तीर्थंकर महावीर हिंदी पुस्तक पीडीएफ | Tirthankar Mahavir Hindi Book PDF Download
भगवान महावीर के नाम से पाठक भलीभांति परिचित हैं। वे जैनों के चौबीसवें यानी आखिरी तीर्थंकर हुए हैं उनका जीवन शुरू से ही त्याग का रहा। तीस साल की उम्र में राजपाठ पर लात मारकर वे साधना करने चले गये। बारह साल तक उन्होंने बड़ा कठोर जीवन बिताया। साधना पूरी होने पर तीस साल तक लोगों की भलाई का उपदेश देते रहे। उन्होंने आदमी-आदमी के बीच भेद नहीं किया और सबके हित की बात कही महावीर ने अहिंसा को बहुत बढ़ावा दिया और जीवन को सरल, सादा तथा पवित्र बनाने पर जोर दिया। उन्होंने और भी बहुत-सी लाभ की बातें कहीं। आज ढाई हज़ार बरस बाद भी उनके उपदेश अपना महत्व रखते हैं। इस पुस्तक में भगवान महावीर का परिचय तथा उनके उपदेश दिये गए हैं।
आज से कोई ढाई हजार साल पहले की बात है । एक दिन एक पेड़ के पास कई बालक खेल रहे थे । खेलते-खेलते अचानक उन्होंने देखा कि पेड़ की जड़ में एक काला सांप फन उठाये खड़ा है और फुंकार रहा है । उस भयंकर नाग को देखकर बालक डर गये और लगे चीखने-चिल्लाने और इधर-उधर दौड़ने । लेकिन उनमें एक बालक ऐसा था कि न तो वह डरा, न चीखा- चिल्लाया, न अपनी जगह से भागा । उसने अपने साथियों से कहा, “इतना घबराते क्यों हो ?" पर उसकी बात सुनने के लिए कोई भी वहां नहीं ठहरा ! धीरे-धीरे वह बालक सांप की ओर गया और बड़ी होशियारी से उसने उसे पकड़ लिया, फिर मुस्कराता हुआ दूर जाकर उसे छोड़ आया । इस बालक का नाम था वर्द्धमान । शकल-सूरत में वह ठीक वैसा ही था, जैसे कि और बालक थे, लेकिन हिम्मत उसमें गजब की थी। बड़ी से बड़ी मुसीबत से भी वह घबराता नहीं था ।
आज जहां पटना नगर है, वहां से उत्तर में कोई तेरह चौदह कोस पर कुण्डग्राम नाम की एक बस्ती थी । वहीं पर चैत्र सुदी १३ को (ईस्वी सन् के ५६६ बरस पहले) इस बालक का जन्म हुआ था । उसके पिता का नाम सिद्धार्थ और मां का त्रिशला था । जबसे बालक मां के पेट में आया था तभी से घर में हर तरह की बढ़ोतरी हो रही थी । इसीलिए पैदा होने पर उन्होंने बालक का नाम बद्ध मान रक्खा । ऐसे बालक को पाकर कौन नहीं फूलेगा ? वर्द्धमान के मां-बाप की भी खुशी का ठिकाना न रहा । उनके राज्य में तरह-तरह से श्रानंद मनाया गया, कैदी छोड़ दिये गए और गरीबों को पैसा बांटा गया ।
बालक का लालन-पालन बड़े लाड़-प्यार और दुलार से हुआ। पिता राजा थे, सो घर में किसी भी चीज़ की कमी न थी । सब तरह के प्राराम थे। मां- बाप चाहते थे कि लड़का पढ़-लिखकर होशियार बने और बड़ा होकर राजपाट संभाले । बालक सचमुच बड़ा तेज था । वह बराबर आगे बढ़ता गया । उसकी इस उन्नति को देखकर मां-बाप तो प्रानंदित होते ही थे, प्रजा के लोग भी बड़े खुश होते थे । समय जाते देर नहीं लगती । वर्द्धमान भी बड़े हुए। अपनी बहादुरी के कारण वह महावीर कहलाने लगे। मां-बाप ने सोचा कि अब उसका विवाह कर देना चाहिए। उन्होंने यह बात लड़के से कही तो उसने मना कर दिया।
मां से कहा, "मां, क्या देख नहीं रही हो कि दुनिया कितनी दुखी है, और धर्म की कितनी छीछालेदर हो रही है। लोग मोह-माया में फंसे हैं। लोक की भलाई के लिए इस समय सबसे ज्यादा जरूरत धर्म फैलाने की है ।" मां ने बड़े प्यार से समझाते हुए कहा, "बेटा, मैं जानती हूं, तुम्हारा जन्म संसार के कल्याण के लिए हुआ है । पर अभी तुम्हारी उम्र है कि तुम घर-गिरस्ती में पड़ो ।" वर्द्धमान को यह सुनकर बड़ा दुःख हुआ । वह बोले, "मां, तुम यह सब क्या कहती हो ? इस देह का क्या भरोसा है ! तुम कुछ भी कहो, मुझसे ऐसा नहीं होगा।" पुत्र की बात पर मां चुप होगईं। वह नहीं चाहती थीं कि उनके बेटे के दिल को चोट लगे ।
उन्होंने मन ही मन सोचा - बात तो यह ठीक ही कहता है । दुनिया आज अंधी हो रही है । वह अंधेरे में भटक रही है । उसे सही रास्ते पर लाने के लिए उजीता चाहिए । इस काया का क्या भरोसा है ! कुछ लोगों का कहना है कि उनके लिए एक लड़की तलाश करली गई थी । महावीर ने ब्याह करने से इन्कार कर दिया तो वह बड़ी दुःखी हुई और घरबार छोड़कर तपस्या करने के लिए एक पहाड़ी पर चली गई । कुछ यह भी कहते हैं कि यशोदा नाम की एक राजकुमारी से उनका विवाह हुआ और उनके प्रिय- लड़की पैदा हुई । जो हो, एक बात पक्की है। महावीर का मन भोग में नहीं था । घर में वह रहते थे, लेकिन ठीक वैसे ही जैसे जल में कमल ।
Book | तीर्थंकर महावीर / Tirthankar Mahavir |
Author | Yashpal Jain |
Language | Hindi |
Pages | 36 |
Size | 4 MB |
File | |
Category | Hindi Books, Bhakti Dharma |
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