चाहते हैं?

2. वे कौन सी गतिविधियाँ हैं, जो ज़िंदगी में आपको सार्थकता और उद्देश्य का सबसे ज़्यादा एहसास दिलाती हैं?

3. आज ही अपने व्यक्तिगत और कार्य जीवन की ओर देखें और पहचानें कि आपकी सोच किस तरह आपके संसार को बनाती है। आपको क्या बदलना चाहिए या आप क्या-क्या बदल सकते हैं?

4. आप ज़्यादातर वक़्त किसके बारे में सोचते और बात करते हैं मनचाही चीज़ों के बारे में या अनचाही चीज़ों के बारें में?

5. आप अपने सबसे महत्वपूर्ण लक्ष्य हासिल करने के लिए कौन सी क़ीमत चुकाएँगे?

6. ऊपर दिए सवालों के जवाबों के आधार पर वह कौन सा एक काम है, जो आपको फ़ौरन शुरू कर देना चाहिए?


Goals Brian Tracy Hindi PDF Book Chapter 2 - अपनी जिंदगी की बागडोर थामें

सामान्य नियम यह है कि इंसान जिन चीज़ों के साथ पैदा होता है, उनका महत्व बहुत कम होता है - असल महत्वपूर्ण चीज़ें तो वे होती हैं, जिनसे वह खुद को बनाता है - अलेक्ज़ेंडर ग्राहम बेल

इक्कीस साल की उम्र में मैं कड़का था। मैं कँपकँपाती ठंड में एक कमरे के छोटे से अपार्टमेंट में रहता था और दिन में इमारत बनाने वाले मज़दूर का काम करता था। रात को मैं आम तौर पर अपने अपार्टमेंट से बाहर नहीं निकलता था, क्योंकि भीतर कम से कम थोड़ी गर्मी तो रहती थी। इस वजह से मेरे पास सोचने के लिए ढेर सारा वक़्त रहता था।

एक रात किचन की छोटी सी टेबल पर बैठे-बैठे मेरे दिमाग़ में जागरुकता की एक कौंध आई। इसने मेरी ज़िंदगी बदल दी। अचानक मुझे एहसास हुआ कि आगे की ज़िंदगी में मेरे साथ जो भी चीज़ होगी, वह मुझ पर ही निर्भर करती है। कोई भी मेरी मदद नहीं करेगा। कोई भी मुझे बचाने नहीं आएगा।

मैं घर से हज़ारों मील दूर था और काफ़ी समय पहले ही कभी वापस न लौटने का फ़ैसला कर चुका था। उस पल मैंने साफ़-साफ़ देख लिया कि अगर मेरी ज़िंदगी में किसी चीज़ को बदलना था, तो यह मुझ पर ही निर्भर करता है। अगर मैं इसे नहीं बदलूँगा, तो कोई भी नहीं बदलेगा। इसके लिए मैं ही ज़िम्मेदार था।


महान खोज

मुझे अब भी वह पल याद है। यह पहले पैराशूट जंप की तरह था डरावना भी और उल्लासपूर्ण भी। मैं ज़िंदगी की सरहद पर खड़ा हुआ था। और मैंने कूदने का फ़ैसला कर लिया। उस पल से मैंने स्वीकार कर लिया कि अपनी ज़िंदगी के लिए मैं ही ज़िम्मेदार हूँ। मैं जान गया कि अगर मैं अपनी स्थिति को बदलना चाहता हूँ, तो मुझे अलग बनना होगा। हर चीज़ मुझ पर निर्भर करती थी।

बाद में मैंने सीखा कि जब आप अपनी ज़िंदगी की पूरी ज़िम्मेदारी स्वीकार कर लेते हैं, तो आप बचपन छोड़कर वयस्क बनने की दिशा में एक बड़ा क़दम उठा लेते हैं। दुखद बात यह है कि ज़्यादातर लोग यह काम कभी नहीं कर पाते। मैं चालीस-पचास साल से ज़्यादा उम्र वाले ऐसे असंख्य स्त्री-पुरुषों से मिला हूँ, जो अब भी बचपन के दुखद अनुभवों के बारे में बड़बड़ा रहे हैं, शिकायत कर रहे हैं और अपनी समस्याओं का दोष दूसरे लोगों या परिस्थितियों पर मढ़ रहे हैं। कई लोग अब भी उस चीज़ के बारे में नाराज़ हैं, जो उनके माता-पिता ने की या नहीं की। और यह बीस, तीस या चालीस साल पहले की बात थी। वे अब भी अतीत के जाल में फँसे हुए हैं और उससे आज़ाद नहीं हो पाए हैं।


आपके सबसे बुरे शत्रु

सभी नकारात्मक भावनाएँ सफलता और खुशी की सबसे बड़ी शत्रु हैं। नकारात्मक भावनाएँ आपको नीचे रोके रखती हैं, आपको थका डालती हैं और आपकी ज़िंदगी की सारी ख़ुशी चूस लेती हैं। मानव इतिहास के शुरू होने से लेकर आज तक नकारात्मक भावनाओं ने इंसान और समाज को जितना नुक़सान पहुँचाया है, उतना अतीत की सभी महामारियों ने मिलकर भी नहीं पहुँचाया।

अगर आप वाक़ई खुश और सफल होना चाहते हैं, तो नकारात्मक भावनाओं से मुक्त होना आपका एक महत्वपूर्ण लक्ष्य होना चाहिए। सौभाग्य से आप यह काम कर सकते हैं, बशर्ते आप इसका तरीक़ा सीख लें।

डर, आत्म-करुणा, ईर्ष्या, कुढ़न, हीनता की भावनाएँ और अंततः क्रोध उत्पन्न होने के चार ख़ास कारण होते हैं। जब आप इन्हें पहचान लेते हैं और अपनी सोच से परे छिटक देते हैं, तो आपकी नकारात्मक भावनाएँ ख़ुद-ब-खुद ख़त्म हो जाती हैं। जब आपकी नकारात्मक भावनाएँ ख़त्म हो जाती हैं, तो उनकी जगह प्रेम, शांति, ख़ुशी और उत्साह की सकारात्मक भावनाएँ आ जाती हैं और आपकी पूरी ज़िंदगी बेहतर हो जाती है कई बार चंद मिनटों में, और कभी-कभार तो सेकंडों में ही।


ख़ुद को सही साबित करना छोड़ दें

नकारात्मक भावनाओं के चार बुनियादी कारणों में से पहला है, ख़ुद को सही साबित करना (justification)। आप तभी तक नकारात्मक रह सकते हैं, जब तक कि आप अपने और दूसरों के सामने खुद को सही साबित कर सकें कि आपका नाराज़ होना या बुरा मानना जायज़ था। इसीलिए गुस्सैल लोग अपनी नकारात्मक भावनाओं के कारण विस्तार से बताते हैं। ध्यान रहें, अगर आप अपनी नकारात्मक भावनाओं को सही साबित नहीं कर सकते, तो आप नाराज़ भी नहीं हो सकते।

मिसाल के तौर पर, अर्थव्यवस्था बदलने और कंपनी की बिक्री घटने की वजह से किसी कर्मचारी को नौकरी से निकाल दिया जाता है। बहरहाल, वह कर्मचारी इस निर्णय के लिए अपने बॉस से नाराज़ हो जाता है और अपने गुस्से को तर्कसंगत साबित करते हुए वे सारे कारण गिनाता है कि उसे नौकरी से निकालना क्यों अनुचित है। उसका गुस्सा इतना बढ़ सकता है कि हिसाब बराबर करने के लिए वह मुकदमा भी दायर कर दे। जब तक वह अपने बॉस और कंपनी के प्रति अपनी नकारात्मक भावनाओं को सही ठहराता रहेगा, वे उसे नियंत्रित करती रहेंगी और उसकी ज़्यादातर ज़िंदगी तथा सोच पर हावी रहेंगी।

लेकिन, जैसे ही वह कहता है, "ठीक है, मुझे नौकरी से निकाल दिया गया। इस तरह की चीज़ें होती रहती हैं। इसमें कुछ भी व्यक्तिगत नहीं है। कर्मचारियों की छंटनी हमेशा ही होती रहती है। मुझे लगता है, बेहतर यह होगा कि मैं नई नौकरी खोजने में व्यस्त हो जाऊँ," वैसे ही उसकी नकारात्मक भावनाएँ काफूर हो जाती हैं। उसका दिमाग़ शांत और स्पष्ट हो जाता है। वह अपना ध्यान अपने लक्ष्य पर केंद्रित कर लेता है। वह उन क़दमों के बारे में एकाग्रचित्त हो जाता है, जो वह दोबारा नौकरी पाने के लिए उठा सकता है। जैसे ही वह खुद को सही साबित करना छोड़ देता है, वह ज़्यादा सकारात्मक और असरदार बन जाता है।


बुद्धिसंगत बहाने छोड़ दें

नकारात्मक भावनाओं का दूसरा कारण है बुद्धिसंगत बहाने बनाना (rationalization)। जब आप बुद्धिसंगत बहाने बनाते हैं, तो आप "सामाजिक दृष्टि से किसी बुरे काम को सामाजिक दृष्टि से अच्छा साबित करने का तर्कसंगत स्पष्टीकरण" देने की कोशिश करते हैं। जिस काम में आप बुरा या नाखुश महसूस करते हैं, उसे सकारात्मक रोशनी में पेश करने या सही साबित करने के लिए बहाने बनाते हैं। आप सही नज़र आने वाला स्पष्टीकरण गढ़कर अपने कामों को सही साबित कर देते हैं, हालाँकि मन ही मन आप जानते हैं कि आप उस ग़लत काम में सक्रिय प्रतिभागी थे। आप अक्सर ख़ुद को सही रोशनी में पेश करने के जटिल तरीक़े अपनाकर यह स्पष्ट कर देते हैं कि कुल मिलाकर आपका व्यवहार अच्छा था। बुद्धिसंगत बहाने बनाने की आदत से आपकी नकारात्मक भावनाएँ ज़िंदा बनी रहती हैं और फलती-फूलती हैं। ख़ुद को सही साबित करने और बुद्धिसंगत बहाने बनाने के लिए हमेशा इस बात की ज़रूरत होती है कि आप किसी दूसरे व्यक्ति या वस्तु को अपनी समस्या का स्रोत या कारण मानें। आप ख़ुद को शोषित या पीड़ित की भूमिका में रख देते हैं और किसी दूसरे व्यक्ति या संगठन को शोषक या "बुरे व्यक्ति" की श्रेणी में शामिल कर देते हैं।


दूसरों की राय से ऊपर उठें

नकारात्मक भावनाओं का तीसरा कारण इस बारे में अति चिंता या अति संवेदनशीलता है कि दूसरे लोग आपसे कैसा व्यवहार करते हैं। कुछ लोगों की तो पूरी की पूरी आत्म-छवि ही इस बात से तय होती है कि दूसरे लोग उनसे कैसे बोलते हैं, उनके बारे में कैसी बातें करते हैं या उनकी तरफ़ कैसे देखते हैं। उनमें दूसरों की राय से परे अपने व्यक्तिगत मूल्य या आत्मसम्मान का बहुत कम एहसास होता है। अगर किसी वास्तविक या काल्पनिक कारण से दूसरों की राय नकारात्मक हो, तो ऐसे लोग "शोषित" (victim) फ़ौरन क्रोध, शर्म, लज्जा, हीनता, यहाँ तक कि डिप्रेशन, आत्म-करुणा और हताशा की भावनाएँ भी महसूस करते हैं। इससे स्पष्ट हो जाता है कि मनोवैज्ञानिक यह क्यों कहते हैं कि हम हर चीज़ दूसरों से सम्मान पाने या कम से कम उनका सम्मान गँवाने से बचने के लिए करते हैं।


यह एहसास करें कि कोई दूसरा ज़िम्मेदार नहीं है

नकारात्मक भावनाओं का चौथा और सबसे बुरा कारण है दोष देना। जब मैं अपने सेमिनारों में "नकारात्मक भावनाओं का वृक्ष" बनाता हूँ, तो उसका तना इसी का प्रतीक होता है। अपनी समस्याओं के लिए दूसरों को दोष देने की प्रवृत्ति ही नकारात्मक भावनाओं का सबसे बड़ा कारण है। जब आप इस पेड़ का तना काट देते हैं, तो पेड़ के सारे फल सारी नकारात्मक भावनाएँ - फ़ौरन धराशाई हो जाते हैं। ठीक उसी तरह जैसे प्लग बाहर निकालने पर क्रिसमस ट्री की सभी रोशनियाँ फ़ौरन गुल हो जाती हैं।


ज़िम्मेदारी ही इलाज है

सभी तरह की नकारात्मक भावनाओं का इलाज यह है कि आप अपनी स्थिति की पूरी ज़िम्मेदारी स्वीकार करें। "मैं ज़िम्मेदार हूँ!" कहने के साथ-साथ आप गुस्सा महसूस कर ही नहीं सकते। ज़िम्मेदारी स्वीकार करने भर से ही आपकी हर नकारात्मक भावना ख़त्म हो जाती है। "मैं ज़िम्मेदार हूँ," का यह सरल, लेकिन सशक्त संकल्प हमें नकारात्मक भावनाओं को तत्काल ख़त्म करने की क्षमता देता है। इसकी खोज से मेरी ज़िंदगी बदल गई और ऐसा ही मेरे लाखों विद्यार्थियों के साथ भी हुआ है।

ज़रा कल्पना करें! आप नकारात्मक भावनाओं से पूरी तरह आज़ाद हो सकते हैं और

अपनी ज़िंदगी की बागडोर अपने हाथ में थाम सकते हैं। और इसके लिए आपको सिर्फ़ इतना ही कहना है, "मैं ज़िम्मेदार हूँ!" जब भी आपको किसी वजह से गुस्सा आए या आप विचलित हो जाए, तो ये तीन शब्द बोल दें। जब आप पूरी ज़िम्मेदारी स्वीकार करके ख़ुद को नकारात्मक भावनाओं से आज़ाद कर लेते हैं, तभी और सिर्फ़ तभी आप ज़िंदगी के हर क्षेत्र में लक्ष्य तय कर सकते हैं और उन्हें पा

सकते हैं। जब आप मानसिक और भावनात्मक रूप से आज़ाद होते हैं, सिर्फ़ तभी आप अपनी ऊर्जा और उत्साह को आगे की दिशा में ले जा सकते हैं। पूर्ण व्यक्तिगत ज़िम्मेदारी स्वीकार किए बिना प्रगति संभव ही नहीं है। दूसरी ओर, जब आप अपनी ज़िंदगी की पूरी ज़िम्मेदारी स्वीकार कर लेते हैं, तो इस बात की कोई सीमा नहीं है कि आप क्या बन सकते हैं, क्या कर सकते हैं और क्या पा सकते हैं।


दूसरों को दोष देना छोड़ दें

आज के बाद किसी भी चीज़ के लिए किसी दूसरे को दोष देना छोड़ दें चाहे वह अतीत, वर्तमान में हो रही हो या जिसके भविष्य में होने की आशंका हो। जैसा एलीनोर रूज़वेल्ट ने कहा था, "कोई भी आपकी सहमति के बिना आपको हीन महसूस नहीं करा सकता।" कॉमेडियन बडी हैकेट ने एक बार कहा था, "मैं कभी द्वेष नहीं पालता; जब आप जल-भुन रहे होते हैं, तब आपके शत्रु नाच-गा रहे होते हैं!"

आज के बाद अपने अनुचित व्यवहार के लिए बहाने बनाना या उसे सही साबित करना छोड़ दें। अगर आपसे कोई ग़लती हो जाए, तो बस इतना ही कहें, "मुझे अफ़सोस है" और फिर स्थिति को सुधारने में जुट जाएँ। जब भी आप किसी दूसरे को दोष देते हैं या बहाने बनाते हैं, तो हर बार आप अपनी शक्ति कम कर लेते हैं। आप कमज़ोर और कमतर महसूस करने लगते हैं। आप मन ही मन से नकारात्मक और क्रोधित हो जाते हैं। ऐसा हर्गिज़ न होने दें।


अपनी भावनाओं पर क़ाबू रखें

अगर आप अपने दिमाग़ को सकारात्मक रखना चाहते हैं, तो आलोचना करने से इंकार कर दें, शिकायतें करना छोड़ दें और किसी भी चीज़ के लिए दूसरों की निंदा करना बंद कर दें। जब भी आप किसी दूसरे की आलोचना करते हैं, किसी अप्रिय चीज़ की शिकायत करते हैं या कोई चीज करने या नहीं करने के लिए किसी की निंदा करते हैं, तो हर बार आप अपने भीतर नकारात्मकता और क्रोध की भावनाएँ जगा देते हैं और फिर कष्ट भी आपको ही भुगतना पड़ता है। आपकी नकारात्मक भावनाओं का सामने वाले पर ज़रा भी असर नहीं होता। किसी से गुस्सा होने का मतलब यह है कि आप उसे अपनी भावनाओं की बागडोर थमा रहे हैं और लंबे समय में अक्सर अपने जीवन की गुणवत्ता की भी। यह निरी मूर्खता है। जैसा गैरी जुकाव ने अपनी पुस्तक सीट ऑफ़ द सोल में कहा है, "सकारात्मक भावनाएँ शक्ति बढ़ाती हैं, नकारात्मक भावनाएँ शक्ति घटाती हैं।" खुशी, रोमांच, प्रेम और उत्साह की सकारात्मक भावनाएँ आपको ज़्यादा शक्तिशाली और आत्मविश्वासी महसूस कराती हैं। क्रोध करने, आहत होने या दोष देने की नकारात्मक भावनाएँ आपको कमज़ोर बनाती हैं। ये आपको शत्रुतापूर्ण, चिड़चिड़ा और दुखी बना देती हैं।

जब आप खुद के लिए, अपनी स्थिति के लिए और अपने साथ होने वाली हर चीज़ के लिए पूरी ज़िम्मेदारी स्वीकार करने का फ़ैसला कर लेते हैं, तो आप विश्वासपूर्वक अपने कामकाज और अपनी ज़िंदगी के मामलों की ओर मुड़ सकते हैं। आप सचमुच "अपनी तक़दीर के स्वामी और अपनी आत्मा के कप्तान" बन जाते हैं।


हेलो, मि. प्रसिडेंट!

न्यूयॉर्क में कुछ साल पहले एक अध्ययन हुआ। शोधकर्ताओं ने पाया कि हर क्षेत्र के शीर्षस्थ 3 प्रतिशत लोगों में एक ख़ास नज़रिया होता है, जो उन्हें अपने उद्योग के औसत लोगों से अलग करता है। वह नज़रिया यह है: "वे अपने पूरे कैरियर में ख़ुद को सेल्फ़-एम्प्लॉयड मानते हैं और उन्हें इससे कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता कि उन्हें तनख़्वाह कौन देता है। वे ख़ुद को अपनी कंपनी के लिए ज़िम्मेदार मानते हैं, जैसे वे ख़ुद उस कंपनी के मालिक हों। आपको भी ऐसा ही करना चाहिए।"

इस पल के बाद ख़ुद को अपने व्यक्तिगत सेवा कॉरपोरेशन का प्रेसिडेंट मानें। खुद को सेल्फ़-एम्प्लॉयड मानें। खुद को अपनी ज़िंदगी और कैरियर के हर हिस्से के पूर्ण नियंत्रण में देखें। खुद को बार-बार याद दिलाएँ कि आप जहाँ भी हैं और जिस हाल में भी हैं, अपने किए या न किए कामों की वजह से हैं। आप अपनी तक़दीर के आर्किटेक्ट हैं।


आप ही चुनते हैं, आप ही फ़ैसला करते हैं

कोई काम करने या न करने के चुनावों और निर्णयों से ही आपने अपने अब तक के पूरे जीवन को आकार दिया है। अगर आपकी ज़िंदगी में कोई ऐसी चीज़ है, जो आपको पसंद नहीं है, तो उसके लिए आप ही ज़िम्मेदार हैं। अगर कोई ऐसी चीज़ है, जिसे लेकर आप खुश नहीं हैं, तो यह आप पर ही निर्भर करता है कि आप उसे बदलने और बेहतर बनाने के लिए ज़रूरी क़दम उठाएँ, ताकि वह आपके मनमाफ़िक हो जाए।

अपने व्यक्तिगत सेवा कॉरपोरेशन का प्रेसिडेंट होने के नाते आप अपने हर काम और उसके परिणामों के लिए पूरी तरह खुद ज़िम्मेदार हैं। आप अपने कामों और व्यवहार के परिणामों के लिए खुद ज़िम्मेदार हैं। आप आज जहाँ हैं और जो हैं, इसलिए हैं, क्योंकि आपने

ही इसका फ़ैसला किया है। आप आज उतना ही कमा रहे हैं, जितना कमाने का आपने फ़ैसला किया है न उससे कम, न उससे ज्यादा। अगर आप अपनी वर्तमान आमदनी से ख़ुश नहीं हैं, तो ज़्यादा कमाने का फ़ैसला करें। इसका लक्ष्य बनाएँ, योजना बना लें और मनचाही कमाई करने के लिए जिन कामों

की ज़रूरत हो, उन्हें करने में जुट जाएँ। अपने कैरियर और जीवन के प्रेसिडेंट के रूप में, अपनी तक़दीर के आर्किटेक्ट के रूप में आप फ़ैसला करने के लिए स्वतंत्र हैं। आप बॉस हैं। आप प्रभारी हैं।


अपनी रणनीति बनाएँ

जिस तरह किसी कॉरपोरेशन का प्रेसिडेंट उस कॉरपोरेशन की रणनीति और कामों के लिए ज़िम्मेदार होता है, उसी तरह आप भी अपने जीवन और कैरियर की व्यक्तिगत रणनीति के लिए ज़िम्मेदार हैं। आप प्रबंधन की पूरी रणनीति लक्ष्य तय करना, योजना बनाना, चरण बनाना और तयशुदा परिणाम पाने के लिए काम करना के लिए ज़िम्मेदार हैं।

आप तयशुदा परिणाम हासिल करने के लिए ज़िम्मेदार हैं, जो आपके काम की गुणवत्ता और मात्रा पर निर्भर होते हैं।

प्रेसिडेंट के रूप में आप आत्म-प्रचार और तरक़्क़ी की मार्केटिंग रणनीति के लिए ज़िम्मेदार हैं। इसके लिए आपको अच्छी छवि बनानी होगी और अपनी पैकिंग आकर्षक रखनी होगी, ताकि प्रतिस्पर्धा भरे बाज़ार में आप खुद को सबसे ज़्यादा क़ीमत पर बेच सकें।

आप वित्तीय रणनीति के लिए ज़िम्मेदार हैं यह फ़ैसला करने के लिए कि आप अपनी कितनी सेवाएँ बेचना चाहते हैं, आप कितना पैसा कमाना चाहते हैं, आप कितनी तेज़ी से हर साल अपनी आमदनी बढ़ाना चाहते हैं, आप कितना पैसा बचाना और निवेश करना चाहते हैं और रिटायरमेंट के वक़्त आप कितनी नेट वर्थ हासिल करना चाहते हैं। ये सभी आँकड़े पूरी तरह आप पर निर्भर करते हैं।

आप लोक-व्यवहार की रणनीति और अपने संबंधों के लिए उत्तरदायी हैं घर पर भी और ऑफ़िस में भी। मैं अपने विद्यार्थियों को एक सलाह देता हूँ, "अपना बॉस सावधानी से चुनें।" यह चुनाव इस बात पर काफ़ी असर डालेगा कि आप कितना ज़्यादा कमाते हैं, कितनी तेज़ी से आगे बढ़ते हैं और अपनी नौकरी में कितने खुश होते हैं।


नए चुनाव करें, नए निर्णय लें

इसी तरह जीवनसाथी और दोस्तों का चुनाव भी आपकी सफलता और ख़ुशी पर बहुत असर डालेगा। अगर आप अपने वर्तमान चुनाव से ख़ुश नहीं हैं, तो यह आप पर है कि आप उसे बदलने या बेहतर बनाने के लिए क़दम उठाएँ।

अंत में, प्रेसिडेंट के रूप में आप व्यक्तिगत शोध और विकास, निजी प्रशिक्षण और शिक्षण के प्रभारी हैं। उन योग्यताओं, गुणों, प्रतिभाओं और मूल क्षमताओं को आप ही तय करेंगे, जिनकी ज़रूरत आपको उस तरह पैसा कमाने में होगी, जो आप आज से कई महीनों या बरसों बाद कमाना चाहते हैं। यह आपकी ज़िम्मेदारी है कि आप इन योग्यताओं को विकसित करने में समय लगाएँ। दरअसल कोई दूसरा व्यक्ति आपकी उतनी परवाह नहीं करता, जितनी कि आप ख़ुद करते हैं।


"ग्रोथ स्टॉक" बनें

हम इस उपमा को थोड़ा और आगे तक ले जाते हैं। खुद को शेयर बाज़ार में सूचीबद्ध किसी कंपनी के शेयर की तरह देखें। क्या लोग आपके शेयर में इस विश्वास के साथ निवेश कर सकते हैं कि आने वाले महीनों और बरसों में इसका भाव और मुनाफ़ा बढ़ता रहेगा? क्या आप "ग्रोथ स्टॉक" हैं या फिर शेयर बाज़ार में आपका मूल्य गिरता जा रहा है?

अगर आपने "ग्रोथ स्टॉक" बनने का फ़ैसला कर लिया है, तो हर साल अपनी आमदनी 25-30 प्रतिशत बढ़ाने की आपकी रणनीति क्या है? अपने जीवन के प्रेसिडेंट के रूप में, परिवार में जीवनसाथी या अभिभावक के रूप में, आप अपने जीवन के कुछ महत्वपूर्ण लोगों को प्रगति के ग्राफ़ पर बने रहने का श्रेय दे सकते हैं और समय के साथ-साथ अपने मूल्य, आमदनी और मुनाफ़े को लगातार बढ़ा सकते हैं।


अपनी ज़िंदगी का स्टियरिंग व्हील सँभालें

इस बिंदु के बाद ख़ुद को अपनी तक़दीर का स्वामी मान लें। यह मान लें कि आप पूरी तरह से अपनी ज़िंदगी के प्रभारी ख़ुद हैं। खुद को अपने व्यक्तिगत सेवा कॉरपोरेशन के प्रेसिडेंट के रूप में देखें - एक शक्तिशाली व्यक्ति, जो पूरी तरह से संकल्पवान और आत्म-निर्देशित है।

अतीत की घटनाओं के बारे में अफ़सोस और शिकायत करना छोड़ दें, क्योंकि उन्हें बदला नहीं जा सकता। इसके बजाय अपना रुख़ भविष्य की तरफ़ करें और इस बारे में सोचें कि आप क्या चाहते हैं और कहाँ जा रहे हैं। सबसे बढ़कर, अपने लक्ष्यों के बारे में सोचें। लक्ष्यों के बारे में सोचने भर से ही आप सकारात्मक और उद्देश्यपूर्ण बन जाते हैं।

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