गुरु तत्व हिंदी पुस्तक पीडीएफ | Guru Tatwa Hindi Book PDF Download
ग्रन्थों के अध्ययन मात्र से कोई गुरु नहीं बन सकता है। जो श्रोत्रिय हो तथा जिसे आत्मा की अपरोक्षानुभूति हो, उसी पर गुरु का नामारोपण किया जा सकता है। जीवन्मुक्त सन्त वास्तविक गुरु है । वह सद्गुरु है। वह ब्रह्म अथवा परमात्मा से अभिन्न होता है। वह ब्रह्मवित् होता है। सिद्धियों पर आधिपत्य किसी ऋषि की महत्ता घोषित करने अथवा उसके आत्म-साक्षात्कार की उपलब्धि प्रमाणित करने की कसौटी नहीं है। सद्गुरु चमत्कार अथवा सिद्धियों का प्रदर्शन नहीं करता फिरता।
वह साधकों को आधिभौतिक पदार्थों की विद्यमानता का निश्चय दिलाने, उन्हें प्रोत्साहन देने तथा उनके हृदय में श्रद्धा निवेशित करने के लिए कभी-कभी उन्हें प्रदर्शित कर सकता है। सद्गुरु असंख्य सिद्धियों से सम्पन्न होता है। वह सभी दिव्य ऐश्वर्यों का स्वामी होता है। सद्गुरु साक्षात् ब्रह्म है। वह आनन्द, ज्ञान तथा करुणा का सागर है। वह आपकी आत्मा का नेतृत्व करने वाला है। वह सुख का स्रोत है। वह आपके समस्त कष्टों, विषादों तथा बाधाओं को विदूरित करता, आपको सम्यक् दिव्य पथ दर्शाता, आपके अज्ञानावरण को विदीर्ण करता, आपको अमर तथा दिव्य बनाता और आपकी निम्न आसुरी प्रकृति को रूपान्तरित करता है।
वह आपको ज्ञान-रज्जु देता और इस संसार सागर में डूबते समय आपको पकड़ता है। उसे मात्र एक मनुष्य ही न समझें। यदि आप उसे मनुष्य समझते हैं, तो आप पशु हैं। अपने गुरु की पूजा करें और श्रद्धापूर्वक उन्हें नमस्कार करें। गुरु भगवान् है। उसकी वाणी भगवद् वाणी है। उसे उपदेश देने की आवश्यकता नहीं है। उसका सान्निध्य अथवा उसकी संगति भी उन्नयनकारी प्रेरणादायी तथा भावोत्तेजक है। उसका संग ही आत्म-प्रबोधक है। उसके सान्निध्य में रहना आध्यात्मिक शिक्षा है। श्री गुरु ग्रन्थ साहिब जी का अध्ययन करें, आपको गुरु की महत्ता ज्ञात हो जायेगी।
मनुष्य केवल मनुष्य से ही सीख सकता है; अतः भगवान् मानव शरीर के द्वारा शिक्षा देता है। आप अपने गुरु में स्व-कल्पित पूर्णता के मानवीय आदर्श को साकार हुआ पाते हैं। यह वह आदर्श है जिसके अनुरूप आप अपना निर्माण करना चाहते हैं। आपका मन सहज ही यह स्वीकार कर लेगा कि ऐसी महान आत्मा आदर करने तथा श्रद्धा रखने योग्य है।
गुरु मोक्ष का द्वार है । वह इन्द्रियातीत सत् चित् का द्वार है; किन्तु इस द्वार में साधक को ही प्रवेश करना है । गुरु सहायक है; किन्तु व्यावहारिक साधना का वास्तविक कार्य तो साधक के शिर पर ही है। अध्यात्म पथ पर नवीन साधक को गुरु की आवश्यकता हुआ करती है। एक दीपक को जलाने के लिए
आपको एक प्रज्वलित दीपक की आवश्यकता होती है; उसी प्रकार एक प्रबुद्ध आत्मा दूसरी आत्मा को प्रबुद्ध कर सकती है। कुछ लोग कुछ वर्षों तक स्वतन्त्र रूप से अध्ययन करते हैं। कालान्तर में उन्हें गुरु की आवश्यकता यथार्थतः अनुभव होती है। उन्हें पथ में कुछ बाधाएँ मिलती हैं। उन्हें इस बात का ज्ञान नहीं होता कि इन अवरोधों अथवा गतिरोधों को कैसे दूर करें। तब वे गुरु की खोज करना आरम्भ कर देते हैं।
Book | गुरु तत्व | Guru Tatwa |
Author | Shri Swami Shivananda Saraswati |
Language | Hindi |
Pages | 64 |
Size | 1.4 MB |
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Category | Hindi Books |
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