करबला का मुसाफिर हिंदी पुस्तक पीडीएफ | Karbala Ka Musafir Hindi Book PDF Download
कुछ अरसा से पाक व हिन्द में ऐसी तहरीरें किताबी और रसाइल की शक्ल में फैलाई जा रही हैं जिन में अहले बैत रिजवानुल्लाहे तआला अलैहिम अज्मईन, खानदाने नुबुव्वत और मिदहत सरायाने अहले बैत के ख़िलाफ़ वे सरोपा मवाद जमा करके तारीखी तहकीक व तंकीद का मुँह चिड़ाने का काम लिया जा रहा है। नज़रियाती फिल्मों की एक शक्ल तो सदियों से काम कर रही थी जिस में अहले बैते मुस्तफा से तमाम अफ़राद को अलाहदा करके सिर्फ पाँच नुफूसे कुदेसीया को मुस्तहिके अकीदत समझा जाने लगा। खानदाने नुबुव्वत के अक्सर अफ़ाद को मुस्तसना क़रार दे कर सिर्फ चन्द हज़रात को ही इस हलका में रखा गया। फिर जब तक अहले बैत और खानदाने नुबुव्वत के अलाहदा करदा बुजुर्गाने मिल्लत को सब्ब व शितम का निशाना नहीं बना लिया जाता था, मिदहत सराई-ए-अहले बैत के फ़रीज़ा से सुबुकदोश तसव्वुर नहीं समझा जाता था।
इस दीनी फिल्ने ने पूरी इस्लामी तारीख पर अपने मन्हूस असरात मुरतब किए और सहाबा किराम, उम्महातुल-मुमिनीन और दीगर बुज़ुर्गाने दीन पर बेपनाह इल्ज़ामात गढ़े और हवस खुबसे बातिनी की तस्कीन की गई। ऐसे लिटरेचर ने नेक लोगों पर जुबानदराजी की रिवायत काइम की और इस्लामी दुनिया में गुस्ताख़ाना अंदाज़े तहरीर के दरवाज़े खोल दिए । अब इस रुजहान को जब खार्जी अनासिर ने अपनी कलमों की नोक पर रखा तो वह नोके सिनान बन कर अहले ईमान के जज़्बात को मजरूह करती गईं। गाली शीओं ने अपनी जारेहाना तहरीरों से मिल्लत के इन नेक दिल कारेईन के जज़्बात को पामाल करने में कभी निदामत महसूस न की थी जिन्हें सहाबा रसूल से मुहब्बत व अक़ीदत थी।
अब इनकी रुसवा-ए-आलम आदत को ख़ार्जी अहले कलम ने अपना लिया है और वह पाक व हिन्द में अहले बैत, सादाते किराम और खुसूसियत से इमाम आली मकाम हज़रत हुसैन रज़ि अल्लाहु अन्हु की जात को निशाना-ए-सितम बना कर किताबें लिखते चले जा रहे हैं। वह अपने कारेईन में ग़लत तअस्सुर दे रहे हैं कि खानदाने नुबुव्वत में से सैयद बनू हाशिम और इमाम हुसैन रज़ि अल्लाहु तआला अन्हु को इस्लामी तारीख में कोई मुम्ताज मकाम हासिल नहीं। उनके यहाँ इस्लाम की तारीख में फातेहीन, शम्शीर जन और बादशाहों को तो एक दरजा हासिल है मगर जिस ने मैदाने करबला में हक व बातिल के मअरका को ज़िन्दा जावेद बना दिया था, जिसने बादशाहों को हुक्मरानी सिखाए थे, को इतना भी हक़ नहीं दिया जा सकता कि उसके किरदार को एहतराम व अक़ीदत की निगाह से देखा जाए।
इस सिलसिला में महमूद अब्बासी की रुसवाए आलम किताब खिलाफते मुआविया व यज़ीद, तहकीक सैयद व सादात, तहकीक मजीद फिर मौलाना सुलेमान की सादात बनू उमैया और अबू यज़ीद, मुहम्मद दीन बट की रशीद इब्ने रशीद और इस जैसी छोटी मोटी किताबों ने इन पाकीज़ा हस्तियों के तकद्दुस को सख़्त मज्ह किया। उलमा-ए-अहले सुन्नत ने इन नापाक तहरीरों का बरवक्त और सख़्त नोटिस लिया और इन कलमकारों की नापाक कोशिशों की हमेशा मजम्मत की। हिन्दुस्तान के उलमा-ए-अहले सुन्नत में से अल्लामा मुश्ताक अहमद निज़ामी ने अपने माहनामा पासबान का 1960 ई० में खुसूसी नम्बर तरतीब दिया (जिसे किताब "करबला का मुसाफ़िर की शक्ल में बादनी - ए - तरमीम पेश किया जा रहा है) और खार्जियों के नापाक अज़ाइम को बेनकाब करने की एक कामयाब कोशिश की।
दिसम्बर 1968 ई० जामे नूर, जमशेदपुर बिहार ने इन नेकाब पोश मुअर्रेख़ीन को अपनी कलम की अनी से बे-क़ाब कर दिया और फिर इस ज़ेहन के मुहरिकात और असबाब को सामने ला रखा है जो उनके पीछे काम कर रहा था। इन सारे ज़राए की निशान देही कर दी जो अपने नरियात के सायों में ऐसी नापाक तहरीरों को नश्व व नुमा देते रहे थे। दरअसल इस फ़िक्री रुजहान के पीछे अक़ीदा और नरिया की पूरी कुव्वत कार फ़रमा है जिसके असबाब व अलल पर तफ्सीली गुफ़्तगू की ज़रूरत है।
खिलाफ्ते मुआविया व यज़ीद के मुतअल्लिक देवबन्द का जमाअती आर्गन रोजनामा 'अल-जमीअत' दिल्ली के एडीटर का शजरा गालिबन आपकी नज़र से गुज़रा होगा, इसका इक्तिबास मुलाहिजा फरमाइए : अभी हाल ही में पाकिस्तान से मआविया व यज़ीद पर एक किताब शाए की गई है जो हमारी नज़र भी गुज़री है और अपने मौजूअ पर इस कद्र मुहक्केकाना और मुअर्रखाना है कि इस से बेहतर रिसर्च की कोई मिसाल पेश नहीं की जा सकती।
Book | करबला का मुसाफिर / Karbala Ka Musafir |
Author | Mushtaq Ahmed Nizami |
Language | Hindi |
Pages | 198 |
Size | 72 MB |
File | |
Category | Islamic Book, Hindi Book |
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