महाराजा सूरजमल हिंदी पुस्तक पीडीएफ Maharaja Surajmal Hindi Book PDF
मैं भरतपुर का हूँ, अतः यह अनिवार्य ही था कि बचपन से ही महाराजा सूरजमल का नाम मेरे कानों में पड़ता रहे । मेरे जीवन के पहले छह वर्ष ऐतिहासिक नगर डीग में उन उद्यान प्रासादों में व्यतीत हुए जिनकी कल्पना ठाकुर वदनसिंह ने की थी और जिनका निर्माण उनके पुत्र महाराजा सूरजमल के हाथों पूरा हुआ । उसके वाद हम भरतपुर चले आये, जहाँ का विख्यात और अपने समय का अज्ञेय दुर्ग सारे शहर था । इसे देखकर अतीत के गौरव और निर्मल कीर्ति का स्मरण हो आता था ।
इसी भरतपुर में तो सन् 1805 में लार्ड लेक का "सारा मान मिट्टी में मिल गया था । मेरी माँ मुझे सुनाया करती थी कि भारत के सर्वप्रमुख जाट राज्य, भरतपुर ने किस तरह सत्रहवीं शताब्दी के अंत और अठारहवीं शताब्दी के आरंभ में वटमारी करके धन अर्जित किया था । दिल्ली से आगरा का राजमार्ग जाट प्रदेश से होकर गुज़रता था । मालदार मुग़ल काफ़िलों पर निःशंक होकर, ग़ज़ब की हिम्मत से छापे मारे जाते थे और उन्हें लूट लिया जाता था ।
इसमें जोखिम बहुत था, लेकिन वैसी ही प्राप्ति भी थी । मेरा स्वाभिमान बढ़ता गया और साथ ही कुतूहल भी । परंतु जब मैंने जाट जाति के इस महानतम सेनापति और राजममंज्ञ के विषय में अपनी जिज्ञासा पूरी करनी चाही, तो मुझे पता चला कि इस संबंध में परिपुष्ट तथ्य मिलने मुश्किल हैं । राजपूतों को कर्नल टॉड मिल गया, मराठों को ग्रांट डफ, और सिखों को कनिंघम, परंतु जाटों का कोई नामलेवा ही नहीं ।
सन् 1925 में जाकर कहीं प्रो० के० आर० कानूनगो की पुस्तक 'हिस्ट्री ऑफ़ द जाट्स' प्रकाशित हुई । इस विषय पर अब तक की यह सबसे प्रामाणिक पुस्तक है; यह विद्वत्तापूर्ण तो है, परंतु प्रेरणामय रचना नहीं । न जाने क्यों, महाराजा सूरजमल जीवनी लेखकों की पकड़ में नहीं आये । यद्यपि उनकी मृत्यु 1763 में हो गयी थी, फिर भी अंगरेजी में प्रकाशित होने वाली उनकी पहली जीवनी यही है ।
Book | महाराजा सूरजमल / Maharaja Surajmal |
Author | Shri Natwar Singh |
Language | Hindi |
Pages | 159 |
Size | 6 MB |
File | |
Category | Astrology, History |
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