स्वातन्त्र्य श्री हिंदी पुस्तक | Svatantrya Shri Hindi Book PDF Download :
भारत एक महान् राष्ट्र. एक चिरन्तन भूभाग । विश्व के मानचित्र पर जब हम अध्यात्म, करुणा, मैत्री, सहिष्णुता, विश्वबन्धुत्व, ज्ञान-विज्ञान आदि श्रेष्ठ सांस्कृतिक मूल्यों से युक्त खोज करते हैं तब जो राष्ट्र दिखाई पड़ता है, वह है - 'भारत'। किसी की विश्व इतिहास के प्राचीनतम कालखण्ड में भारत न केवल विश्वगुरू अपितु विश्वाधिष्ठाता पद की गरिमा से विभूषित था।
सभ्यता प्रसार के प्रथम चरण से ही इस राष्ट्र के उच्च सांस्कृतिक वैभव की कीर्ति पताका दिग्-दिगन्त में फहराती थी। इसी को लक्ष्य कर वैदिक ऋषि के अन्तर्मन ने कहा था- सा प्रथमा संस्कृतिः विश्ववारा (यजुर्वेद, 7/14)। समय चक्र के आघात ने उत्थान की पराकाष्ठा को प्राप्त भारत के स्वर्णिम अतीत को धुंधला किया। प्राकृतिक और भौतिक सम्पदा से आकृष्ट विदेशियों के निरन्तर आक्रमणों ने भारतीय धर्म, संस्कृति, सभ्यता को विकृत किया।
पराजय के भाव ने भारतवासियों की आत्मचेतना और अन्तः विश्वास को समाप्त किया। वैदिक मान्यताएँ तथा औपनिषदिक विलक्षणताएँ विगलित हुईं। साहित्य, संगीत, कला की सुन्दरतम में समा गईं। 'उपलब्धियाँ कालगर्त पराधीनता के इसी क्रम में 16वीं - 17वीं शताब्दी में आंग्ल धर्म यूरोपियनों के माध्यम से भारत भूमि को पदाक्रान्त कर रहा था। भारत की राज्य व्यवस्था और भारत का भविष्य अंग्रेज़ी राज्य के वृद्धिगत प्रभुत्व के अधीन था।
यह वह राज्यसत्ता थी जिसने विश्वविख्यात भारतीय सभ्यता को अर्द्धविकसित कह कर उसका उपहास उड़ाया और यह प्रचारित किया कि भारतवासियों को सभ्य और सुसंस्कृत बनाने का दायित्व अब उनका है। इस दीक्षा की दक्षिणा वसूलने के लिए भारत पर उनका शासन आवश्यक है।
यह सब करते हुए उन्होंने पाश्चात्त्य सभ्यता को समुन्नत कह कर बलात् भारत पर लादा, इतिहास को सत्य-तथ्य से उद्भ्रान्त किया और भारत को कर कंगाल कर दिया। शहीद अज़ीम उल्ला, सन् 1857 समय ही इतिहास का प्रत्युत्तर होता है। आर्थिक शोषण से उपजी खिन्नता और अत्याचारों की असह्य कसक से विक्षुब्ध भारतीय मन ने एकजुट होकर पराधीन राष्ट्र को स्वाधीन कराने के लिए स्वदेश में महायज्ञ प्रारम्भ किया।
इस विशाल यज्ञ की अग्नि की उष्णता से विदेशवासी भारतीय भी अछूते न रहे। अस्तु, इस यज्ञ में पूर्णाहुति पड़ी 15 अगस्त, सन् 1947 को- देश स्वतन्त्र हुआ, भारत पर इंग्लैण्ड का शासन समाप्त हुआ। भारत से ब्रिटिश सरकार गई परन्तु देश को कर, उसे क्षत-विक्षत करते हुए। सचमुच वे खुशियाँ मनाने के दिन थे लेकिन विभाजन की त्रासदी ने उन्हें भयंकर दुःख के दिनों का रूप दे दिया।
Book | स्वातन्त्र्य श्री | Svatantrya Shri |
Author | Dr Urmila Shrivastava |
Language | Hindi |
Pages | 396 |
Size | 109 MB |
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Category | History Politics |