जीवन शोधन हिंदी पुस्तक पीडीएफ | Jivan Shodhan Hindi Book PDF



Jivan Shodhan Hindi Book PDF


जीवन शोधन हिंदी पुस्तक पीडीएफ | Jivan Shodhan Hindi Book PDF Download

जो विवेकी और उत्साहयुक्त पुरुष जीवन में किसी उच्च उद्देश्य को पूर्ण करने की आकांक्षा रखता है, उसके मन में से प्रश्न बार-बार अठते हैं कि मानव- जीवन का हेतु क्या होना चाहिये, और क्या सिद्ध करने से अथवा उसके लिये यत्न करते रहने से असकी अन्नति होगी। जैसे पुरुष को विचार करने में यत्किंचित भी सहायता करना संभव हो तो की जाय, जिस उद्देश्य से श्री किशोरलाल भाज ने यह पुस्तक लिखने का प्रयास किया है। वे खुद श्रेयार्थी हैं और उन्हें खुद उस बात का अनुभव है कि श्रेयार्थी को किन-किन कठिनाइयों से गुजरना पड़ता हैं, किस प्रकार के संशयों व भ्रमों से अपने मन को मुक्त करना पड़ता है, उस ओर से विवेक बुद्धि तथा दूसरी ओर से केवल परम्परागत श्रद्धा द्वारा स्वीकृत मान्यताओं के संघर्ष को किस तीव्रता से मन को सहन करना पड़ता है। 

अतः उनके ये लेख स्वानुभव से और मनोमन्थन करके लिखे गये हैं । जिसमें कोई सन्देह नहीं कि जिससे ये श्रेयार्थी के लिये उपयोगी होंगे। मनुष्य चाहे कितना ही सात्त्विक हो, अनेक सद्गुण असके स्वभावभूत हो गये हों और उसका जीवन अन्नति-मार्ग में ही अग्रसर होता हो, तो भी केवल परम्परागत संस्कारों के कारण अथवा किसी असम्भाव्य ध्येय को जीवन का अन्तिम साध्य बना लेने के कारण उसका मन अशक्य वस्तु के लिये व्यर्थ ही परिश्रम करता और अद्वेग पाता रहता है। जैसी स्थिति में असकी कर्तृत्व-शक्ति का न तो समाज को पूरा लाभ मिलता है, और न खुद उसे ही पूरा समाधान प्राप्त होता है। सात्त्विकता होते हुये भी जिनके मनमें समाधान नहीं, अन श्रेयार्थियों के प्रति समभाव से प्रेरित होकर लेखक ने इस पुस्तक में बहुत कुछ लिखा है। 

पाठक देखेंगे कि विवेक, सत्त्व-संशुद्धि, प्रामाणिकता, सत्यज्ञान के लिए उत्कंठा, समाज के हित साधन की भावना, कर्तव्य पालन, संयम, निष्कामता, पवित्रता, आदि दैवी गुणों के उत्कर्ष पर इस पुस्तक में बहुत जोर दिया गया है। निःसन्देह हमारे दैवी गुणों का अत्यन्त महत्त्व है। इन गुणों के उत्कर्ष के द्वारा ही हम मनुष्यत्व की पूर्णता को पा सकते हैं। इन गुणों में जितनी कमी है, उतने ही हम मनुष्यत्व से दूर हैं। यदि हम मनुष्य हैं, और यदि ऐसा होना कोई बुराई नहीं है, तो हमारा यही धर्म होना चाहिये कि हम पूर्ण मनुष्य बनने का यत्न करें और पूर्ण मनुष्य बनना ही हमारा ध्येय होना चाहिये। 

यह ध्येय दैवी सम्पत्तियों - गुणों के उत्कर्ष के बिना कदापि - सिद्ध नहीं हो सकता। इन सब गुणोंमें विवेक सर्वोपरि है। क्योंकि किसी गुण को गुण या अवगुण ठहरानेवाला, अचित व अनुचित का निर्णय करनेवाला यही गुण है। प्रत्येक वस्तु को इसकी परीक्षा में से पास होना पड़ता है। जीवन में इस गुण का जितना महत्त्व है, अतना ही यह दिन प्रतिदिन अधिकाधिक शुद्ध होता रहना चाहिये। जीवन के अनेक प्रकार के अनुभव, अनका सूक्ष्म निरीक्षण, निरन्तर कर्मरत स्वभाव, और जैसे स्वभाव से ही धीमे-धीमे निष्काम बननेवाली हमारी बुद्धि - इन सबके योग से विवेक शुद्ध होता जाता है। 

इसकी शुद्धि पर ही हमारी जीवन-नौका उचित मार्ग में चल सकेगी। विवेक मानो जीवन का रहनुमा है। सद्गुणों के रहते हुये भी यदि हम राह भूल जायं, अथवा अनेक सद्गुणों में किसका कितना महत्त्व है जिसका तारतम्य न रहे या समझ में न आवे, तो हानि हुए बिना नहीं रह सकती। कमसे कम मनुष्यत्व में तो कसर रह ही जायगी। और जो कसर है, वही नुकसान है। विवेक के बाद दूसरी महत्त्वपूर्ण वस्तु है दृढ़ता यानी निग्रह की क्षमता। विवेक से जो उचित सिद्ध हुआ हो, विवेक ने हमारे आचरण के लिये जो मार्ग निश्चित कर दिया हो, अस पर चलनेकी दृढ़ता यदि मनुष्यमें न हो, तो विवेक के रहते हुअ भी वह पंगु रहेगा। संसार में शायद ही ऐसे लोग मिलेंगे जो यह बिलकुल न जानते हों कि भला क्या है। 

हमारे समाज में तो कभी ऐसे व्यक्ति नही मिलेंगे, जिन्हें भलाओ व बुराओका कुछ ज्ञान न हो। परन्तु जिस भेद को समझते हुए भी जो उसके अनुसार चल नहीं सकते, ऐसे ही लोग ज्यादातर मिलेंगे। जिसका कारण यह है कि अच्छा क्या है, यह जानते हुए भी उस पर अमल करने की दृढ़ता का उनमें अभाव है। उसी हालत में उनकी अच्छाइयों की समझ भी बेकार हो जाती है। इसीलिए दृढ़ता की अत्यन्त आवश्यकता है। बिना दृढ़ता के हम एक कदम भी आगे नहीं बढ़ सकते। विवेक के अनुशीलन से जैसे विवेक दिन-दिन शुद्ध होता जाता है, वैसे ही दृढ़ता के अनुशीलन से दृढ़ता भी बढ़ती है।





Bookजीवन शोधन / Jivan Shodhan  
AuthorK. G. Mashruwala
LanguageHindi
Pages400
Size30 MB
FilePDF
CategoryHindi Books, Lifestyle
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