सत्याग्रह मीमांसा हिंदी पुस्तक पीडीएफ | Satyagraha Mimansa Hindi Book PDF Download
महात्माजी ने बहुत लिखा है और विविध विषयों पर लिखा है। उस सब को देखकर साधारण आदमी चक्कर में पड़ जाता है। उनका जीवन मानो सत्य के प्रयोग की एक लम्बी श्रृंखला ही है उन्होंने अपनी आत्मकथा का नाम 'सत्य के प्रयोग' रखा है । यह उपयुक्त नाम उनके जीवन की ही स्थिति को अभिव्यक्त करता है। उनके इस लेखन में सत्य के इन प्रयोगों के परिणाम और प्रक्रिया ही निहित हैं। गांधीजी द्वारा निर्मित साहित्य बहुत है। यद्यपि कुछ खास विषयों पर उनके लेखों और पत्रों का संकलन करके उन्हें पुस्तकाकार प्रकाशित किया जा चुका है। फिर भी यदि पाठक किसी विशेष विषय पर उनके विचार जानना चाहें तो बड़ी जल्दी किसी निश्चित स्थान पर संक्षिप्त रूप में उनका मिलना बड़ा कठिन है। इसका कारण यह है कि अपने दर्शन पर उन्होंने कोई क्रमबद्ध शास्त्रीय पाठ्य पुस्तक लिखने का प्रयत्न नहीं किया।
अतः यह आवश्यक है कि जिन्होंने गांधीजी के दर्शन का केवल अध्ययन ही नहीं किया, बल्कि उसके अनुसार अपने जीवन को बनाने का भी प्रयत्न किया है, वे जीवन-योगी साधक उस दर्शन के विविध पहलुओं पर तथा दूसरे विशेष विषयों पर पाठ्य पुस्तकें लिखें। गांधीजी का सारा दर्शन सत्य और अहिंसा पर अधिष्ठित है। सत्याग्रह गतिशील रूप में सत्य है जिसमें नाममात्र के लिए भी हिंसा का स्थान नहीं है। वास्तव में तो अहिंसा सत्य का एक पहलू है। घर के छोटे-मोटे प्रश्नों को हल करने के लिए उन्होंने जिस प्रकार सत्याग्रह का आश्रय लिया उसी प्रकार हिन्दुस्तान की आजादी के लिए भी उसीका आश्रय लिया। उन्होंने व्यक्तिगत रूप से तथा असंख्य लोगों के साथ भी सत्याग्रह किया है।
उन्होंने जिस प्रकार सत्याग्रह करने का आदेश एक व्यक्ति को दिया उसी प्रकार अनेक समूहों को भी दिया। किन्हीं-किन्हीं प्रसंगों पर तो उसकी सफलता अनुपम और आश्चर्यजनक हुई है। एक बहुत बड़े पैमाने पर किया गया सत्याग्रह सशस्त्र युद्ध की अपेक्षा कई गुना ज्यादा अच्छा और श्रेष्ठ तथा सम्पूर्ण और सर्वांगीण पर्याय सिद्ध हो, यह उसका उद्देश्य है। दो पक्षों के झगड़े को मिटाने के हिंसक तरीके और इस तरीके में मूलभूत फर्क यह है कि सत्याग्रह के तरीके में सत्याग्रही अपने कर्तव्य पालन का सतत विचार रखकर उसके लिए जितनी भी मुसीबतें आती हैं उन्हें उठाने के लिए तैयार रहता है; लेकिन अपने विपक्षी को थोड़ा-सा भी कष्ट देना नहीं चाहता। वह द्वेष को द्वेष से नहीं बल्कि प्रेम से जीतना चाहता है।
लड़ाई का परिणाम चाहे कुछ हो सत्याग्रही विपक्षी के मन में कड़वाहट नहीं रहने देता। सत्याग्रही के लिए मानसिक और नैतिक शिक्षा तथा अभ्यास की आवश्यकता है। शरीर और मन के आरोग्य की भी जरूरत है। सशस्त्र सेनाओं के सैनिक के लिए शारीरिक शिक्षा और उसके साथ ही थोड़ी-सी मानसिक शिक्षा की जो जरूरत रहती है उससे थोड़ी-सी भी कम जरूरत सत्याग्रही के लिए नहीं होती। सत्याग्रह का एक स्वतन्त्र तन्त्र है और उसकी अपनी स्वतन्त्र युद्ध-प्रणाली है। सत्याग्रह ने अबतक अपने आस-पास ऐसी अनेक घटनाओं का निर्माण कर लिया है और उनको संसार के सामने रखा है इससे मानव समाज के इतिहास में उन घटनाओं को एक चमकता हुआ प्रसिद्ध स्थान प्राप्त हो गया है।
इसीलिए सत्याग्रह एक श्रत्यन्त आकर्षक एवं मनोरंजक अध्ययन का विषय बन गया है। इस विषय पर श्री० श्रार० आर० दिवाकर ने पाठ्य पुस्तक जैसी एक पुस्तक लिखकर बहुत बड़ी सेवा की है। उन्होंने इस विषय का प्रतिपादन केवल पुस्तकों के अध्ययन के आधार पर ही नहीं बल्कि जीवन की प्रयोगशाला में व्यावहारिक आचरण के नियमित पाठ पढ़कर भी किया है। श्री० आर० आर० दिवाकर की मूल पुस्तक की भूमिका भाई श्री किशोरलाल मशरूवाला ने लिखी है।
श्री किशोरलाल भाई गांधी तत्वज्ञान का अत्यन्त सूक्ष्म और तीव्र अध्ययन करने वालों में से हैं। गांधीजी के साहचर्य और निकटता प्राप्त करने वाले व्यक्ति के शब्दों को जो अधिकार प्राप्त हो जाता है उसपर ध्यान दिये बिना नहीं रहा जा सकता। मुझे आशा है कि पुस्तक को केवल जिज्ञासा और कौतुक से पढ़ने वाले पाठक ही नहीं किन्तु गांधी-जीवन-पद्धति का ज्ञान प्राप्त करके उसके अनुसार जीवन व्यतीत करने वाले जितने जीवन-प्रेमी विचारक और विद्यार्थी हैं वे भी इसे पढ़ेंगे।
Book | सत्याग्रह मीमांसा / Satyagraha Mimansa |
Author | Ranganath Diwakar |
Language | Hindi |
Pages | 336 |
Size | 23 MB |
File | |
Category | Hindi Books, History |
Download | Click on the button below |