ईशावास्योपनिषद् हिंदी पुस्तक पीडीएफ | Isavasyopanisad Hindi Book PDF



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ईशावास्योपनिषद् हिंदी पुस्तक पीडीएफ | Isavasyopanisad Hindi Book PDF Download

ईशावास्योपनिषद् ज्ञान का दर्पण बन कर कर्म को प्रतिबिम्बित करता है ज्ञान और कर्म की यह तादात्म्यता शक्ति का अजस्र स्रोत बन अध्यात्म की भावधारा को प्रवाहित करती है। सामाजिक आचार संहिता की नीव पर ज्ञान और कर्म की प्रतिष्ठा अध्यात्म की छाँव तले कल्याणमयता का सुखद संसार रचती है। ज्ञान की परिपूर्णता और सत्य के साक्षात्कार के माध्यम से जीवन के चरम तत्त्व की अधिकृति ईशावास्य के ऋषि का अभिप्रेत है । इस अभिप्रेत की सिद्धि में ब्रह्म की कलाएँ सत्यं शिवं सुन्दरं की साकार प्रतिमा बन कर अन्तस्को अमृत से आप्यायित कर देती हैं, आनन्द से आह्लादित कर देती हैं। 

दुर्बोध, गूढ़, नीरस आध्यात्मिक विषय ज्ञान की गाम्भीरता से एक क्षण में गङ्गा का शीतल प्रवाह बन जाता है, माधुर्य और लालित्य से आलोकित अभिप्राय दूसरे क्षण में हिमालय के उत्तुङ्ग शिखर सा सहज अवभासित हो जाता है। ज्ञान और विज्ञान, विद्या और अविद्या, भौतिकता और आध्यात्मिकता के मणिकञ्चन संयोग से समन्वित मन्त्र अमृतत्व की उपलब्धि का अद्भुत सूत्र हाथों में थमा जाते हैं। भोक्ता द्रष्टा बन कर नानात्व में एकत्व की प्रतीति से, द्वैत में अद्वैत की उत्कृष्टतम अभिव्यक्ति-अहं ब्रह्मास्मि हो जाता है।

ईशावास्योपनिषद् के मन्त्र केवल शब्दजाल नहीं रह जाते हैं प्रत्युत् कर्ण कुहरों को पवित्रतम ध्वनियों से गुञ्जित कर देने वाले अनहद नाद बन जाते हैं, श्रुतिपथों को शुभतम विचारों से आप्यायित कर देने वाले मङ्गल स्वर बन जाते हैं। ईशावास्योपनिषद् के मन्त्रपरिचय का संस्कार विगत अनेक वर्षों से संसार व्यस्त मन पर अध्ययन की दस्तक दे रहा था। अवकाश पाते ही अध्यवसाय को आगे कर मस्तिष्क मन्त्रव्याख्यान में व्यस्त होने को आकुल हो उठा, रात्रि जागरण भी परिश्रम के लिए अयाचित मा उपस्थित हो गया। 

अर्थों के माध्यम से विचारों की परिपक्वता अपरिपक्व बुद्धि में भासी तो किन्तु समस्या बन कर, समाधान तो मानों आकाशपुष्प थे। उलझन तो तब होती जब गुत्थियों को सुलझाने को कोशिश करते-करते वे और उलझ जातीं। कल्याणी वाणी के गहन गम्भीर अर्थों में उतर कर पार जाने का प्रयास करते-करते किनारा दूर खिसकता जाता। अज्ञान के आधिक्य से एक-एक मन्त्रपद मेरे अल्पज्ञान की थाह लेने लगता।

क्रिया के गर्भ में प्रतिक्रिया निहित रहती ही है, घोर अन्धकार में विद्युत् की प्राञ्जल रेखा ही आशा बन जाती है। मध्याह्न में उपनिषद् मर्मज्ञ, सम्मान्य पं० मूलचन्द अवस्थी, प्रबन्धक, आर्य कन्या डिग्री कालेज, इलाहाबाद के सान्निध्य में असाध्य रहस्यों को लेकर बैठती; उनकी रुचिर व्याख्याओं में कठिनतम प्रश्न अपने सरलतम उत्तर मानो स्वयं खोज लेते, लेखनी पुनः शब्दों की शक्ति का प्रवाह पा कर लेखन में प्रवृत्त होती। काल के उस विशिष्ट खण्ड में मुझे उपनिषद् -उप +नि+सद् क्विप्-शब्द के विग्रह और व्याख्याएँ सार्थक प्रतीत होते।

वास्तव में ब्रह्मवेत्ता गुरु के चरणों में बैठ कर अज्ञान की निरन्तर निवृत्ति के द्वारा ज्ञान की अधिगम्यता ने कम से कम शास्त्रीय रूप में तो मुझे अग्राह्य को ग्राह्य करवा ही दिया। अज्ञ मैं ऋषियों के स्वानुभूति आधृत तत्त्वचिन्तन का अध्ययन-मनन कर सकी, आन्तरिक पावनता से पूरित पीयूष की किञ्चित् बूदों का पान कर सकी।





Bookईशावास्योपनिषद् | Isavasyopanisad
AuthorDr Urmila Shrivastava
LanguageHindi
Pages141
Size47 MB
FilePDF
CategoryHinduism
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