त्रिपुरा रहस्य ज्ञान खंड हिंदी पुस्तक पीडीएफ | Tripura Rahasya Gyan Khand Hindi Book PDF Download
हमारे देश की प्राचीन भाषा संस्कृत रही है। एक समय था जब संस्कृत केवल वेद, पुराणों, उपनिषदों आदि तक सीमित नहीं थी, बल्कि यह बोली के रूप में भी जनमानस में जानी जाती थी। संस्कृत साहित्य जितना समृद्ध है, दुनिया का कोई भी साहित्य उतना समृद्ध नहीं है। एक बात और है; किसी भी पक्ष को बिना किसी हिचक के साथ संस्कृत साहित्य में खुले रूप से प्रकट किया गया है। यह तभी सम्भव होता है जब कोई भी देश पूरी तरह से समृद्ध हो और वहाँ की जनता सुखी हो। इसी का परिणाम रहा है कि खजुराहो, कोणाकं, पुरी से लेकर सभी विख्यात मन्दिरों में रंगमण्डप रहे हैं। ये रंगमंडप विलासिता का नहीं बल्कि वैभव और समृद्धि का परिचय देते हैं।
संस्कृत साहित्य में ही तन्त्र-मन्त्र और इसके कई अंग उपांग व्यापक रूप से लिखे गये हैं। ऋग्वेद जैसे वेद की हर ऋचा अपने आप में एक ऊर्जस्वी मन्त्र हैं। तन्त्रशास्त्रों की रचना भी यहीं की देन हैं। तन्त्र-मन्त्र में अपार क्षमता है, यह सर्वविदित और स्वयंसिद्ध है। कुछ तत्वों ने इसका दुरुपयोग किया है, यह दूसरी बात है। लेकिन दुरुपयोग के कारण इस साहित्य की समृद्धता से नकारा नहीं जा सकता। तन्त्र और मन्त्र ने मारण, मोहन, उच्चाटन, वशीकरण इत्यादि से लेकर जीवन के समरस और सुखद पक्ष तक का प्रतिनिधित्व किया है। सम्भवतः यही परम्परा है जिसने हमें तन्त्र और मन्त्र की व्यापकता की ओर आकर्षित किया है।
तन्त्र शब्द वन् धातु से बना है अतः तन्त्र का विकास अर्थ में प्रयोग किया जाता है। तन्त्र शब्द की व्युत्पत्ति काशिकावृत्ति में 'तनु विस्तारे' धातु से बतलाई गई है । 'सार्वधातुभ्यः ष्टन्' सूत्र से ष्टन् प्रत्यय के योग से तन्त्र शब्द का निर्माण हुआ है। 'तन्यते विस्तारयेत् ज्ञानमनेन इति तन्त्रम्' के अनुसार किसी भी ज्ञान को जो विस्तार प्रदान करता है, उसका सांगोपांग विवरण देता है, उसे तन्त्र कहते हैं। सरल शब्दों में जिस साधना द्वारा हमारे ज्ञान का विकास हो, वह शास्त्र तन्त्र है। जिस शास्त्र में स्वल्प शब्दों में प्रचुर अर्थों की उपलब्धि हो तथा तत्त्व मीमांसा और मन्त्र विज्ञान की सामग्री से परिपूर्ण हो, उसके अनुष्ठान से साधक आधिभौतिक, आधिदैविक और आध्यात्मिक तापमय से परिमुक्त हो जाय, उस साधना को तन्त्र कहा जाता है।
यह एक साधनापरक धर्मपद्धति है, किन्तु धर्म की अपेक्षा यह विशाल अधिक है। तन्त्र का दूसरा नाम आगम है। जिस साधना के द्वारा परिच्छिन्न नाम- रूप क्रिया उपाधियों से आवृत शक्तिचेतना को परमेश्वरी पराशक्ति के सत्य- रूप का तादात्म्य रूप से अभेद बोध हो, वह तन्त्र है। शाक्ततन्त्र के अनुसार पराशक्ति ही नाम, रूप और क्रियाओं के द्वारा जीव, जगत् और परमतस्व है। भोक्ता, भोग्य और भोगसाधन, द्रष्टा, दृश्य दुकुज्ञाता, ज्ञान और होय अथवा कर्त्ता, क्रिया और कारण है। आगम, तन्त्र और यामल- ये तीनों शब्द पारिभाषिक परस्पर स्वसम्मत अर्थ में प्रयुक्त होते हैं ।
आगम पंचमुख शिव के अघोर मुख से निकलकर माँ पराम्बा जगत्जननी महामाया भगवती के श्रवणपुटों के माध्यम से हृदयकमल में टिक गया है। इसके बाद भैरव और नन्दी गुण, तन्त्र के प्रथम साधक हैं। दस महाविद्याएँ तन्त्र की विकसित प्रकाश शक्ति हैं।। अन्य व्याख्या के अनुसार पटल, पद्धति, कवच, नामसहस्र और स्तोत्र - इन पाँचों अङ्गों की साधना को तन्त्र कहते हैं। 'वाराही तन्त्र' में तन्त्र शब्द का स्पष्टीकरण करते हुए कहा है कि जिस शास्त्र में सृष्टि, प्रलय, देवतार्चन, सर्वसाधना, पुरश्चरण, षट्कर्म, शान्ति, वशीकरण, स्तम्भन, मारणसाधन और ध्यानयोग सहित सातों अवयव परिपुष्ट हों, उसे तन्त्र कहते हैं।
'त्रिपुरा रहस्यम्' इसी तान्त्रिक साहित्य का एक विशिष्ट ग्रन्थ है। यद्यपि 'तन्त्र साहित्य' का क्षेत्र विशाल है, फिर भी सामान्यतया इसे तीन खण्डों में विभक्त किया गया है। ये खण्ड हैं- शैव, शाक्त और वैष्णव गाणपत्य प्रभृति तन्त्रशास्त्र के अन्य रूप इसी में समाहित हैं । अन्य साधनाओं की अपेक्षा इसकी विशिष्टता यह है कि आध्यात्मिक उपलब्धि के साथ यह भौतिक ऐश्वर्य भी प्रदान करती है। तांत्रिक सिद्धान्त के अनुसार कोई भी प्राणी जब तक अष्टपाश से विमुक्त नहीं होता तब तक उसे शिवत्व की प्राप्ति नहीं होती।
Book | त्रिपुरा रहस्य ज्ञान खंड / Tripura Rahasya Gyan Khand |
Author | Acharya Jagdishchandra Mishra |
Language | Hindi |
Pages | 376 |
Size | 79 MB |
File | |
Category | Hindi Books, Hinduism |
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