लीला पुरुषोत्तम भगवान् श्रीकृष्ण हिंदी पुस्तक पीडीएफ | Leela Purushottam Bhagwan Shri Krishna Hindi Book PDF



Leela Purushottam Bhagwan Shri Krishna Hindi Book PDF


लीला पुरुषोत्तम भगवान् श्रीकृष्ण हिंदी पुस्तक पीडीएफ | Leela Purushottam Bhagwan Shri Krishna Hindi Book PDF Download

प्रत्येक व्यक्ति कृष्ण की खोज में है। कुछ लोगों को अनुभव नहीं होता कि वे खोज में हैं, किन्तु वे खोज में रहते है। कृष्ण ईश्वर हैं, जो कुछ भी विद्यमान है उसके स्रोत हैं। जो कुछ है, जो कुछ था या जो कुछ होगा, उस सबके कारण हैं। चूँकि ईश्वर असीम हैं, अतएव उनके नाम भी अनेक हैं। अल्लाह, बुद्ध, जेहोवा, राम- ये सभी कृष्ण हैं और सभी एक हैं। ईश्वर निराकार नहीं है, उनके निराकार तथा साकार दोनों स्वरूप हैं। उनका व्यक्तित्व परम, शाश्वत, आनन्दमय तथा ज्ञान से पूर्ण है। जिस प्रकार सागर के जल की प्रत्येक बूँद में सागर-जल के गुण रहते हैं उसी तरह हमारी चेतना में भी ईश्वर की चेतना के सारे गुण रहते हैं, लेकिन भौतिक शक्ति से तादात्म्य तथा आसक्ति के कारण हमारी वास्तविक दिव्य चेतना कलुषित हो गई है और मलिन दर्पण की भाँति यह शुद्ध प्रतिबिम्ब को परावर्तित करने में अक्षम है। 

जन्म-जन्मांतरों में हमने क्षणभंगुर के साथ अपना संसर्ग बढ़ाया है। इस नश्वर शरीर को, जो अस्थियों तथा मांस की गठरी के समान है, हमने गलती से आत्मरूप मान लिया है और इस क्षणभंगुर स्थिति को ही अन्तिम मानने की भूल की है। सभी युगों में महान् सन्त इसके ज्वलन्त प्रमाण रहे हैं कि यह ईश्वर-चेतना की अविनाशी स्थायी स्थिति सभी जीवात्माओं में जाग्रत की जा सकती है। प्रत्येक आत्मा मूलतः दैवी है। भगवद्गीता में कृष्ण कहते हैं, “आत्म में सुदृढ़ समस्त भौतिक कल्मष से मुक्त हुआ योगी परम चेतना के सम्पर्क में सुख की चरम सिद्धावस्था प्राप्त करता है। योग (आत्म-साक्षात्कार की वैज्ञानिक विधि) वह विधि है, जिसके द्वारा हम अपनी चेतना को शुद्ध करते हैं, और अधिक प्रदूषण को रोकते हैं और सिद्धि, पूर्ण ज्ञान तथा पूर्ण आनन्द की स्थिति प्राप्त करते हैं। 

यदि ईश्वर है, तो मैं उसे देखना चाहता हूँ। बिना प्रमाण के किसी वस्तु पर विश्वास करना व्यर्थ है। कृष्णभावनामृत एवं ध्यान ऐसी विधियाँ हैं जिनसे ईश्वर की वास्तविक अनुभूति हो जाती है। आप सचमुच ही ईश्वर का दर्शन कर सकते हैं, उनको सुन सकते हैं, उनके साथ खेल सकते हैं। भले ही यह पागलपन लगे, लेकिन ईश्वर सचमुच हैं और वास्तव में आपके साथ हैं। योग के अनेक पंथ हैं— राजयोग, ज्ञानयोग, हठयोग, कर्मयोग, भक्तियोग- और इन सबों की प्रशंसा उनके आचार्यों द्वारा की जाती है। 

स्वामी भक्तिवेदान्त, जैसाकि उनकी उपाधि से प्रकट है, एक भक्तियोगी हैं, जो भक्तिमार्ग के पथिक हैं। मनसा, वाचा, कर्मणा ईश्वर की सेवा करने से तथा ईश्वर के पवित्र नामों के कीर्तन से भक्त में तुरन्त ही ईश्वर-चेतना विकसित होती है। पाश्चात्य देशों में जब कोई व्यक्ति कृष्ण जैसी पुस्तक के आवरण पृष्ठ को देखता है, तो वह तुरन्त पूछता है, "कृष्ण कौन हैं ? कृष्ण के साथ यह किशोरी कौन है ?" आदि आदि। इसका तत्काल उत्तर है कि कृष्ण परम भगवान् हैं। वह कैसे ? इसलिए कि वे परमेश्वर के वर्णनों से पूरी तरह मेल खाते हैं। दूसरे शब्दों में, कृष्ण भगवान् हैं क्योंकि वे सर्वाकर्षक हैं। 

पूर्ण आकर्षण सिद्धान्त के अतिरिक्त, भगवान् शब्द कोई नहीं रखता। तो कोई सर्वाकर्षक किस तरह हो सकता है? सबसे पहली बात यह है कि यदि कोई अत्यन्त धनी है और उसके पास अत्यधिक धन है, तो वह सामान्य जनता के लिए आकर्षक हो जाता है। इसी प्रकार यदि कोई अत्यन्त शक्तिशाली है, वह भी आकर्षक हो जाता है, और यदि कोई अत्यन्त विख्यात है, वह भी आकर्षक हो जाता है; यदि कोई अत्यन्त सुन्दर या ज्ञानी या सभी प्रकार की सम्पदा से अनासक्त होता है, तो भी वह आकर्षक हो जाता है। 

अतएव हम अनुभव के आधार पर यह देखते हैं कि कोई भी व्यक्ति (१) सम्पत्ति, (२) शक्ति, (३) यश, (४) सौन्दर्य, (५) ज्ञान तथा (६) त्याग के कारण आकर्षक बनता है। जिसके पास ये छहों ऐश्वर्य एकसाथ हों और असीम मात्रा में हों, तो यह समझना चाहिए कि वह परम भगवान् है। भगवान् के ये ऐश्वर्य परम वेदाचार्य पराशर मुनि द्वारा वर्णित किये गये हैं। हमने अनेक धनी, शक्तिशाली, विख्यात, सुन्दर, विद्वान, पंडित तथा भौतिक विषयों के प्रति अनासक्त एवं विरक्त व्यक्ति देखे हैं।

Bookलीला पुरुषोत्तम भगवान् श्रीकृष्ण / Leela Purushottam Bhagwan Shri Krishna
AuthorBhaktivedant Book Trust
LanguageHindi
Pages936
Size1.7 GB
FilePDF
CategoryHindi Books, Hinduism
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