सरल भौतिकी गति - ऊष्मा हिंदी पुस्तक पीडीएफ | Saral Bhautiki Gati - Ushma Hindi Book PDF Download
पाठक यह पुस्तक हाथ में लेने के बाद सबसे पहले स्वयं से यह प्रश्न करेगा कि यह सरल भौतिकी " किस पाठक वर्ग के लिए है। " वास्तव में इस पुस्तक के नाम में कुछ प्रत्युक्ति तो है। इस पुस्तक को समझने के लिए प्रारम्भिक बीजगणित का ज्ञान ही काफ़ी होगा। भौतिक विज्ञान का ज्ञान ज़रूरी नहीं है। हो सकता है कि यह पुस्तक इस विषय पर आपके लिए पहली पुस्तक हो, परन्तु यह उन लोगों के लिए भी रुचिकर सिद्ध होगी जो भौतिक विज्ञान के विशेषज्ञ हैं। हमने इस पुस्तक को सरल और साधारण भाषा में लिखने का प्रयत्न किया है तथा पाठकों से कहीं कहीं हंसी मजाक भी किया है। इसका अर्थ यह नहीं है कि हमारी किताब "सरल भौतिकी " एक आसान पुस्तक है। इसके कुछ पन्नों को बहुत समय लगाकर और एकाग्रचित होकर पढ़ना पड़ेगा।
कारण यह है कि भौतिक विज्ञान को समझने के लिए प्रायः सघन- रूप से और गहराई में सोचना पड़ता है। भौतिक विज्ञान के आधारभूत नियमों एवं संकल्पनाओं पर अधिक ध्यान दिया गया है। जीवन और तकनीक के क्षेत्रों में से उदाहरणों को न भूलने का पूरा प्रयास किया गया है और व्यावहारिक भौतिक विज्ञान के विशाल क्षेत्र की बारीकियों में न पड़ने की कोशिश की गई है। भौतिक विज्ञान की व्यावहारिक प्रयुक्तियों की चर्चा किए बिना ही उसके मूल सिद्धान्तों के बारे में कुछ ऐतिहासिक सूचनाएं दी गयी हैं। फिलहाल यह पुस्तक " सरल भौतिकी" भौतिक विज्ञान के उस भाग के विषय में है जो यांत्रिक एवं आणविक गति से सम्बन्धित है।
हम आशा करते हैं कि इसी शीर्षक के अर्न्तगत पाठक को भविष्य में विद्युत, प्रकाश और आण्विक संरचना पर भी पुस्तकें पढ़ने को मिलेंगी। जैसे-जैसे व्यापार विकसित होता गया, वैसे-वैसे माप के मानकों को निर्धारित करने की आवश्यकता बढ़ती गई। शुरू में किसी विशेष बाज़ार के लिए, फिर शहर और उसके बाद सारे देश के लिये और अन्त में विश्वभर के लिए लम्बाई और भार के मानक निश्चित किए जाने लगे। मानक माप का प्रतिदर्श है पैमाना और बाट । हर सरकार अपने देश के मानकों को सावधानी से सम्भाल कर रखती है और प्रचलित पैमाने या बाट इन मानकों की सही नक़ल होते हैं।
ज़ारवादी रूस में भार और लम्बाई के मात्रकों को पौंड और प्रशन (जो लम्बाई में 28 इंच के बराबर होता है) कहते थे। 19 वीं शताब्दी में मापने की परिशुद्धता की आवश्यकताएं बढ़ीं और ये मानक त्रुटिपूर्ण सिद्ध हुए। परिशुद्ध मानक बनाने का जटिल और उत्तरदायित्वपूर्ण काम 1893 - 1898 के दौरान मीत्रीय इवानोविच मेन्देलेयेव के निर्देशन में पूरा किया गया। महान रसायनज्ञ ने परिशुद्ध मात्रक बनाने पर बहुत महत्व दिया। उनकी पहल पर 19 वीं शताब्दी के अन्त में नाप और तौल विभाग की स्थापना हुई जहां मानक सम्भालकर रखे गये। इसी विभाग की देख- रेख में ही मानकों की नक़ल उतारी जाती थी यानी प्रचलित पैमाने और बाट बनाये जाते थे।
कुछ दूरियों को बड़े और कुछ को छोटे मात्रकों में नापते हैं। यह तो उसी प्रकार है जैसे हम मास्को से लेनिनग्राद तक की दूरी सेंटीमीटरों में नहीं नायेंगे और रेलगाड़ी का भार ग्रामों में नहीं लेंगे। इसी कारण बड़े और छोटे मात्रकों के बीच निश्चित अनुपात का भी निर्धारण किया गया। जैसा कि मालूम है, मात्रकों की उस पद्धति में जो सोवियत संघ में प्रचलित है, बड़े मालक छोटे मात्रकों से दस गुना सौ गुना हज़ार गुना, दस हज़ार गुना बड़े हैं। ऐसी प्रणाली सुविधाजनक है तथा इसका प्रयोग सब परिकलनों को आसान बनाता है। इंगलैंड और संयुक्त राज्य अमरीका में पीटर, सेंटीमीटर या किलोमीटर तथा ग्राम और किलोग्राम का अभी भी बहुत कम उपयोग होता है। हालांकि मीटरी पद्धति की सुविधा स्पष्ट है।
17 वीं शताब्दी में एक ऐसे मानक बनाने पर विचार किया गया जो प्रकृति में उपलब्ध हो तथा वर्षों और शताब्दियों में भी न बदले । क्रिस्टियन गूगेंस ने सन् 1664 में लोलक की उस लम्बाई को मानक मानने का प्रस्ताव रखा जिसके बराबर लोलक एक सेकण्ड में एक चक्कर पूरा करे। इसके लगभग 100 साल बाद यानी सन् 1771 में उस दूरी को लम्बाई का मापक मानने का प्रस्ताव रखा गया जो मुक्त रूप से गिरता हुआ पिंड एक सेकण्ड में तय करता है। लेकिन ये दोनों मानक असुविधाजनक सिद्ध हुए और इसलिए इन्हें मान्यता नहीं मिली। आधुनिक मानकों को जन्म देने के लिए एक क्रांति की जरूरत पड़ी। किलोग्राम और मीटर फ्रांस की महान क्रान्ति की उपज हैं।
सन् 1790 में एक संस्थानीय सभा ने मात्रकों की इकाइयों के निर्धारण के लिए एक समिति बनायी। इस समिति के सदस्य प्रसिद्ध भौतिकविद और गणितविद थे। लम्बाई नापने के लिए समस्त रूपान्तरों में से मीटर को ही चुना गया जो भूयाम्योत्तर रेखा (terrestrial meridian) के एक चौथाई भाग का एक करोड़वां हिस्सा है। सन् 1799 में मीटर का मानक तैयार किया गया जो गणतन्त्र (फांस) के अभिलेखागार में संभाल कर रखा है।
Book | सरल भौतिकी गति - ऊष्मा | Saral Bhautiki Gati - Ushma |
Author | L. D. Landau, A. I. Kitaigorodsky |
Language | Hindi |
Pages | 445 |
Size | 22 MB |
File | |
Category | Hindi Books, Science |
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