आर्ष-ज्योतिः हिंदी पुस्तक पीडीएफ | Arsh Jyotih Hindi Book PDF Download
भारतवर्ष ऋषि-मुनियों, त्यागी तपस्वियों, सन्तों, महापुरुषों, विचारकों, चिन्तकों आदि की जन्मभूमि, तपोभूमि और कर्मभूमि रहा है। यह भारतवर्ष अपनी विशेषताओं, मूल्यों, आदर्शों, आध्यात्मिकता, महापुरुषों, सद्ग्रन्थों, नैतिकता तथा भारतीयविज्ञान सम्मत जीवनशैली के कारण ही विश्वगुरु के उच्चतम पद पर विद्यमान रहा है। यह भारतभूमि सदा से ही ऐसे महापुरुषों की जननी रही है, जिनका उदात्त व्यक्तित्व अपने समकालीन ही नहीं अपितु युग-युगान्तर तक अपनी विशेषताओं के अनुपम वैशिष्ट्य को स्थापित रखता है।
ऐसे महापुरुषों का व्यक्तित्व एवं उनके विचार सम्पूर्ण विश्व की मानव जाति का पथ प्रदर्शन करते हैं। विक्रम संवत् की उन्नसवीं शताब्दी में हुए भारत के धार्मिक, सामाजिक एवं सांस्कृतिक पुनर्जागरण के पुरोधा महर्षि दयानन्द सरस्वती की गणना भी ऐसे ही युगद्रष्टा महापुरुषों में होती है, जिनके कर्तृत्व एवं व्यक्तित्व से भारत का जनमानस ही नहीं अपितु सम्पूर्ण विश्व की मानव जाति प्रभावित हुई है।
महापुरुषों की परम्परा में ऋषिवर दयानन्द सरस्वती का नाम अत्यन्त सम्मान, श्रद्धा एवं पूज्यभाव से लिया जाता है। जैसे समस्त पर्वतों में हिमालय का शिखर सर्वोन्नत है, वैसे ही महर्षि दयानन्द सरस्वती समस्त महापुरुषों में अपने व्यक्तित्व, कर्तृत्व एवं वैशिष्ट्य से सर्वोन्नत हैं। वे अपने युग के महान् समाजसुधारक, वेदभाष्यकार, तत्त्ववेत्ता, दूरद्रष्टा, दार्शनिक एवं नैष्ठिक ब्रह्मचारी रहे हैं। सम्प्रति भारतवर्ष महर्षि दयानन्द सरस्वती की द्विजन्मशताब्दी मना रहा है। समस्त जनमानस के समक्ष महर्षि के व्यक्तित्व एवं कर्तृत्व की महत्ता एवं उपादेयता को उपस्थापित करने के लिए गुरुकुल पौन्धा, देहरादून ने अपने वार्षिक महोत्सव के इस पावन अवसर पर अन्ताराष्ट्रिय मूल्याङ्कित मासिक शोधपत्रिका 'आर्ष-ज्योतिः' के प्रस्तुत शोधाङ्क का विषय माननीय मेधाविमनीषियों की सत्प्रेरणा से 'महर्षिदयानन्दसरस्वती-विशेषाङ्क' प्रकाशित करने का सुनिश्चय किया गया है।
महर्षि स्वामी दयानन्द सरस्वती का जन्म गुजरात में हुआ, यह सर्वविदित है किन्तु गुजरात के प्रान्त व स्थान को लेकर कतिपय जनमानस संदेहात्मक रहा तथा माता-पिता एवं परिवार के विषय में जानकारियाँ कुछ काल तक अव्यक्त रहीं। इसका मुख्य कारण उनका संन्यासी होना है। महर्षि के विषय में उनके द्वारा लिखित जन्मचरित्र से ही महर्षिविषयक इतिवृत्त का संक्षिप्त ज्ञान प्रारम्भ हुआ।
महर्षि स्वयं लिखते हैं कि-'प्रथम दिन से ही जो मैंने लोगों को अपने पिता का नाम और अपने कुल का स्थान बताना अस्वीकार किया, इसका यही कारण है कि मेरा कर्त्तव्य मुझ से इस बात की आज्ञा नहीं देता। यदि मेरा कोई संबंधी मेरे इस वृत्तांत से परिचय पा लेता, तो वह अवश्य मुझे ढूँढने का प्रयत्न करता। इस प्रकार उनसे दो-चार होने पर मेरा उनके साथ घर जाना आवश्यक हो जाता? इस तरह एक बार पुनः मुझे धन हाथ में लेना पड़ता अर्थात् गृहस्थ हो जाता।
उनकी सेवा शुश्रूषा भी मुझे योग्य होती और इस प्रकार उनके मोह में पड़कर सर्वसुधार का वह उत्तम काम जिसके लिए मैंने अपना जीवन अर्पण किया है जो मेरा यथार्थ उद्देश्य है, जिसके अर्थ जीवन बलिदान करने की किंचित् सोच नहीं की और अपनी आयु को बिना मूल्य जाना और जिसके अर्थ मैंने अपना सब कुछ स्वाहा करना अपना मंतव्य समझा, अर्थात् देश का सुधार और धर्म का प्रचार, वह देश पूर्ववत् अंधकार में पड़ जाता।
Book | आर्ष-ज्योतिः / Arsh Jyotih |
Author | Srimadyanandaartha Jyotirmat Gurukulam |
Language | Hindi |
Pages | 101 |
Size | 3.4 MB |
File | |
Category | Hindi Books, Hinduism |
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