वेद श्री हिंदी पुस्तक | Ved Shri Hindi Book PDF Download :
परिचय प्रगाढ़ हो तो अतीत के पन्ने खोलने में विशेष प्रयास नहीं करना पड़ता है। आज जब इस ग्रन्थ का सम्पादकीय लिखने बैठी हूँ तो हर पंक्ति मानो उस देवतुल्य पुरुष को स्वयं समर्पित हो रही है। विवाहित होकर इलाहाबाद आने के बाद से ही स्वामी जी का आशीर्वाद, प्रेरणा, स्नेह निरन्तर प्राप्त होता रहा। अगाध पांडित्य के स्वामी थे वे किन्तु यह तो एक सामान्य सी बात है। विशिष्टता तो इसमें है कि वे मानवशिल्पी थे। उन्होंने अपने जैसे अध्ययनशीलं, कर्मठ, रचनात्मक सहस्रों शिष्यों का निर्माण किया जो उनके सम्पर्क में आया अध्ययन और स्नेह की वर्षा से सदा अभिषिञ्चित होता रहा।
सम्भवतः यह दोनों ही बातें उन्होंने अपने आस-पास के परिवेश से ग्रहण की थीं। डॉ० सत्यप्रकाश जी की जन्मस्थली बिजनौर नगर है। वह बिजनौर, जहाँ प्रकृति से अनन्य अनुराग रखने वाली शकुन्तला का शैशव- कैशोर्य बीता था, जहाँ दुष्यन्त ने सौहार्दपूर्ण व्यवहार से आश्रम की मुग्धा कन्या को चकित भ्रमित कर दिया था। आचार्य कण्व की विद्वत्ता और दुष्यन्त शकुन्तला मिथुन की प्रेम सनी मिट्टी का रस लेकर उस युगपुरुष स्वामी सत्यप्रकाश सरस्वती के व्यक्तित्व की रचना हुई थी।
संक्रमण काल था वह भारत का वैज्ञानिक नई संकल्पनाओं में व्यस्त थे, साहित्य साधना से साहित्यिक वातावरण बनते थे, धर्म तथा दर्शन की व्याख्याएं होती थीं, महर्षि दयानन्द के संदेश गूँजते थे, क्रांति के बिगुल बजते थे, ऐसे रोमाञ्चकारी युग में साहित्य, विज्ञान, दर्शन और क्रांति का समवेत स्वर लेकर उस धरती पुत्र का निर्माण हुआ था। अध्ययन का प्रांगण विशाल होता है, असीमित और अनन्त स्वामी सत्यप्रकाश ने इस विशालता को छूने का सार्थक प्रयास किया था।
संन्यास आश्रम में दीक्षा ले लेने से अध्ययन के ये आयाम अधिक विस्तृत हो गये थे। एकान्त में बैठ कर बेदों की व्याख्या करते, व्यस्त क्षणों में वेदों का प्रचार करते। उनकी साहित्यानुरागी प्रवृत्ति ने उन्हें संस्कृत, हिन्दी, उर्दू, अंग्रेजी, फ्रेंच, जर्मन तथा अफ्रीकन भाषाओं का ज्ञान कराया था। वे ऐसी शिक्षा के पक्षधर थे जिसमें छात्र सरस्वती के संश्रय से सरस साहित्य के मनन और प्रणयन में सुरुचिसम्पन्न बने। भारतीय वैज्ञानिक परम्परा पर आधारित मौलिक ग्रन्थों की रचना अँग्रेजी और विशेष रूप से हिन्दी में करके उन्होंने हिन्दी के भाल को विज्ञान से और विज्ञान के मस्तक को हिन्दी से सजाया।
उन्हें आश्चर्य होता था कि संस्कृत को ज्ञान का आधार बनाने में जो प्रान्त अपनी प्रान्तीयता को भूल गये, अंग्रेजी का आश्रय लेते समय भी उन्हें अपनी प्रान्तीयता का स्मरण नहीं हुआ, वे ही प्रान्त उच्च कोटि के हिन्दी साहित्य के लिए हिन्दी अपनाते समय क्यों प्रान्तीयता की बाधा खड़ी करते हैं? यह पूर्वाग्रह उनके अनुसार सर्वथा अनुचित और अस्वीकार्य था। उनके अपूर्व व्यक्तित्व का साक्षी था उनका कोमल और भावुक कवि हृदय जो कैशोर्य से ही कविता की ओर झुका था।
प्रारम्भ में ईश तथा श्वेताश्वतर उपनिषदों का हिन्दी काव्यानुवाद और फिर कविताओं का संग्रह 'प्रतिबिम्ब'। अप्रकाशित काव्यरचनाओं के विषय में कहते "कुछ मेरी मृत्यु के बाद के लिए भी रहने दो"। स्वामी जी का धर्म मानव धर्म था, सम्पूर्ण मानव जाति के लिए कल्याणकारी। उसी धर्म के समर्थन में वे गङ्गा और टेम्स को समान पवित्र मानते थे, कश्मीर और स्विटजरलैण्ड को समान आकर्षक कहते थे। उसी धर्म की प्रतिष्ठापना में उन्होंने पुस्तक लिखी थी – Man and his religion' जो इतनी लोकप्रिय हुई कि विदेशी भाषाओं में भी उसके अनुवाद हुए।