वैदिक विवाह पद्धति सुमंगली हिंदी पुस्तक पीडीएफ | Vedic Vivah Paddhati Sumangali Hindi Book PDF Download
हे विद्वानो ! यह वधू (कन्या) मंगल स्वरूप है, अतः इस वधू के साथ नेह रखो और इसको मंगल दृष्टि से देखो तथा इसके लिए सौभाग्य का आशीर्वाद देकर अपने-अपने गृह के प्रति जाओ (पराड् मुख होकर न जाओ किन्तु पुत्रादि के मंगल की आशा से फिर भी आने के लिये जाओड्।) पुरुष पर ब्रह्म का स्वरूप है, और नारी प्रकृति की प्रतिनिधि, दोनों ही अपने में महान् हैं, पर दोनों ही अपने में अपूर्ण। यज्ञ वेदी पर ये दोनों अपूर्णतायें मिल कर एक पूर्ण हो जाती हैं उस मिलन का ही नाम है विवाह यों यह है जीवन की पूर्णता का पर्व !
नारी गृहस्थ जीवन की नौका है प्रेम पतवार से इस नौका को किनारे लगाना - नारी का प्रथम गुण है। पत्नी के रूप में वह पति की सहचरी बनकर उचित परामर्श देती हुई उसे कर्त्तव्य पथ पर आरूढ़ रखती है, और गृहस्थी का सुसंचालन करती हुई राष्ट्र-निर्माण का कार्य प्रशस्त करती है तथा मातृ शक्ति के रूप में दयानन्द और गाँधी सरीखी सन्तान उत्पन्न करके राष्ट्रोत्थान और लोक मंगल का सूत्रपात करती है।
प्रभु तेरा पुण्य प्रताप दुःख हरता है, सुषमा समृद्धि, सुख की वर्षा करता है, जो भक्ति भाव से तुमको अपनाता है- वह बड़भागी भव सागर तर जाता है। हे परम प्रभो शुभ समय दिखाया है यह, है तेरी करुणा से अवसर आया है यह, उठ रहीं हर्ष की लहरें मन-मानस में- सब इष्ट मित्र पग रहे प्रेम के रस में। वैदिक विधि से व्रत धार वचन में मन में, बंध रहे आज दो व्यक्ति धर्म-बन्धन में, हे यज्ञ देव तेजस्वी इन्हें बनाना- सद्ज्योति जगाकर, शुभ सन्मार्ग सुझाना। नव दम्पति ! स्वागत है गृहस्थ में तेरा, हो सुख-समृद्धि सम्पन्न विनय-नय प्रेरा।
बन गृही सदा सधर्म निभाना होगा- कर दान-पुण्य नित सुयश कमाना होगा। ऋषि-मुनि, विवेकियों का वचनामृत पीना, तुम सदा सत्य-रक्षा हित जीवन जीना, जो वेद ज्ञान मानव का सुदृढ़ सहारा- हो वह तुम दोनों को प्राणों से प्यारा। सद् साधन से हो धर्म कमाई धन की, यम-नियम युक्त हो चाह उच्च जीवन की, बन देश भक्त वर वीर भाव बरसाना- कर्तव्य कर्म से पीठ न कभी दिखाना।
जिस गृह-कुटुम्ब में नारि सुखी रहती है, उसमें सदैव सुख की सरिता बहती है, जो पत्नी को विलास वस्तु बताते- वे भव्य भावना का अस्तित्त्व मिटाते । है 'मित्र', 'सहायक' अर्द्धांगिनी, तुम्हारी, तुम प्राणनाथ हो, वह प्राणों की प्यारी, व्रत-दान-यज्ञ दोनों मिल-जुल कर करना- कर्त्तव्य क्षेत्र में, बन निर्भीक विचरना। हे सुते ! तुम्हारा, शुभ सौभाग्य अचल हो, जब तक गंगा-यमुना में बहता जल हो, तुम हो गृहस्थ की ज्योति स्वधर्म निभाना- अति भक्ति भाव से प्रिय पति को अपनाना।
जब 'पतिव्रता व्रत' में बाधा आती है, तब अबला सती सिंहनी बन जाती है, प्रिय पुत्री, तुम यह मन्त्र भूल मत जाना- सर्वस्व होमकर भी कुल-कानि बचाना। तुम घर गृहस्थ को स्वर्ग समान बनाना, हो अति प्रसन्न सन्तुष्ट सुनीति निभाना, आदर्श सती सीता को भूल न जाना- प्राचीन आर्य गौरव के गुण को गाना, बनकर चिरायु भोगो सुख वरना वरनी, हो सदा सुयश सम्पन्न धर्ममय करणी, तुम अचल भाव से नित सत्पथ पर चलना दूधों नहाना पूतों से दोनों फलना।
Book | वैदिक विवाह पद्धति सुमंगली | Vedic Vivah Paddhati Sumangali |
Author | Acharya Prem Bhikshu |
Language | Hindi |
Pages | 75 |
Size | 40 MB |
File | |
Category | Hinduism |
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