तरक्कीपसंद तहरीक और सज्जाद जहीर हिंदी पुस्तक पीडीएफ | Taraqqi Pasand Tehreek Aur Sajjad Zahir Hindi Book PDF



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भारी उथल-पुथल के बीच कितना कुछ बीत गया है पिछली सदी में तब्दीलियों की बयार में बहुत कुछ कालातीत हुआ है। कितनी शख्शियत यो आलीशान विसरा ही गयीं। कितने संगठन ऊँचे आदर्श वाले बिखर गए, आदर्श झूठे साबित हुए और कितने शब्द एक समय में जिनकी बड़ी आनोबान वी, सिद्धांत जिनका बड़ा द्विहोरा था, गरिमाविहीन होकर मुरझा गए, परंतु प्रगतिशीलता बतौर शब्द और विचार कभी अप्रासंगिक नहीं हुई। उसकी जरूरत भी बाकी है, प्रतिष्ठा भी समूचे भारतीय साहित्य का आज वह केंद्रीय पदार्थ है प्रगतिशीलता प्रासंगिक है तो प्रगतिशील लेखक संघ क्यों अनासंगिक होने लगा। संगठन शेष है तो आंदोलन की आंच भी शेष रहेगी। साहित्य की इस गरिमापूर्ण उपलब्धि के लिए प्रमुखता से जिस एक व्यक्ति को श्रेय दिया जा सकता है वह हैं सज्जाद ज़हीर उर्फ बन्ने भाई सज्जाद ज़हीर 1 यानी कथाकार, कवि, कार्यकर्ता, संगठनकर्ता, राजनीतिक-सांस्कृतिक कार्यकता और आंदोलनकर्मी, संप्रदायिकता, धर्मांधता तथा रूढ़िवाद विरोधी मुहिम के अग्रपुरुष, स्वाधीनता संग्राम के विशिष्ट सेनानी।

सज्जाद जहीर यानी जीवन और कला में सुखफूल की गहरी आभा चंदन में प्रगतिशील लेखक संघ के संस्थापकों में एक भारत में इसकी पहली इकाई के गठनकर्ता, प्रगतिशील लेखकों के प्रथम अखिल भारतीय सम्मेलन (अप्रैल 1936) के प्रमुख आयोजक, प्रगतिशील लेखन आंदोलन के प्रस्थापक सिद्धांतकार और दिशावाहक, प्रतिबंधित कहानी संग्रह 'अंगारे' (1982) के संपादक तथा कहानीकार, जौनपुर के लखनदी वाशिंदे बार ऐटला कहा जा सकता है कि सज्जाद ज़हीर ने लखनऊ सम्मेलन की ऐतिहासिक संपन्नता के बाद प्रगतिशील लेखन आंदोलन की सुसंगत शुरुआत को वैचारिक अभियान की धार न दी होती, तो भी बीसवीं सदी की चौखट से थोड़ा पहले और बाद में रचे जा रहे साहित्य का आधुनिक चेतना तथा प्रगतिशील सोच के प्रभाव से बचा रह पाना संभव नहीं था। गालिय, हाली, इकबाल व जोश की शायरी के बाद प्रेमचंद स्वयं इस स्थिति का सबसे बड़ा उदाहरण हैं।

फिर सज्जाद जहीर ने ऐसा क्या किया कि उनके जन्मशती वर्ष (5 नवंबर, 2004-2005) में उन्हें व्यापकता में याद करने की जरूरत महसूस की जा रही है, उन पर विशेषांक निकल रहे हैं तथा भारत-पाक के साथ लंदन में भी उनकी जन्मशती के आयोजन हो रहे हैं।

सज्जाद ज़हीर का सबसे बड़ा कारनामा यह है कि उन्होंने साहित्य के संदर्भ में जटिल संरचना वाले भारतीय समाज की ज़रूरत को गहराई से समझा था और जाना था कि साम्राज्यवादी गुलामी से जकड़े धर्माधता, रूढ़िवाद और मध्ययुगीन सामंती नैतिकता से ग्रस्त, पुरानी कंचुल छोड़ने न छोड़ने के द्वंद्व में फँसे समाज में किस सोच का संचार बदलाव की छटपटाहट गहरी कर सकता है कौन-सा विचार उसमें 1 सामंतवादी दमन व साम्राज्यवादी गुलामी के खिलाफ़ गजबूती से खड़े होने का साहस भर सकता है। 

इस समझ व चिंता के आधार पर ही उन्होंने प्रगतिशील आंदोलन के सिद्धान्तकार की प्रतिष्ठा अर्जित की, यही कारण है कि प्रगतिशील लेखन तथा आंदोलन की जो सैद्धांतिको उन्होंने रची, उसे न केवल उर्दू-हिंदी बल्कि अन्य भारतीय भाषाओं के लेखकों ने भी सामयिक मार्गदर्शन के रूप में स्वीकार किया। प्रेमचंद को अपने इस अभियान का सर्वाधिक समर्थ दृष्टिसंपन्न रहनुमा मानना भी उनकी व्यावहारिक सैद्धांतिकी का ही हिस्सा है कहना चाहिए कि जीवन व कला के प्रति उनके दृष्टिकोण के निर्माण में उनके लंदन प्रवास (1927-1995) का बड़ा दखल है यूरोपीय जीवन पद्धति, लेखन और आंदोलनों का उन पर गहरा असर था यद्यपि उसके सारे सरोकार भारतीय थे।

हमें अपने मुक्त हिंदुस्तान में भी नए ख्यालात, नए तहजीब, अदयी रुजहानात के सूत्र उन ऐतिहासिक परिवर्तनों में ढूँढने चाहिए जो उन्नीसवी सदी में हमारी मुशरत (समाज) में हुए तरक्की पसंद अदवी तहरीक का रुख मुल्क के अदान की जानिव और मजदूरों, किसानों और दरम्यानी तबके की जानिब होना चाहिए। उनको लूटने और उन पर जुल्म करने वालों की मुखालफत करना, अपनी अदबी काविरों से अवाम में शंगर, डिस व हरकत जोशेअमल और इतिहाद पैदा करना और उन तमाम आसार व जहानात की भी मुखालफत करना जो जुमूद रजअत व परतहिम्मती पैदा करते हैं, हमारा अव्वलीन फर्ज है।





Bookतरक्कीपसंद तहरीक और सज्जाद जहीर / Taraqqi Pasand Tehreek Aur Sajjad Zahir
AuthorShakeel Siddiqui
LanguageHindi
Pages57
Size50 MB
FilePDF
CategoryIslamic, Hindi Books
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