मोमिन की नमाज़ हिंदी पुस्तक पीडीएफ | Momin Ki Namaz Hindi Book PDF



Momin Ki Namaz Hindi Book PDF


मोमिन की नमाज़ हिंदी पुस्तक पीडीएफ | Momin Ki Namaz Hindi Book PDF Download

नमाज़ हर मुसलमान आकिल बालिग (पुख्त व्यसक) मर्द व औरत पर फर्ज है और सारी इबादतें जो मुसलमानों के लिये जरूरी करार दी गई हैं, उनमें सब से ज्यादा अहम हैं. लेकिन बहुत से मुसलमान नमाज़ तो पढ़ते हैं मगर उसके हुकुक की रिआयत नहीं करते, जिस के सबब कभी ऐसा होता है कि कामिल तौर पर अदा नहीं होती और सवाब कम हो जाता है और कभी नमाज़ ऐसी होती है कि उसका दोबारा पढ़ना ज़रूरी होता है और ऐसी नमाज़ अगर फिर से न पढ़ी तो नमाज़ी गुनेहगार होता है। और कभी अपनी ला-इल्मी या लापरवाही से इस तरह नमाज़ पढ़ता रहेता है कि जिस के सबब फासिक और मरदू- दुश्शहादा हो जाता है, हालांकि वो अपने आप को नेक गुमान करता है और कभी ऐसा होता है कि नमाज़ के सारे शराएत वुजू और गुस्ल वगैरा पुरे तौर पर सहीह होते हैं और नमाज़ के तमाम अरकान भी अदा होते हैं।

लेकिन नमाज़ी इस में कोई ऐसी बात कर बैठता है कि जिस के सबब उसकी नमाज में बिल्कुल नहीं होती और उस का अज़-सरे नौ पढ़ना उस पर फर्ज़ होता है, मगर इस की तरफ नमाज़ी की तवज्जोह नहीं होती, तो सारी महेनत उस की बरबाद हो जाती है और फर्ज़ उस पर बाकी रहे जाता है। जनाब मौलाना अब्दुस्सत्तार साहिब हमदानी बरकाती रज़वी नूरी लाइके सद मुबारक बाद और काबिले हज़ार तहसीन हैं, कि उन्होंने जेरै नज़र किताब 'मोमिन की नमाज़' बिल्कुल नये अन्दाज से ऐसे तरीके पर मुरत्तब की है कि थोड़ी सी तवज्जोह से हर मुसलमान आसानी के साथ जान सकता है कि वो कौन सी ऐसी बातें हैं कि वो सब की सब छूट जानें फिर भी नमाज़ हो जाती हैं, सिर्फ सवाब कम होता है और वो कौन से काम हैं कि जिन में से किसी के भी कस्दन छोड़ने से नमाज़ का दोबारह पढ़ना वाजिब होता है।

भूल कर छूट जाने से सजूद-ए-सहव वाजिब होता है। और नमाज़ की वो कौन सी बातें हैं कि जिन में से अगर एक भूल कर भी छूट जाए तो नमाज़ बिल्कुल नहीं होती और उस का अजू-सरे नो पढ़ना फर्ज होता है। नमाज़ हर मुसलमान आकिल बालिग मर्द व औरत पर फर्ज है और सारी इबादतें जो मुसलमानों के लिये जरूरी करार दी गई हैं, उनमें सब से ज्यादा अहम हैं. लेकिन बहुत से मुसलमान नमाज़ तो पढ़ते हैं मगर उस के हुकुक की रिआयत नहीं करते, जिस के सबब कभी ऐसा होता है कि कामिल तौर पर अदा नहीं होती और सवाब कम हो जाता है और कभी नमाज़ ऐसी होती है कि उसका दोबारा पढ़ना ज़रूरी होता है और ऐसी नमाज़ अगर फिर से न पढ़ी तो नमाज़ी गुनेहगार होता है।

अपनी ला-इल्मी या लापरवाही से इस तरह नमाज़ पढ़ता रहेता है कि जिस के सबब फासिक और मरदू- दुश्शहादा हो जाता है, हालांकि वो अपने आप को नेक गुमान करता है और कभी ऐसा होता है कि नमाज़ के सारे शराएत वुजू और गुस्ल वगैरा पुरे तौर पर सहीह होते हैं और नमाज़ के तमाम अरकान भी अदा होते हैं लेकिन नमाज़ी इस में कोई ऐसी बात कर बैठता है कि जिस के सबब उसकी नमाज में बिल्कुल नहीं होती और उस का अज़-सरे नौ पढ़ना उस पर फर्ज़ होता है, मगर इस की तरफ नमाज़ी की तवज्जोह नहीं होती, तो सारी महेनत उस की बरबाद हो जाती है और फर्ज़ उस पर बाकी रहे जाता है।

मौलाना हमदानी ने इस किताब में बहुत से मुश्किल मसाइल को मिसाल के साथ लिख कर इस का समझना भी बहुत आसान कर दिया है, जिन से जाहिर होता है कि तफ़हीम पर उन को पुरी कुदरत हासिल है। जहव-ए-कुब्रा, साय- ए-अस्ली और निस्फुन्नहार-ए-श्रइ, व उर्फी, किसे कहते हैं ? मिसाल से मैं बिल्कुल वाज़ेह कर दिया है और नक्शा के साथ उन को इस तरह समझाया है न कि बहुत से आलिम और फाज़िल कि सनद रखनेवाले, जो अब तक इन चीज़ों न को नही समझ सके हैं, वो इस किताब की मदद से समझ सकते हैं और मौलाना हम्दानी ने शुरू में हल्ले लुगात और शरई इस्लेताहात को भी तहरीर कर दिया है, जिस से मसाइल के समझने में लोगों को बड़ी सहूलत होगी।

लेहाजा यह कहना गलत न होगा कि नमाज़ के मसाइल की उर्दु की मुस्तनद किताबों में येह एक एसा बेश- बहा (मुल्यवान) इज़ाफा है, जिस की हमारे यहां मिसाल नहीं। इस किताब को पढ़ने से ज़ाहिर हुवा कि मौलाना हम्दानी साहिब को नमाज़ के मसाइल में भी अच्छी खासी बसीरत हासिल है। आलिम बनाने वाली किताब "बहारे शरीअत" और आलिम को मुफ्ती बनाने वाली किताब "फतावा रविया" का उन्होंने बड़ी गहरी नज़र से तअला किया है। इसके इलावा मौलाना मौसूफ में और भी बहुत सी खुबियां पाइ जाती हैं, जिन में से एक ये है कि वो ताजिर (व्यापारी) होने के साथ बहुत बडे मुसन्निफ भी हैं कि अब तक एक सौ किताबें लिख चुके है।





Bookमोमिन की नमाज़ / Momin Ki Namaz
AuthorAllama Abdursattar Hamdani
LanguageHindi
Pages241
Size4 MB
FilePDF
CategoryIslamic Book, Hindi Book
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