प्रतिमा विज्ञान हिंदी पुस्तक पीडीएफ | Pratima Vigyan (iconography) Hindi Book PDF Download
प्रतिमा शास्त्र की समीक्षात्मक व्याख्या का हिन्दी में यह प्रथम प्रयत्न है। अंग्रेजी में इस विषय के कतिपय प्रसिद्ध एवं प्रमाणिक ग्रन्थ हैं जिनमें गोपीनाथ राव के चार बृहदाकार ग्रन्थ (Elements of Hindu Iconography), श्री वृन्दावन भट्टाचार्य का Indian Images, डा० जितेन्द्रनाथ बैनर्जी का Development of Hindu Iconography विशेष उल्लेख्य हैं। इन ग्रन्थों के विषय प्रतिपादन एवं विषय- समाहार की दृष्टि से 'उत्तर-पीठिका' के विषय प्रवेश में हमने कुछ संकेत किया है। तदनुरूप मुझे यह कहने में शालीनता एवं अविनीतता नहीं अनुभव हो रही है कि भारतीय प्रतिमा- विज्ञान (Indian Iconography) पर आवश्यक एक व्यापक एवं आधार भौतिक दृष्टिकोण से यह प्रथम प्रयत्न है।
इसमें न केवल प्रतिमा- शास्त्र पर ही साङ्गोपाङ्ग संक्षिप्त विवेचन है वरन् प्रतिमा विज्ञान को पृष्ठ भूमि पूजा-परम्परा पर ऐतिहासिक, सांस्कृतिक, धार्मिक एवं दार्शनिक सभी दृष्टिकोणों से एक दशाध्यायी पूर्व पीठिका की अवतारणा की गयी है जो वास्तव में प्रतिमा विज्ञान का मूलाधार है और जिस पर पहले के सूरियों के द्वारा 'पूर्व- सूरिभिः कृतवाग्द्वार' रूपी पर्याप्त पथ-प्रदर्शन नहीं हुआ है। अतएव इस मौलिक श्राधार के मर्म को समझ कर ही प्रयोज्य प्रतिमा विज्ञान के प्रयोजन पूजा-परम्परा पर हमने इस प्रबन्ध में इतना विस्तार किया जो एक प्रकार से प्रति संक्षिप्त है। दोनों पीठिकानों 'पूर्वपीठिका' एवं 'उत्तर- पीठिका' के विषय प्रवेशों में इसी मर्म का उद्घाटन है।
इस दशाध्यायी पूर्व- पीठिका में कतिपय ऐसे विषय हैं— जैसे प्रतिमा-पूजा का स्थापस्य पर प्रभाव - तीर्थ स्थानों एवं देवालयों — देवपीठों का आविर्भाव एवं निर्माण, सांस्कृतिक दृष्टिकोण से प्रतिमा-पूजा की प्राचीनता आदि की मीमांसा - जिन पर सर्वप्रथम इस ग्रंथ में कतिपय मौलिक उद् भावनायें मिलेंगी। अतः यह ग्रन्थ मेरे वास्तु शास्त्रीय अनुसन्धान की पञ्चपुष्पिका माला २ का ही एक पुष्प है अतः प्रतिमा- शास्त्र पर समराङ्गण में अप्राप्य सामग्री का अन्य ग्रन्थों में तो संकलन किया हो गया है इस विषय के एक अनधीत ग्रंथ अपराजित पृच्छा (जो समराङ्गण के समान ही वास्तु शास्त्र का एक प्रौढ़ ग्रंथ है) के प्रतिमा विज्ञान सम्बन्धी कतिपय अंशों के अध्ययन से
विद्वानों के सम्मुख एक नयी सामग्री का दिग्दर्शन है। परम्परागत इस शास्त्र के नाना विषयों के समुद्घाटन में यत्र तत्र सर्वत्र कतिपय नवीन उन्मेषों का दर्शन करने को मिलेगा - उदाहरणार्थं मुद्रा का व्यापक अर्थ, प्रतिमा का वर्गीकरण, सिंहवाहिनी लक्ष्मी की प्रकल्पना एवं स्थापत्य में समन्वय, प्रतिमा निर्माण कला की दो परम्परायें — शास्त्रीय एवं स्थापत्य, अर्चागृह, प्रासाद एवं प्रतिमा, प्रतिमा में रसोन्मेष आदि -आदि के साथ-साथ प्रतिमा के रूप-संयोग को 'मुद्रा' के व्यापक अर्थ में गतार्थ करना एवं षटूत्रिंशद् श्रायुधों तथा पोडश आभूषणों का लक्षण (दे० परिशिष्ट) आदि प्रतिमा विज्ञान के ग्रंथों में प्रथम प्रयक्ष हैं।
जिनको यदि विद्वानों ने पसन्द किया तो लेखक अपनी इन गवेषणाओं के लिये अपने को कृतकृत्य समझेगा। पूर्व पीठिका की अवतारणा में तो हिन्दू-संस्कृति के प्राण देववाद- देवाच देवार्चा-पद्धति, देवार्चा-गृह, श्रयं देववृन्द के साथ शैव, वैष्णव, शाक्त, गाणपत्य, सौर, बौद्ध एवं जैन धार्मिक सम्प्रदायों की जो नाना भूमिकायें निर्मित की गयी हैं उन्हीं के कृमिक आरोहण से जगत के विधाता 'देव' की प्रतिमा के वास्तविक दर्शन हो सकेंगे। इसके अतिरिक्त इस ग्रन्थ की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि ब्राह्मण, बौद्ध तथा जैन- तीनों प्रतिमा-लक्षण - एक ही ग्रन्थ में सर्वप्रथम समावेश है।
ब्राह्मण प्रतिमा- लक्षण की दोनों परम्पराओं— उत्तरी तथा दक्षिणी ( अर्थात् पौराणिक एवं श्रागमिक या तान्त्रिक) के अनुरूप सभी देवों के रूप, रूपाख्यान, रूपोद्भावना, रूप लक्षण, रूप व्याख्या एवं उनके स्थापत्य निदर्शन श्रादि के अत्यन्त संक्षिप्त समाहार एवं उपसंहार से यह ग्रन्थ भारतीय प्रतिमा विज्ञान (Indian loonography) के छात्रों के लिये बड़ा ही उपादेय एवं सहायक सिद्ध होगा ऐसी आशा है। सर्वत्र ही मौलिक उद्भावनाओं से यह ग्रन्थ एतद्विषयक अनुसन्धान की परिपाटी को भी आगे बढ़ावेगा।
Book | प्रतिमा विज्ञान / Pratima Vigyan |
Author | Dr Dvijendranath Shukla |
Language | Hindi |
Pages | 344 |
Size | 47 MB |
File | |
Category | Art Book, Hindi Books |
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