व्याध गीता हिंदी पुस्तक पीडीएफ | Vyadha Gita Hindi Book PDF Download
ततो युधिष्ठिरो राजा मार्कण्डेयं महाद्युतिम् । पप्रच्छ भरतश्रेष्ठ धर्मप्रश्नं सुदुर्विदम् ।। श्रोतुमिच्छामि भगवन् स्त्रीणां माहात्म्यमुत्तमम् । कथ्यमानं त्वया विप्र सूक्ष्मं धर्म्यं च तत्त्वतः ॥ प्रत्यक्षमिह विप्रर्षे देवा दृश्यन्ति सत्तम । सूर्याचन्द्रमसौ वायु पृथिवी वह्निरेव च ॥ पिता माता च भगवन् गुरुरेव च सत्तम । यच्चान्यद् देवविहितं तच्चापि भृगुनन्दन ॥ अर्थ : वैशम्पायनजी कहते हैं- भरतश्रेष्ठ जनमेजय! तदनन्तर राजा युधिष्ठिरने महातेजस्वी मार्कण्डेय मुनिसे धर्मविषयक प्रश्न किया, जो समझनेमें अत्यन्त कठिन ।। वे बोले-'भगवन्! मैं आपके मुखसे (पतिव्रता) स्त्रियोंके सूक्ष्म, धर्मसम्मत एवं उत्तम माहात्म्यका यथार्थ वर्णन सुनना चाहता हूँ ।। भगवन्! श्रेष्ठ ब्रह्मर्षे! इस जगत् में सूर्य, चन्द्रमा, वायु, पृथिवी, अग्नि, पिता, माता और गुरु- ये प्रत्यक्ष देवता दिखायी देते हैं। भृगुनन्दन ! इसके सिवा अन्य जो देवतारूपसे स्थापित देवविग्रह हैं, वे भी प्रत्यक्ष देवताओंकी ही कोटिमें हैं ।।
मान्या हि गुरवः सर्वे एकपत्न्यस्तथा स्त्रियः । पतिव्रतानां शश्रूषा दुष्करा प्रतिभाति मे ।। पतिव्रतानां माहात्म्यं वक्तुमर्हसि नः प्रभो निरुद्धय चेन्द्रियग्रामं मनः संरुध्य चानघ । पतिं दैवतवच्चापि चिन्तयन्त्यः स्थिता हि याः भगवन् दुष्करं त्वेतत् प्रतिभाति मम प्रभो ॥ अर्थ : समस्त गुरुजन और पतिव्रता नारियाँ भी समादरके योग्य हैं। पतिव्रता स्त्रियाँ अपने पतिकी जैसी सेवा-शुश्रूषा करती हैं; वह दूसरे किसीके लिये मुझे अत्यन्त कठिन प्रतीत होती है ।। प्रभो! आप अब हमें पतिव्रता स्त्रियोंकी महिमा सुनावें निष्पाप सहर्ष ! जो अपनी इन्द्रियोंको संयममें रखती हुई मनको वशमें करके अपने पतिका देवताके समान ही चिन्तन करती रहती हैं, वे नारियाँ धन्य हैं। प्रभो ! भगवन्! उनका वह त्याग और सेवाभाव मुझे तो अत्यन्त कठिन जान पड़ता है ।।
मातापित्रोश्च शुश्रूषा स्त्रीणां भर्तरि च द्विज । स्त्रीणां धर्मात् सुघोराद्धि नान्यं पश्यामि दुष्करम् ।। साध्वाचाराः स्त्रियो ब्रह्मन् यत् कुर्वन्ति सदाऽऽदृताः । दुष्करं खलु कुर्वन्ति पितरं मातरं च वै ।। एकपत्न्यश्च या नार्यो याश्च सत्यं वदन्त्युत । अर्थ : ब्रह्मन्! पुत्रोंद्वारा माता- पिताकी सेवा तथा स्त्रियोंद्वारा की हुई पतिकी सेवा बहुत कठिन है। स्त्रियोंके इस कठोर धर्मसे बढ़कर और कोई दुष्कर कार्य मुझे नहीं दिखायी देता है ।। समाजमें सदा आदर पानेवाली सदाचारिणी स्त्रियाँ जो महान् कार्य करती हैं। वह अत्यन्त कठिन है। जो लोग पिता-माताकी सेवा करते हैं उनका कर्म भी बहुत कठिन है। पतिव्रता तथा सत्यवादिनी स्त्रियाँ अत्यन्त कठोर धर्मका पालन करती हैं ।।
कुक्षिणा दश मासांश्च गर्भं संधारयन्ति याः ।। नार्यः कालेन सम्भूय किमद्भततरं ततः । संशयं परमं प्राप्य वेदनामतुलामपि ।। प्रजायते सुतान् नार्यो दुःखेन महता विभो । पुष्णन्ति चापि महता स्नेहेन द्विजपुङ्गव ।। अर्थ : स्त्रियाँ अपने उदरमें दस महीनेतक जो गर्भ धारण करती हैं और यथासमय उसको जन्म देती हैं, इससे अद्भुत कार्य और कौन होगा? ।। भगवन्! अपनेको भारी प्राणसंकटमें डालकर और अतुल वेदनाको सहकर नारियाँ बड़े कष्टसे संतान उत्पन्न करती हैं! विप्रवर! फिर बड़े स्नेहसे उनका पालन भी करती हैं ।।
याश्च क्रूरेषु सत्त्वेषु वर्तमाना जुगुप्सिताः । स्वकर्म कुर्वन्ति सदा दुष्करं तच्च मे मतम् ॥ क्षत्रधर्मसमाचारतत्त्वं व्याख्याहि मे द्विज । धर्मः सुदुर्लभो विप्र नृशंसेन महात्मनाम् ।। अर्थ : जो सती-साध्वी स्त्रियाँ क्रूर स्वभावके पतियोंकी सेवामें रहकर उनके तिरस्कार का पात्र बनकर भी सदा अपने सती-धर्मका पालन करती रहती हैं, वह तो मुझे और भी अत्यन्त कठिन प्रतीत होता है ।। ब्रह्मन् ! आप मुझे क्षत्रियोंके धर्म और आचारका तत्त्व भी विस्तारपूर्वक बताइये । विप्रवर ! जो क्रूर स्वभावके मनुष्य हैं, उनके लिये महात्माओंका धर्म अत्यन्त दुर्लभ है ।।
हन्त तेऽहं समाख्यास्ये प्रश्नमेतं सुदुर्वचम् । तत्त्वेन भरतश्रेष्ठ गदतस्तन्निबोध मे ।। मातृस्तु गौरवादन्ये पितॄनन्ये तु मेनिरे । दुष्करं कुरुते माता विवर्धयति या प्रजाः ।। अर्थ : मार्कण्डेयजी बोले- भरतश्रेष्ठ ! तुम्हारे इस प्रश्नका विवेचन करना यद्यपि बहुत कठिन है, तो भी मैं अब इसका यथावत् समाधान करूँगा। तुम मेरे मुखसे सुनो ।। कुछ लोग माताओंको गौरवकी दृष्टिसे बड़ी मानते हैं। दूसरे लोग पिताको महत्त्व देते हैं। परंतु माता जो अपनी संतानोंको पाल-पोसकर बड़ा बनाती है, वह उसका कठिन कार्य है ।।
Book | व्याध गीता / Vyadha Gita |
Author | Vyasadeva |
Language | Hindi |
Pages | 83 |
Size | 0.6 MB |
File | |
Category | Hindi Books, Hinduism |
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