छान्दोग्योपनिषद् हिंदी पुस्तक पीडीएफ | Chhandogyo Upanishad Hindi Book PDF



Chhandogyo Upanishad Hindi Book PDF


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'ओमित्येतदक्षरम्' इत्यादि मन्त्रसे आरम्भ होनेवाला यह आठ अध्यायोंका ग्रन्थ छान्दोग्य उपनिषद् है। उसका अर्थ जाननेकी इच्छावालोंके लिये इस छोटे-से ग्रन्थके रूपमें उसकी सरल व्याख्या संक्षेपसे आरम्भ की जाती है। वहाँ इसका सम्बन्ध इस प्रकार है- [विहित और निषिद्धरूपसे] जाने हुए समस्त कर्मका प्राणादि देवताओंके विज्ञान- पूर्वक अनुष्ठान करनेपर वह अर्चि आदि मार्गके द्वारा ब्रह्मलोककी प्राप्तिका कारण होता है तथा केवल कर्म धूमादि मार्गसे चन्द्रलोककी प्राप्तिका हेतु होता है। 

जो इन दोनों मार्गोंसे पतित एवं स्वभावानुसार प्रवृत्त होनेवाले होते हैं उनकी कष्टमयी अधोगति बतलायी गई है। इन दोनों मार्गोंमेंसे किसी भी एक मार्गपर रहनेसे आत्यन्तिक पुरुषार्थकी सिद्धि नहीं हो सकती। अतः संसारकी त्रिविध अद्वैत-आत्मज्ञानका प्रतिपादन करना गतियोंके हेतुभूत कर्मका निराकरण करते हुए कर्मकी अपेक्षासे रहित है; इसी उद्देश्यसे इस उपनिषद्का आरम्भ किया जाता है। अद्वैतात्मविज्ञानके बिना और किसी प्रकार आत्यन्तिक कल्याणकी प्राप्ति नहीं हो सकती। 

जैसा कि आगे कहेंगे भी “जो लोग इस अद्वैतात्मज्ञान से विपरीत जानते हैं, वे अनात्माके अधीन होते और क्षीण होनेवाले लोकोंमें जाते हैं।" किंतु इससे विपरीत आत्मज्ञान होनेपर "वह स्वराट् होता है।" इस प्रकार तपे हुए परशुको ग्रहण करनेसे चोरके जलने और बन्धनमें पड़नेके समान द्वैतविषय- रूप मिथ्यामें अभिनिवेश रखनेवाले पुरुषका बन्धन होता है तथा उसे सांसारिक दुःखोंकी प्राप्ति होती है- यह बतलाकर श्रुति अद्वैत आत्मारूप परम सत्यमें प्रतीति रखनेवाले पुरुषको, जो पुरुष चोर नहीं है उसके तप्त परशु ग्रहण करनेपर दाह और बन्धन न होनेके समान, संसार- दुःखकी निवृत्ति और मोक्षकी प्राप्ति बतलावेगी। 

कर्म और ज्ञान दोनों विरुद्ध फलवाले हैं- ऐसा निश्चय होनेके कारण ही अद्वैतात्म-दर्शन कर्मके साथ होनेवाला नहीं है। क्योंकि क्रिया, कारक और फलरूप भेदका बाध करके "सत् एक और अद्वितीय है" "यह सब आत्मा ही है" इत्यादि प्रकारके वाक्योंसे उत्पन्न होनेवाले अद्वैत आत्मज्ञानका कोई बाधक प्रत्यय होना सम्भव नहीं है। यदि कहो कि कर्मविधिविषयक ज्ञान ही है तो ऐसा होना भी सम्भव नहीं है, क्योंकि जो अपनेको स्वभावसे ही कर्ता-भोक्तारूप जानता है और उससे होनेवाले कर्मफलमें रागद्वेषरूप दोषोंसे युक्त है, उसीके लिये कर्मका विधान किया गया है।





Bookछान्दोग्योपनिषद् / Chhandogyo Upanishad
AuthorGita Press Gorakhpur
LanguageHindi
Pages929
Size3.9 MB
FilePDF
CategoryHinduism
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