प्रियदर्शिका हिंदी पुस्तक पीडीएफ | Priyadarshika Hindi Book PDF Download
हमारा संस्कृत-साहित्य अत्यन्त समृद्ध है। भारतीय जीवन का शायद ही कोई ऐसा अंग हो, जिसके सम्बन्ध में मूल्यवान् सामग्री का अत्यंत भंडार संस्कृत-साहित्य में उपलब्ध न हो। लेकिन खेद की बात है कि संस्कृत से अपरिचित होने के कारण हिन्दी के अधिकांश पाठक उससे अनभिज्ञ हैं उनमें जिज्ञासा है कि वे उस साहित्य से परिचय प्राप्त करें; परन्तु उसका रस वे हिन्दी के द्वारा लेना चाहते हैं। पाठकों की इसी जिज्ञासा को देखकर बहुत समय पहले हमने विचार किया था कि संस्कृत के प्रमुख कवियों, नाटककारों आदि की विशिष्ट रचनाओं को छोटी-छोटी कथाओं के रूप में हिन्दी में प्रस्तुत करें और इस कार्य को संस्कृत-प्रेमी श्री हरदयालुसिंहजी से तभी प्रारम्भ भी करा दिया था। उन्होंने कई ग्रंथों का कथासार हमारे लिए कर दिया था। हिन्दी के पाठकों की सेवा में उस तथा कुछ अन्य सामग्री को सम्पादित करके उपस्थित किया जा रहा है।
इस पुस्तकमाला से हिन्दी के सामान्य पाठक भी लाभ उठा सकें, इसलिए पुस्तकों की भाषा बहुत सरल बनाने का प्रयत्न किया गया है। पाठकों की सुविधा के लिए टाइप भी मोटा लगाया गया है। इन पुस्तकों का सम्पादन हिन्दी के सुलेखक श्री विष्णु प्रभाकर ने बड़े परिश्रम से किया है। इस माला में कई पुस्तकें निकल चुकी हैं। आशा है, हिन्दी के पाठकों को इन पुस्तकों से संस्कृत-साहित्य की महान् रचनाओं की कुछ-न-कुछ झांकी अवश्य मिल जायगी। पूरा रसास्वादन तो मूल ग्रंथ पढ़कर ही ह सकेगा। यदि इन पुस्तकों के अध्ययन से मूल पुस्तकें पढ़ने की प्रेरणा हुई तो हम अपने परिश्रम को सफल समझेंगे।
संस्कृत-साहित्य में महाराज हर्षवर्द्धन के तीन रूपक ग्रंथ उपलब्ध हैं- रत्नावली, प्रियदर्शिका और नागानन्द। इनमे से दो की कथा आप पढ़ चुके हैं। तीसरी कथा अब पढ़िये रत्नावली और प्रियदर्शिका दोनों के नायक वत्सराज उदयन हैं। एक में रत्नावली के साथ उनका परिणय दिखलाया गया है, और दूसरे में प्रियदर्शिका के साथ। ऐसे ही कथानक को लेकर कई शता- ब्दियों पूर्व कालिदास ने मालविकाग्निमित्र की रचना की थी; पर प्रियदर्शिका में जो स्वाभाविकता और भावों की सरलता है, वह रस श्रृंगार के सभी ग्रंथों में नहीं पायी जाती रत्नावली की तरह यह भी श्रंगार रस प्रधान नाटक है इसकी कथा में भी वही कौतूहल है चरित्र-चित्रण बड़ा सफल है। भाषा, शैली सभी सहज और सरस है।
प्राचीन काल में अंग देश में दृढ़वर्मा नाम के राजा राज्य करते थे उनकी पुत्री का नाम प्रियदर्शिका था । वह बहुत सुन्दर थी महाराज ने उसका विवाह कौशाम्बी- नरेश वत्सराज उदयन के साथ करने का निश्चय किया था । उनका पड़ौसी कलिंग का राजा भी राजकुमारी के साथ विवाह करना चाहता था । किन्तु राजा पहले ही वत्सराज को वचन दे चुके थे, इसलिए कलिंग-नरेश से उन्होंने नाहीं कर दी इस पर कलिंग-नरेश क्रोध में भर उठे और उन्होंने अंग देश पर आक्रमण कर उसे रौंद डाला। यही नहीं उन्होंने दृढ़वर्मा को बन्दी भी बना लिया । जिस समय राज- धानी में भयंकर युद्ध हो रहा था और चारों ओर भगदड़ मची हुई थी ।
उस समय राजा का स्वामिभवत कंचुकी विनयवसु राजकुमारी को वहां से बाहर निकाल लाया । उसे अपने स्वामी के वचन का ध्यान था । इसीलिए वह राजकुमारी को वत्सराज को सौंपने के विचार से कौशाम्बी की ओर चल पड़ा । रास्ते में विन्ध्यारण्य पड़ता था । वहाँ का अधिपति विन्ध्यकेतु राजा दृढ़वर्मा का मित्र था । कंचुकी ने राजकुमारी को उसको सौंप दिया और स्वयं पास के अगस्त्य तीर्थ में स्नान करने चला गया। वहां से लौटा तो देखा कि उसके पीछे अचानक किसी शत्रु ने विन्ध्या- रण्य पर आक्रमण कर दिया है और विन्ध्यकेतु को मार डाला है । राजकुमारी का भी कहीं पता नहीं है ।
उसने चारों ओर खोजा, किन्तु कहीं कुछ पता न चला। अब वह वत्सराज के पास क्या मुंह लेकर जाता । इसलिए वहां से लौट पड़ा। उसने यह निश्चय किया कि अब वह कारागार में पड़े हुए अपने स्वामी ही की सेवा में रहेगा । वत्सराज उदयन कौशाम्बी के राजमहल में अपने विदूषक मित्र वसन्तक के साथ बातचीत कर रहे थे वह उज्जयिनी के राजा प्रद्योत के यहां बन्दी होकर रहे थे उस दशा में उन्हें राजकुमारी वासवदत्ता को वीणा सिखाने का काम सौंपा गया था।
Book | प्रियदर्शिका / Priyadarshika |
Author | Shri Narayandutt Pandey |
Language | Hindi |
Pages | 36 |
Size | 4 MB |
File | |
Category | Story, History, Hindi Books |
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