51 चालीसा संग्रह (आरती सहित) हिंदी पुस्तक पीडीएफ | 51 Chalisa Sangrah (Aarti Sahit) Hindi Book PDF



51 Chalisa Sangrah (Aarti Sahit) Hindi Book PDF


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जय जय जय गणपति गणराजू, मंगल भरण करण शुभ काजू । जय गजबदन सदन सुखदाता, विश्वविनायक बुद्धि विधाता । वक्रतुण्ड शुचि शुण्ड सुहावन, तिलक त्रिपुण्ड भाल मन भावन । राजत मणि मुक्तन उर माला, स्वर्ण मुकुट शिर नयन विशाला । पुस्तक पाणि कुठार त्रिशूलं, मोदक भोग सुगन्धित फूलं । सुन्दर पीताम्बर तन साजित, चरण पादुका मुनि मन राजित। धनि शिव सुवन षडानन भ्राता, गौरी ललन विश्व विख्याता । ऋद्धि सिद्धि तव चंवर सुधारे, मूषक वाहन सोहत द्वारे । कहौं जन्म शुभ कथा तुम्हारी, अति शुचि पावन मंगलकारी । 

एक समय गिरिराज कुमारी, पुत्र हेतु तप कीन्हों भारी । भयो यज्ञ जब पूर्ण अनूपा, तब पहुँच्यो तुम धरि द्विज रूपा । अतिथि जानि के गौरी सुखारी, बहु विधि सेवा करी तुम्हारी । अति प्रसन्न है तुम वर दीन्हा, मातु पुत्र हित जो तप कीन्हा । मिलहिं पुत्र तुहि, बुद्धि विशाला, बिना गर्भ धारण यहि काला । गणनायक गुण ज्ञान निधाना, पूजित प्रथम रूप भगवाना । अस केहि अन्तर्धान रूप है, पलना पर बालक स्वरूप है। बनि शिशु रुदन जबहिं तुम ठाना, लखि मुख सुख नहिं गौरी समाना । सकल मगन सुख मंगल गावहिं नभ ते सुरन सुमन वर्षावहिं । शम्भु उमा बहु दान लुटावहिं सुर मुनिजन सुत देखन आवहिं ।

लखि अति आनन्द मंगल साजा, देखन भी आए शनि राजा । निज अवगुण गनि शनि मन माहीं, बालक देखन चाहत नाहीं । गिरिजा कछु मन भेद बढ़ायो, उत्सव मोर न शनि तुहि भायो । कहन लगे शनि मन सकुचाई, का करिहों शिशु मोहि दिखाई। नहिं विश्वास उमा उर भयऊ, शनि सों बालक देखन काऊ । पड़तहिं शनि दृगकोण प्रकाशा, बालक सिर उड़ि गयो अकाशा । गिरिजा गिरी विकल है धरणी, सो दुख दशा गयो नहिं वरणी । हाहाकार मच्यो कैलाशा, शनि कीन्हों लखि सुत का नाशा । तुरत गरुड़ चढ़ि विष्णु सिधाये, काटि चक्र सो गजशिर लाये । 

बालक के धड़ ऊपर धारयो, प्राण मन्त्र पढ़ि शंकर डारयो । नाम 'गणेश' शम्भु तब कीन्हें, प्रथम पूज्य बुद्धि निधि वर दीन्हें। बुद्धि परीक्षा जब शिव कीन्हा, पृथ्वी कर प्रदक्षिणा लीन्हा । जय गणेश जय गणेश जय गणेश देवा, माता जाकी पार्वती पिता महादेवा । पान चढ़ें फूल चढ़ें और चढ़ें मेवा, लडुवन का भोग लगे सन्त करे सेवा । एकदन्त दयावन्त चार भुजा धारी, मस्तक सिन्दूर सोहे मूसे की सवारी । अन्धन को आंख देत कोढ़िन को काया, बांझन को पुत्र देत निर्धन को माया । दीनन की लाज राखो शम्भु सुत वारी, कामना को पूरा करो जग बलिहारी । जय गणेश जय गणेश जय गणेश देवा ।

श्री रघुवीर भक्त हितकारी, सुनि लीजै प्रभु अरज हमारी। निशि दिन ध्यान धेरै जो कोई, ता सम भक्त और नहिं होई । ध्यान धरे शिवजी मन माहीं, ब्रह्मा इन्द्र पार नहिं पाहीं । जय जय जय रघुनाथ कृपाला, सदा करो सन्तन प्रतिपाला । दूत तुम्हार वीर हनुमाना, जासु प्रभाव तिहूँ पुर जाना । तव भुज दण्ड प्रचण्ड कृपाला, रावण मारि सुरन प्रतिपाला । तुम अनाथ के नाथ गोसाईं, दीनन के हो सदा सहाई । ब्रह्मादिक तव पार न पावैं, सदा ईश तुम्हरो यश गावैं । 

चारिउ वेद भरत हैं साखी, तुम भक्तन की लज्जा राखी । गुण गावत शारद मन माहीं, सुरपति ताको पार न पाहीं । नाम तुम्हार लेत जो कोई, ता सम धन्य और नहिं होई । राम नाम है अपरम्पारा, चारिउ वेदन जाहि पुकारा । गणपति नाम तुम्हारो लीन्हौ, तिनको प्रथम पूज्य तुम कीन्हौ । शेष रटत नित नाम तुम्हारा, महि को भार शीश पर धारा । फूल समान रहत सो भारा, पाव न कोउ तुम्हारो पारा । भरत नाम तुम्हरो उर धारो, तासों कबहु न रण में हारो । नाम शत्रुहन हृदय प्रकाशा, सुमिरत होत शत्रु कर नाशा ।





Book51 चालीसा संग्रह / 51 Chalisa Sangrah
AuthorRandhir Prakashan
LanguageHindi
Pages281
Size38 MB
FilePDF
CategoryBhakti Dharma
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