सुन्नी बहिश्ती ज़ेवर हिंदी पुस्तक पीडीएफ | Sunni Bahishti Zewar Hindi Book PDF Download
नमाज़ के लिए तहारत (पाकी) ऐसी ज़रूरी चीज़ है कि बगैर उसके नमाज़ नहीं होती। बल्कि जान बूझकर बगैर तहारत नमाज़ अदा करने को उलेमाए किराम कुफ लिखते हैं हुजूरे अकदस सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम फरमाते हैं कि जन्नत की कुंजी नमाज़ है और नमाज़ की कुंजी तहारत। एक रोज़ नबीए करीम सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम सुबह में सूरः रूम पढ़ते थे कि मुतशाबिहा लगा। यानी क़िरआत में शुबहा पड़ा। बाद नमाज़ इर्शाद फरमाया क्या हाल है, उन लोगों का जो हमारे साथ नमाज़ पढ़ते हैं और अच्छी तरह तहारत नहीं करते। उन्हीं की वजह से इमाम को किरआत में शुबहा पड़ता है"। तो जब बग़ैर कामिल तहारत नमाज़ पढ़ने का वबाल यह है तो बे तहारत नमाज़ पढ़ने की नुहूसत का क्या पूछना। यह तो इबादत की बेअदबी व तौहीन है और उसका नतीजा मालूम। मौला अज़्ज़ोजल अपने महबूब सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के तुफैल हर मुसलमान का खात्मा ईमान पर फ़रमाये।
तहारत की दो किस्में है- पहला तहारते सुगुरा तथा दूसरा तहारते कुबरा। तहारते सुगरा वुजू है और तहारते कुबरा गुस्ल जिन चीज़ों से सिर्फ वुजू लाज़िम आता है उन को हदसे असग़र कहते है। और जिन चीज़ों से गुस्ल फ़र्ज़ हो उनको हदसे अकबर - कहा जाता है। चन्द ज़रूरी इस्तलाहें- १. फर्जी वह बात कि बे उसके किए आदमी बरीउज्ज़िम्मा न होगा। यहां तक कि अगर वह किसी इबादत में है तो बे उसके बातिल व माअदूम होगी। उसका छोड़ना गुनाहे कबीरा है। २. वाजिब: वह कि बे उसके किए भी बरीउज्ज़िम्मा होने का एहतिमाल है मगर ग़ालिब गुमान उसकी ज़रूरत पर है और अगर किसी इबादत में उसक बजा लाना दरकार हो तो इबादत बे उसके नाक़िस रहे। किसी वाजिब का एक बार भी सदन छोड़ना गुनाह सग़ीरा है और चन्द बार छोड़ना गुनाह कबीरा।
३. सुन्नत मोवक्किदा: वह जिसको हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने हमेशा किया हो अलबत्ता कभी तर्क भी फ़रमाया दिया हो (न किया हो) या वह कि उसके करने की ताकीद फरमाई उसका करना सवाब और न करना बहुत बुरा यहां तक कि जो उसके छोड़ने की आदत डाल ले वह अज़ाब का मुस्तहिक है। ४. सुन्नत ग़ैर मोवक्किदा : वह कि उसका छोड़ना शरीअत को पसन्द नहीं। उसका करना सवाब और न करना अगरर्चे बतौर आदत हो जिताब का मोअजिब नहीं। ५. मुस्तहब : वह जिस का करना शरीअत को पसन्द है मगर न करने पर कुछ नापसन्दी न हो उसका करना सवाब और न करने पर मुतलकन कुछ नहीं।
६. हराम कतई : यह फ़र्ज़ का मुकाबिल है उसका एक बार भी क़सदन करना गुनाह कबीरा व फिस्क है और बचना फ़र्ज़ व सवाब। ७. मकरूह तहरीमी: वह कि उसके करने से इबादत नाकिस हो जाती है और करने वाला गुनाहगार होता है। और चन्द बार उसका करना गुनाहे कबीरा होता है। मकरूह तनज़ीही: वह जिसका करना शरीअत को पसन्द नहीं मगर न उस हद तक कि उसके करने पर अज़ाब आये। हुजूरे अकदस सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम इर्शाद फरमाते हैं: १. कियामत के दिन मेरी उम्मत हालत बुलाई जायेगी कि उनके मुंह और हाथ आसारे वुजू से चमकते होंगे तो जिससे हो सके चमक ज़्यादा करे।
२. मुसलमान बन्दा जब वुजू करता है तो कुल्ली करने से मुंह के गुनाह गिर जाते हैं और जब नाक में पानी डाल कर साफ किया तो नाक के के गुनाह गुनाह निकल गये। और जब हाथ मुंह धोये तो हाथों निकले यहां तक कि पलकों के निकले और जब सर का मराह किया तो सर के गुनाह निकले यहां तक कि कानों से निकले और पांव धोओ तो पांव की खतायें निकलें यहां तक कि नाख़ूनों से। फिर उसका मस्जिद को जाना और नमाज़ पढ़ना उसके अलावा है। ३. जो शख़्स एक एक बार वुजू करे तो यह ज़रूरी बात है और जो दो-दो बार करे उसको दूना सवाब है और जो तीन-तीन बार धोये तो यह मेरा और अगले नबियों का वुजू है।
जो शख़्स सख़्त सर्दी में कामिल वुजू करे उसके लिए दूना सवाब है। जो शख़्स वुजू पर वुजू करे उसके लिए दस नेकियां लिखी जायेंगी। किसी अजू के धोने के यह मानी हैं कि उस अजू हर हिस्से पर कम से कम दो बूंद पानी बह जाये। भीग जाने या तेल की तरह चुपड़ लेने या एक आध बूंद बह जाने को धोना नहीं न उससे वुजू या गुस्ल अदा होगा इस बात का लिहाज़ बहुत ज़रूरी है। लोग इसकी तरफ तव्वजो नहीं देते और नमाज़ें बरबाद जाती हैं। बदन में बाज़ जगहें ऐसी हैं कि जब तक उनका खास ख्याल न रखा जाये उन पर पानी न बहेगा जिसकी तशरीह हर अजू में बयान की जायेगी।
Book | सुन्नी बहिश्ती ज़ेवर / Sunni Bahishti Zewar |
Author | Mufti Khaleel Khan Barkati |
Language | Hindi |
Pages | 127 |
Size | 33 MB |
File | |
Category | Hindi Book, Islamic Book |
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