आदर्श नित्यकर्म विधि हिंदी पुस्तक पीडीएफ | Aadarsh Nityakarma Vidhi Hindi Book PDF



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आदर्श नित्यकर्म विधि हिंदी पुस्तक पीडीएफ | Aadarsh Nityakarma Vidhi Hindi Book PDF Download

किसी भूभाग पर उद्यान लगाना हो तो उसके लिए भूमि के अनुसार यत्न करना होता है । भूमि समतल करने से लेकर बीज, खाद, पानी डालने के अतिरिक्त उसकी सुरक्षा व अन्यान्य यत्न करने होते हैं । इसी प्रकार मानव माता के गर्भ से बाहर आने के पश्चात् सुकोमल भूमि ही तो है । इसपर जिस प्रकार का उद्यान लगाना हो लगाया जा सकता है । आवश्यकता है तदनुरूप यत्न करने की । हमारा जीवन यज्ञ का प्रतिरूप है । इसके अन्तर्गत प्रतिक्षण सहज यज्ञ हो रहा है । बाहरी यज्ञ के लिए यत्न व कर्म करना होता है । मानव-जीवन के यज्ञीय व सुचारु, सुसंस्कारित सञ्चालन के लिए वेद में विधान विद्यमान है । 

यह ऋषिराज दयानन्द की कृपावर्षिणी वृत्ति के फलस्वरूप हमें सहज प्राप्त है । प्रस्तुत पुस्तक में प्रतिदिन प्रात:काल उठने से लेकर रात्रि शयन करने तक का विधान निहित है। समय-समय पर विशेष पर्व आदि पर करणीय कर्म भी इसमें हैं । व्यक्तिगत कर्मों के साथ कुछ सामाजिक कार्यों के निर्वहनार्थ भी इसमें दिशा-निर्देश हैं । यह यज्ञीय कर्म मानव-जीवन को आभायुक्त व सार्थक बनाते हैं । भक्ति कर भगवान् की काम तेरे जो आयेगी पाप भरी जो आत्मा ऊँची वह उठ जायेगी पर उपकार के भाव हमेशा अपने अन्दर लाता जा दोष जो तेरे जीवन में हैं उनको दूर हटाता जा ज्योति फिर आनन्द की अन्दर ही जग जायेगी । 

अमृत वेला जाग पवित्र हो अपना आसन जमा गुण भगवान् के धारण करके दिन-दिन हो नजदीक तू जा प्रीति प्राणधार की अपना रंग जमायेगी । सत्संगी जो रहा हमेशा ऊपर उठता जायेगा। दर्शन जब भगवान् के होंगे मुक्ति पद को पायेगा तृष्णा बनकर सेविका तेरे चरण दबायेगी । लेकिन गफलत की जो तूने इतना देश ध्यान रहे दुनिया तेरा साथ न देगी साथी न भगवान् रहे ममता माया की तुझे उल्टा नाच नचायेगी । प्रभु दर्शन करने आये थे, प्रभु दर्शन करना भूल गये । वेदोक्त डगर पर जाना था, उस पथ पर जाना भूल गये । 

मानव जीवन को पाकर भी, यह उलझन हमसे न सुलझी । अन्तरयामी का अन्दर ही, हम ध्यान लगाना भूल गये । यम नियमों के साधन द्वारा, अपने को निर्मल कर न सके। ऋषियों की भाँति ज्योति से, ज्योति का मिलाना भूल गये अपनी ही अविद्या के कारण, भगवान् को समझा दूर सदा । खुद खेले पापाचारों में, शुभ कर्म कमाना भूल गये । उल्टी मतियों के मतवाले, बँट गये अनेकों भागों में । बन करके मानव-मानव में, मानवता लाना भूल गये । धरती के मानव जितने हैं, भाइयों का सबसे नाता था ।

हम हिंसावादी बन बैठे, देवों का जमाना भूल गये । भूलें सुलझाने देश की, फिर प्रभुभक्त दयानन्द आये थे । ऐसे उपकारी नेता की, आज्ञा का निभाना भूल गये । सोचा है कभी बैठ अकेले दुनिया में क्यों आया है। कितना जीवनकाल में बन्दे सेवा धर्म कमाया है बचपन खोथा खेल-कूद और यौवन मस्त जवानी में जालिम जुल्म कमाये कितने आकर दुनियादारी में पापों के इस जाल में फँसकर अपने आप भुलाया है । 

बनके पतंगा खुद को झोंका विषयों की है आग में मद कर्मों की मेख लगा दी शुभ कर्मों के भाग में नरतन हीरे को क्यों मूरख यूँ ही खाक मिलाया है । हुए सहसा इस धरती पर लाखों योद्धा हो गये पता नहीं है उनका चलता किस सय्या पर सो गये मौत के पंजे से हममें जग में कोई नहीं बचा पाया है । सोच समझले अब तू प्राणी एक दिन यहाँ से चलना है । काल वली जब आकर पकड़े हाथों को फिर मलना हैं । ईश्वर चरणों में लग प्राणी चमन ने यूँ समझाया है ।





Bookआदर्श नित्यकर्म विधि | Aadarsh Nityakarma Vidhi
AuthorSwami Jagdishwaranand Saraswati
LanguageHindi
Pages197
Size12 MB
FilePDF
CategoryBhakti Dharma
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