विवाह विज्ञान और कामशास्त्र हिंदी पुस्तक पीडीएफ | Vivah Vigyan Aur Kam Shastra Hindi Book PDF Download
जिसने अपने कर्त्तव्य से शिव ब्रह्मा और विष्णु को भी स्त्रियो के प्रेम के कारण गृहकार्य करने के लिये दास बना रक्खा है। और जो विचित्र चरित्र मे परम चतुर और विलक्षण है। जिसकी चतुरता का वर्णन नही हो सकता ऐने भगवान कामदेव को बारम्वार नमस्कार है। कुसुमायुधधारी कामदेव की महिमा अपार है जिस समय वह अपना प्रचण्ड वेग धारण करता है उस समय देव- वाओं तक की बुद्धि ठिकाने नही रहती वे भी विषयान्ध हो जाते है। जब जब कामदेव ने अपना उग्ररूप धारण किया तो बड़े बड़े योगी और तपस्वी भी उसके वश में हो गये साधारण पुरुषो की क्या गिनती है। जो महात्मा विश्व को ब्रह्ममय देखते थे वे उसे स्त्रीमय देखने लगे। कभी कभी कामदेव ने देवताओं तक को वह कौतुक दिखलाया कि तमाम ससार काममय हो गया।
जब ऐसे ऐसे बलवान् और ज्ञानवान् देवताओ तपस्वियों महर्पियो और योगिराजो तथा विद्वानों तक को कामदेव ने नाच नचा दिया और उन्हे स्त्रियो का दास बना दिया तो साधारण मनुष्यों की क्या गिनती है। स्त्रिया प्रत्यक्ष रति का स्वरूप और सृष्टि की उन्नति का मूल कारण है, उन्ही के द्वारा मनुष्य मात्र की उत्पत्ति होती है इसीलिये विवि ने उनमे सौन्दर्य की विशेषता रक्खी है। उनके अग अग से लावण्यता और मोहकता टपकती है। उनमें वह आकर्षण होता है जिसकी शक्ति चुम्बक से भी अधिक होती है। अर्थात् स्त्रियां कामदेव की मुद्रा है, वे सब अर्थ और सम्पत्ति की करने वाली हैं जो मूढ़ कुबुद्धि उन्हें छोड़कर स्वर्गादि की इच्छा से निकल भागते हैं वे मिथ्याफल के खोजने वाले हैं।
जिस नारी जाति को आज पुरुष उपेक्षा की दृष्टि से देखते है उसकी महिमा शास्त्रकारों ने मुक्त कंठ से गाई है। यदि स्त्री के प्रेम मे इतना प्रभाव न होता तो शिव और श्रीकृष्ण आदि तक इसप्रकार स्त्री के प्रेम मे मग्न न होते। देवता और वड़े बड़े महर्षि तक स्त्रियों का आदर करते थे उनके प्रेम वन्धन मे वधे हुए थे। पढ़िये शिव जी के पत्नी मोह की कथा। सती राजा दक्ष प्रजापतिकी कन्या थीं इनकी सुन्दरता संसार मे विख्यात थी। सती का विवाह शिव जी के साथ हुआ था, विवाह के पश्चात् सती कैलाशपति शिव जी के यहां आकर बड़े आनन्द से रहने लगी।
यद्यपि शिवजी के यहां किसी बात की कमी न थी परन्तु सती के शरीर पर गेरुए कपड़े और आभूषणों की जगह गले में रुद्राक्ष की माला, हाथों में भी रुद्राक्ष के आभूषण सौन्दर्य की शोभा बढ़ा रहे थे। शिवजी और सती मे इतना विक प्रेम था कि एक दूसरे से क्षण भर को भी अलग न होते थे। एक बार सती के पिता ने बड़ा भारी यज्ञ किया जिसमे भारत वर्ष भर के धनी निर्धन मूर्ख विद्वान सभी को निमंत्रण दिया परन्तु अपनी प्यारी पुत्री सती और उनके पति शिवजी को नहीं बुलाया। जब सती को यह बात नारद जी से मालूम हुई और यज्ञ का दिन निकट गया तब एक दिन सती ने अपने पति शिवजी से पिता के यहाँ जाने की आज्ञा मांगी।
शिवजी ने कहा बिना बुलाए पिता के यहाँ किसी ऐसे उत्सव मे जाना उचित नही है क्योकि उन्होने समस्त देश के मनुष्यो को निमंत्रण भेजा हैं परन्तु हमारा तुम्हारा नाम भी नहीं लिया। यो साधारण समय मैं तुम जाना चाहती तो मुझे कोई इनकार न था परन्तु ऐसे समय मैं न बुलाना हमलोगों का अपमान करना है इस समय यदि तुम बिना बुलाये जायोगी तो तुम्हारा का अपमान होगा। तुम्हारे पिता ने हम लोगो का अपमान करने के लिये ही यह यत्र किया है ऐसा मेरा न्याल है। इस कारण बिना बुलाये तुम जायोगी तो तुम्हारा अपमान होगा. तुम्हे पछताना पडेगा, तुम्हारा अपमान होने ने मेरा अपमान होगा।
सनी ने प्रार्थना की कि हे स्वामिन ! पुत्री यदि पिता के यहां बिना बुलाये भी चली जाये तो अपमान नहीं होता क्योंकि पिता या पर भी तो अपना ही घर है। पुत्री के लिये पिता निमत्रण भेजे न भेजे पुत्री को जाने में मेरे विचार में तो कुछ अपमान की चान नही होनी चाहिये। इस पर शिवजी ने कहा- इस विषय मे अधिक कहने सुनने की कोई बात नहीं है यदि तुम्हारी इच्छा जाने की ही है तो मैं मना भी नहीं कर सकता चली जाओ। शिवजी की आधा पाकर सती ने पिता के घर जाने की तैय्यारी की। जब चलने लगी तब शिवजी ने फिर समझाया कि देखो वहां जाकर जो कुछ भी कार्य करना वह बड़े विचार से करना और समय का हर समय ध्यान नाव कार्य समय का विचार करके करना।
Book | विवाह विज्ञान और कामशास्त्र / Vivah Vigyan Aur Kam Shastra |
Author | unknown |
Language | Hindi |
Pages | 704 |
Size | 20 MB |
File | |
Category | Science |
Download | Click on the button below |