कमल नेत्र स्तोत्र हिंदी पुस्तक पीडीएफ | Kamal Netra Stotra Hindi Book PDF
प्रथम जो लीजे है गणपति का नाम । तो होवें सभी काम पूरण तमाम । करे बेनती दास कर हर का ध्यान । जो कृपा करी आप गिरधर हरी । हरि हर हरि हर हरि हर हरी । मेरी बार क्यों देर इतनी करी।. ब्रह्माविष्णुशिवजी हैं एको स्वरूप । हुए एक से रूप तीनों अनूप । रचनपालन विनाशहेत भये तीन रूप । चौबीसों अवतारोंकीमहिमाकरी हरि० शक्ति स्वरूपी और परमेश्वरी । रखा अपना नाम महा ईश्वरी । योगीश्वर मुनीश्वर तपीश्वर ऋषि तेरी जोत में लीन परमेश्वरी ।
हरि तेरा नाम है दुःख हरण दीनानाथ । जो बरसन लगा इन्द्र गुस्से के साथ । रखा तुमने ग्वालों को दे करके हाथ । वहाँ नाम अपना धरा गिरधारी हरि असुर ने जो बांधा था प्रहलाद को । न छोड़ा भक्त ने तेरी याद को । न कीनी तवक्कफ खड़े दाद को । धरा रूप नरसिंह पीड़ा हरी । हरि नहीं छोड़ता राम का था जिकर । तो गुस्से में बाँधा था उसको पिदर । कहा के करूँ मैं जुदा तन से सर । तोखम्ब फाड़निकलेनादेरीकरी हरि० चले जल्द आये प्रहलाद की बेर ।
हिरणाकुशको मारा ना. कीनी थी देर किया रूप बावन ब्राह्मण का फेर । बली के जो द्वारे आ ठाड़े हरी हरि० था जलग्राह ने गज को घेरा जभी । ना लीना था नाम उसने तेरा कभी । जो मुश्किल बनी शरण आया तभी हरि रूप होकर के पीड़ा हरी । अजामिल को तारा ना कीनी थी देर । चखे प्रेम से जूठे भिलनी के बेर । करी बहुत कृपा जो गणिका की बेर । अजामिल कहाँकरसके हमसरी । हरि० जभी भक्त पै आके बिपता पड़ी। सुदामा की थी पल में पीड़ा हरी है इसने तेरे नाम की धुन धरी ।
नाराखेतूमुश्किल किसीकी अड़ी हरि० नरसी भक्त की हुण्डी करी । सांवलशाह ऊपर थी उसलिखधरी । ढूंढत फिरे थी लगी थरथरी ।।।। वक्रीदन्त ने जब सताई मही । न सूझी बहुत कुछ आतुर भई । सिरफ ओट तेरी मही ने लई । किया रूप वाराह रक्षा करी हरि जो सैयाद ने पंछी को था दुःख दिया । वह आतुर भया नाम तेरा लिया। तभी साँप सैयाद को डस गया । छुड़ायाथा पंछीको जो हरहरि हरि वो रावण असुर जो सिया ले गया । निकट मौत आई वह अन्धा भया ।
असुर मार राजा विभीषण किया । सियालेके आए अयोध्यापुरी हरि० जो गौतमने अहिल्याको बद्दुआ दई । उसी वक्त अहिल्या शिला हो गई। पड़ी थी वह रास्ते में मुद्दत हुई लगाकेचरणमुक्तिउसकीकरी हरि० जो संकट बना एकनामी को आ । कहे बादशाह मेरी गौ दे जिवा । तो नामे ने बिनती तुम्हारी करी । वहाँ नाथ नामे की पीड़ा हरी हरि० शंखासुर असुर एक पैदा हुआ। ब्रह्मा के वह वेद सब ले गया । ब्रह्मा आपकी शरण आकर पड़ा। मत्स्य रूप हो वेद लाये ।
Book | कमल नेत्र स्तोत्र / Kamal Netra Stotra |
Author | Randhir Book Sales |
Language | Hindi |
Pages | 36 |
Size | 18 MB |
File | |
Category | Hindi Books, Hinduism |
Download | Click on the button below |