तब की बात और थी हिंदी पुस्तक पीडीएफ | Tab Ki Baat Aur Thi Hindi Book PDF



Tab Ki Baat Aur Thi Hindi Book PDF


तब की बात और थी हिंदी पुस्तक पीडीएफ | Tab Ki Baat Aur Thi Hindi Book PDF Download

यह तीसरा संग्रह है । पहिले 'सती का बेटा' नाम से प्रेस में गया था पर यह 'बेटा' प्रेस को अनाथालय समझ बैठा वहीं बस गया । यह डेढ़ साल पहिले की बात है । तब की बात और थी। फुसलाकर बाहर निकाला गया। अब वही कहानियाँ कुछ नई रचनाओं के साथ नया नाम लेकर इस संग्रह ई हैं । इस संग्रह के आधार पर अगर यह निर्णय किया गया कि इस बीच, मैं आगे बढ़ा या पीछे हटा, तो भूल हो जायगी । इसकी कई रचनायें बिलकुल हाल की हैं; अन्य वर्षों पहिले की।

पहिली दो पुस्तकों की समीक्षायें जहाँ तहाँ हुईं | देखीं। समीक्षा - शास्त्र में कई प्रकार की आलोचना-पद्धतियाँ लिखी हैं । लिखी होंगी। हिंदी में सब से प्रचलित और लोकप्रिय पद्धति है - अपनों की प्रशंसा और परायों की । यह बड़ी स्पष्ट, सरल और उलझनविहीन पद्धति है । इसके मान- दंड भी स्थिर और शाश्वत् हैं। दोनों का शिकार हुआ ।

समीक्षा के स्टैंडर्ड की बात कहूँ, तो किसी किसी पत्र की समीक्षा पढ़ कर मुझे ऐसा लगा, कि शायद कम्पोजीटर से समीक्षा करा दी है । एक समीक्षक मे पुस्तक के १० हजार वाक्यों में से एक वाक्य ढूँढकर कहा- देखो यह वाक्य शिथिल है। समुद्र में खूब गहरा गोता लगाकर मुट्टी में कीचड़ भर लाये और शान से दिखा दी। कुछ ने बिना पढ़े कहा कि धन्य है; श्रेष्ठ है !

लेकिन कुछ आलोचनायें अच्छी, निष्पक्ष और स्पष्ट हुईं । इनमें बुरा भी कहा गया और भला भी ।

अपनी कहानियों के बारे में कुछ कहने में डर लगता है । पहिले संग्रह के वक्तव्य को पढ़ कर कुछ विद्वज्जनों ने कहा था कि उसमें मेरा अहंकार दहाड़ रहा है। मैंने 'खुद कहानियों को 'अच्छा' कह लिया था । अपनी

अंतिम कहानी का नाम संग्रह का नाम है - 'तब की बात और थी।' इस कहानी के प्रति मेरा पक्षपात नहीं है, अन्य कहानियों से अधिक प्रिय भी यह नहीं है । पर शीर्षक बहुत अच्छा है । भावात्मक कहानी है । मुझसे पूछा गया कि कहानी की नायिका जिस पुरुष को चाहती थी, उसे फिर तुनक कर त्याग क्यों देती है ? यह क्या कोरी भावुकता नहीं है ? भावुकता तो है । व्यवहारिक दृष्टि से वह नादान भी लगती है । पर उसमें मैंने वह चीज देखी, जिसे शरत की राजलक्ष्मी ने अभया में 'आग' कहा है कहानी की नायिका को मैं जानता हूँ । उसके आत्मसम्मान ने मुझे श्राकर्षित किया, उसकी 'आग' से मैं अभिभूत हुआ । मैंने कहानी लिख दी, यद्यपि विवाह करने के लिये समझाने वालों में, मैं सबसे वाचाल था ।

'बाबू की बदली' कहानी की नायिका के संबंध में कई स्त्रियों ने ही मुझसे कहा कि यदि छल, कपट से बाध्य हो बाबू की पत्नी का अफसर से शरीर संपर्क हो गया, तो क्या उसे मर जाना चाहिये था ? क्या आप स्त्री की गुलामी का समर्थन करते हैं? क्या स्त्री केवल पुरुष की भोग्या है ? क्या पर-पुरुष से अनिच्छापूर्वक संबंध हो जाने से ही स्त्री अपवित्र हो जाती है ? आपने इस स्त्री से समर्पण क्यों कराया ? क्या वह प्रतिकार नहीं कर सकती थी ? क्या वह अफसर का गला नहीं घोंक सकती थी ?

इतने सारे सवाल । मैंने कहा कि मैं नारी की गुलामी का समर्थक नहीं । अनिच्छापूर्वक ही क्यों, इच्छापूर्वक भी अगर नारी का संपर्क अन्य पुरुष से हो जाय, तो भी वह एक हद तक क्षम्य है । परस्त्रीगामी पुरुष का भी तो कुछ बिगड़ता नहीं । पर कहानी की नायिका अगर प्रतिकार कर देती, तो व्यक्ति के इस प्रतिकार से हम संतोष का अनुभव भर कर लेते । बड़े पद और धन के प्रभाव से मातहतों की स्त्रियों की इज्जत लूटना, बड़े परिमाण में एक सामाजिक बुराई है, जिसका अंत व्यक्ति के प्रतिकार से नहीं होगा । हर आदमी के हाथ में बंदूक दे देने से क्रांति नहीं हो जायगी ऐसी सामाजिक बुराई के लिये सामाजिक करुणा और सामाजिक रोष को जगाना होगा, संगठित सामाजिक संघर्ष करना होगा । बाबू की पत्नी के बलिदान में यही प्रयोजन है ।

यह भी कहा गया है कि मेरा व्यंग बड़ा कटु होता है । होता तो है । पर चट्टान सी बुराई पर अगर कोई सुनार की छोटी हथौड़ी से प्रहार करे, तो यह उसकी नासमझी ही कही जायगी । चट्टान पर तो लुहार के घन का भरपूर हाथ ही पड़ना चाहिये । सामाजिक बुराइयों के प्रति मैं बहुत कटु हूँ। शेर को 'टॉयगन' से जिस दिन मारना संभव हो जायगा, उस दिन फिर सोचूँगा कि क्या करूँ !





Bookतब की बात और थी / Tab Ki Baat Aur Thi
AuthorHarishankar Parsai
LanguageHindi
Pages124
Size7 MB
FilePDF
CategoryHindi Books, Story
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