कर्म रहस्य हिंदी पुस्तक पीडीएफ | Karm Rahasya Hindi Book PDF



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कर्म रहस्य हिंदी पुस्तक पीडीएफ | Karm Rahasya Hindi Book PDF Download

हमें प्रारब्धानुसार जो मनुष्योति मिलती है, उसमें भी भगवान्का अहेतुक स्नेह प्रकट होता है। ऊपर कह आये है कि मनुष्य के जीवन के अन्तमें जो संस्कार उठता है, प्रधानता देकर प्रारब्योंकी एक बनती है जो मनुष्य जीवनपर समाप्त होती है। हमारे जन्म-जन्मान्तरके अपार संस्कार हैं, अतः श्रृंखला कितनी लम्बी बनेगी इसका कुछ ठिकाना नहीं लेकिन भगवदीय विधान ऐसा है कि खाना जितनी छोटी बन सकती है, उतनी छोटी ही बनती है। अन्तिम संस्कार को प्रधानता देकर भोग-योनियों के प्रारब्ध इस प्रकार एकत्र होते हैं, जिससे निकट निकट मनुष्य योनिका प्रारब्ध आवे इसका अर्थ है कि भगवान् बार-बारीको अवसर देते हैं कि यह भक्तिका प्रयत्न करे और सचितके दूषित संस्कारों नष्ट कर सके। 

गहना कर्मणो गतिः कर्मको गति अत्यंत गम्भीर है। किस कर्मका क्या फल होगा, यह बताना सरल नहीं है। इलनेयर भी कुछ नियम तो है ही कर्मके फलका नियम बहुत कुछ प्रतिध्वनि या प्रतिक्रिया के समान है। जैसे आप एक गेंद एक दीवालपा मारते है। गेंद जितने वेग दीवालसे टकरायेगा आने ये आपकी ओर लौटेगा। इसी प्रकार कर्मको प्रतिक्रिया होती है। आपने दूसरोंको विद्यादान की है तो आपको विद्या प्राप्त होगी। आपने दूसरों को धनहीन किया है तो आप निर्धन होंगे। आप बच्चों को प्रसन्न करते हैं तो दूसरे जन्यमें आपको बच्चे मिलेंगे और वे आपको प्रसन्न करेंगे। प्रतिक्रियात्मक गतिकै साथ कर्मफलमें योग्यता और उपयोग भी फल देता है। आपको भगवान् बुद्धि, कल शक्ति, वन दिया। 

आप इनका सदुपयोग करेंगे तो आप इनके अधिकारी सिद्ध हो ये आपको और अधिक मिलेंगे। आप इनका दुरुपयोग करेंगे अपनेको अनाधिकारी सिद्ध करेंगे और ये आपसे छीन लिये जायेंगे। प्रायश्चित कर्म इस नियमके अपवाद स्वरूप है। ये पापकर्मके परिणामको नष्ट कर देते हैं। काम्यकर्म ऐसे नहीं है ये तो नूतन पुण्याकर्म हैं जो प्रारव्यमें सम्मिलित होकर फल देते हैं। ऋषियोंने विशेष पापों के लिए विशेष प्राथति निश्चित किये है। संकल्पपूर्वक उस पाप परिणामको नष्ट करनेके लिए यही प्रायश्चित करना पड़ता है। यदि पुण्य-कम पापकर्माका नाश होता तो विशेष पापके लिए विशेष प्रायश्चित विधानकी आवश्यकतान होती। नियम यह है कि यदि गतिको रोकने वाली शक्ति न हो तो गति बराबर बनी रहेगी। 

हमारे कोंके लिए कोई निरोधक शक्ति तो है नहीं। हम जैसे कर्म करते हैं, उनके संस्कार वैसी ही प्रतिक्रियात्मक गति उत्पन्न कर देते हैं। इस प्रकारके कर्म चक्र जीव पड़े हैं। बार-बार कर्म और बार-बार फल भोग यह जन्म-मरणका चक्र समाप्त ही नहीं होता यही प्रयत्नही समाप्त हो सकता है। कर्म संस्कारका निरोधकन इसके लिए आवश्यक है। बच्चों के सम्बन्धमें प्रायः यह देखा जाता है कि यह नहीं बताता कि मैं पूर्व जन्यमें पशु था इस कारण विद्यासोफिस्ट- पतने मान लिया कि मनुष्य मरनेके पश्चात् मनुष्य ही होगा यह मान्यता दोष पूर्ण है। अपरिचको स्थिरता मनुष्य जीवन ही सम्भव है। 

दूसरी योनियों तो भोगयोनि है। अतएव अपरिग्रहके कारण पूर्वजन्मका ज्ञान मनुष्यको ही सम्भव है। जो पहिले मनुष्य ये और कारण मरणके समय में अपरिग्रह पूर्ण हो गया, उन्हीं को इस जन्म पूर्वका ज्ञान होता है। यदि इस जन्य से मनुष्य तो उनके ज्ञानका हमें पता लगता है। यदि वे इस जन्ममें मनुष्य न हुए तो उन्हें पूर्वजन्मका ज्ञान तो होता है, पर उसे हम-आप जान नहीं सकते जो पूर्व जन्ममें पशु उनके लिए अपरिग्रह सम्भव नहीं आए इस जन्म मनुष्य होनेपर भी उनको पूर्वजन्मका होगा पीके द्वारा मनमें संयम करके भी पूर्वजन्मका ज्ञान हो सकता है। 

इस प्रकार जिसे पूर्व जन्मका ज्ञान होगा, वह अपने पूर्वके पशुजन्यों को भी जान सकेगा। जातकी कथा इसका प्रमाण है। बच्चे योगी नहीं होते। मायके समाजयोग अवैध दुर्लभ है। यह गंगादि कारणवश ही होता है। अतएव आज ऐसे ही बच्चे पूर्वजन्मका वृत्त कहने वाले मिलते हैं, जो पहिले भी मनुष्य ही थे। जीवन-मरण के इस चक्कर से छुट्टी कैसे मिले? शास्त्रों ने कहा है ज्ञानान्मुक्ति ज्ञानके बिना इस चक्कर से छुटकारा नहीं। ज्ञान दो प्रकारका हो सकता है। 

एक ज्ञान तो इस प्रकारका कि यह सब दृश्य प्रपंच भ्रम है। एक ही परिपूर्ण मत्ता है जैसे पेड़छाड़ नहीं है जैसे दृश्य जगत् सत्य नहीं है। इस प्रकार अपरोक्ष आत्म-साक्षात्कार या इस विश्वास दृढ निष्ठा कि कर्म जगचिन्ता ही कराते हैं। दोनों प्रकार से अहंकार का नाश होने से पुनर्जन्म नहीं होता संचितके संस्कार वित्तपर है के संस्कार अहंकार होते हैं। अहंकार न होनेपर तो बनेंगे और न जागृत होंगे।





Bookकर्म रहस्य / Karm Rahasya
AuthorSudarshan Singh Chakra
LanguageHindi
Pages179
Size20 MB
FilePDF
CategoryHindi Books, Dharma
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