महाराजा छत्रसाल बुंदेला हिंदी पुस्तक पीडीएफ | Maharaja Chhatrasal Bundela Hindi Book PDF Download
जिसे पढकर साधारण पाठक साथ ही इतिहासकार का ध्यान भी छत्रसाल बुंदेला की ओर स्वत आकर्षित हो जाना स्वाभाविक ही है । कई एक पुरानी प्रतियो में भी पाठान्तर के रूप में ही क्यों न हो, "साहू" के स्थान पर "सिवा" पाठ भेद से तो पाठक के हृदय छत्रसाल के प्रति और भी अधिक आदर और श्रद्धा उत्पन्न हुए बिना नही रहते यही कारण था कि ईसा की १९वी शताब्दी के अतिम युगो में जब उस समय भारत पर शासन कर रही प्रवल अग्रेजी सत्ता के प्रति सर्वव्यापी उत्कट विरोध की तीव्र भावना भारतीयो के हृदयो में घर करने लगी थी और उसी के फलस्वरूप जब भारतीय स्वाधीनता के उपासको तथा अदम्य साहसी देशभक्तो ने मुगल सत्ता के अनवरत अडिग विरोधी राणा प्रताप और सफल विद्रोही नेता शिवाजी को अपना पूज्य अनुकरणीय आदर्श स्वीकार किया तब साथ ही कुछ का ध्यान अनायास औरगजब के दुर्दम्य प्रतिरोधी छत्रसाल बुंदेला की ओर भी गया एव यदा-कदा उसको भी श्रद्धाजलि समर्पित की जाने लगी ।
अपने पिता साहसी चपतराय बुंदेला के चरण-चिह्नों पर चल कर छत्रसाल बुंदेला ने कोई साठ वर्षों के अनवरत संघर्ष और प्रयत्नो के फलस्वरूप पूर्वी बुंदेलखंड में एक मुविस्तृत स्वाधीन राज्य की स्थापना की थी। छत्रसाल के राज दरबार में भूषण का मुचित आदर-सम्मान हुआ था। छत्रसाल के दरबार में कई अन्य कवि भी रहते थे, जिनमें 'छ प्रकाश' का रचयिता लाल कवि प्रमुख था। छत्रसाल स्वय भी एक ऊचा कवि था । उनकी कविताओं के मग्रह पहिले 'छत्र-विलास' और बाद में 'छत्रसाल ग्रंथावली' के नाम से प्रकाशित हुए हैं ।
इधर कुछ साहित्यकार भी छत्रसाल बुंदेला की ओर आकर्षित हुए हैं। उपन्यासकार श्री बानचन्द शाह ने मराठी भाषा में 'छत्रसाल' नामक एक उपन्यास लिखा था । इघर सुविख्यात राजनीतिज्ञ माहित्यकार मरदार कावालम् मायव पणिक्कर ने भी मलयालम् भाषा में माल विषयक एक ऐतिहासिक उपन्यास की रचना की थी। परन्तु दुर्भाग्यवश बुद्ध पहिले तक छत्रसाल का कोई भी प्रामाणिक विस्तृत जीवन-वृत्त नहीं लिखा जा सका थापागमन ने अपने अग्रेजी इतिहास-प्रय 'ए हिस्ट्री आफ बुंदेलाज' में छत्रसाल के इतिवृत्त के लिए तो मुख्यत लाल कवि व्रत 'छत्र प्रकाश का ही अग्रेजी अनुवाद दिया है।
'ए हिस्ट्री जागा नवाज आफ फर्रुखाबाद' लिखते समय विलियम अर्विन ने तब प्राप्य फ़ारसी और हिन्दी आधार-सामग्री के आधार पर छत्रसाल के पिछले १०-१५ वर्षों के जीवन का यथासंभव क्रमबद्ध विवरण प्रस्तुत किया था। परन्तु तब भी छत्रसाल के औरगजेब- कालीन जीवन पर पर्याप्त प्रकाश डाल सकने वाली अत्यावश्यक प्राथमिक आवार सामग्री सर्वया अप्राप्य ही रही । पुन उन प्रादेशिक इतिहास विपयक आवश्यक स्थानीय आवार सामग्री या समुचित जानकारी भी तव नही मिल सकी थी। अतएव लेटर मुग़ल्ज' और 'हिस्ट्री आफ औरगजेब' में विलियम अर्विन तथा डाक्टर यदुनाथ सरकार द्वारा क्रमश प्रस्तुत छत्रमाल के मक्षिप्त जीवन-वृत्त तव अपूर्ण और कुछ अशो में अप्रामाणिक हो रहे ।
छत्रसाल ने अपने प्रदेश में जिस विस्तृत राज्य की स्थापना की थी वह उनकी मृत्यु के साथ ही अनेक विभागों में बँट गया, तथापि छत्रसाल का भारतीय इतिहास में अपना विशेष महत्व है। प्रथम तो मुगल साम्राज्य के विरुद्ध समय-समय पर चलते रहने वाले विद्रोहों की परम्परा में छत्रसाल के विरोध तथा विद्रोहो का बहुत ही उल्लेखनीय स्थान है । औरगजेव जैसे दृढ निश्चयी चतुर प्रवल सम्राट की दमनपूर्ण धर्मप्रधान कट्टर नीति से उत्तरी भारत में अवर्णनीय भय, विवशता एव निराशा विशेष स्पेण व्याप्त हो गये थे । तव छत्रसाल के विद्रोहो ने बुंदेली के साथ ही अन्य जनसाधारण में भी एक नई आशा तथा उत्साह का संचार किया था।
दूसरे औरगजेब की मृत्यु के कुछ ही वर्षों बाद मुगल साम्राज्य का जो विष्टञ्जलन प्रारंभ हुआ, छत्रसाल ने उसको विशेष गति ही नही दी परन्तु उस प्रदेश में सर्वया नई शक्तियो का प्रवेश कराकर अनजाने ही उसने उसकी सारी दिशा को भी वहुत कुछ बदल दिया । छत्रनाल की प्रार्थना पर बुंदेलखड पहुच कर बाजीराव पेशवा ने मुहम्मद वगग को उस प्रदेश से निकाल बाहर करने में उसकी पूरी-पूरी महायता की जिससे मुगल साम्राज्य के सब ही विरोधियों को बहुत बल मिला। पुन इमी मफल सहायता के बदले में छत्रसाल ने अपने राज्य का एक तिहाई भाग पेशवा बाजीराव को दे दिया।
इस प्रकार से प्रदेश में मराठो का एक स्वायी मुदृड केन्द्र स्थापित हो गया जिनने आगे चल कर मालवा पर अधिकार जमाने तथा दिल्ली और अन्तर्वेद तक जा पहुँचने में उन्हें विशेष कठिनाई नहीं रह गई । किन्तु इन मारी विशेषताओं एवं प्रवृत्तियों को ठीक तरह ने समझने के लिए छत्रसाल की विस्तृत प्रामाणिक जीवनी नितान्त आवश्यक हो जाती है। यह बड़े ही हर्प एव नतोप की बात है कि बुंदेलखण्ड के ही एक उत्नाही सुविन नुपूत, डा० भगवान- दाम गुप्त ने इस ग्रंथ की रचना कर भारतीय इतिहान नाहित्य की एक बहुत बडी कमी को पूरा करने का अनुकरणीय सफन प्रयत्न किया है ।
Book | महाराजा छत्रसाल बुंदेला / Maharaja Chhatrasal Bundela |
Author | Dr Bhagwandas Gupt |
Language | Hindi |
Pages | 178 |
Size | 6 MB |
File | |
Category | History, Biography |
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