इस्लामी जिहाद हिंदी पुस्तक पीडीएफ | Islamic Jihad Hindi Book PDF Download
यह पुस्तक वास्तव में मौलाना सैयद अबुल आला मौदूदी की सुप्रसिद्ध उर्दू पुस्तक 'अल-जिहाद फ़िल-इस्लाम' के एक अध्याय 'इस्लामी 'जिहाद की हक़ीक़त' का हिन्दी अनुवाद है। मौजूदा हालात में विषय-वस्तु के विशेष महत्त्व एवं आवश्यकता को देखते हुए इस अध्याय को अलग से प्रकाशित किया जा रहा है। पाश्चात्य जगत् ने इस्लाम की लोकप्रियता को समाप्त करने या कम करने तथा लोगों को इस्लाम की ओर बढ़ने से रोकने के लिए इस्लाम के सम्बन्ध में दुष्प्रचार का जो सिलसिला शुरू कर रखा है, उससे प्रभावित होकर स्वयं हमारे देश में भी दुष्प्रचार का अंधानुकरण किया जा रहा है। इस्लाम की जिन बातों के सम्बन्ध में लोगों को भ्रमित किया जा रहा है उनमें एक महत्वपूर्ण विषय जिहाद भी है।
जिहाद के बारे में यह दुष्प्रचार किया गया और किया जा रहा है कि इस्लाम ने अपने अनुयायियों को इस बात का खुला आदेश और अनुमति दे रखी है कि वे अन्य धर्मवालों को मारें कार्ट, उनका खून बहाएं और बलपूर्वक उनका धर्म परिवर्तन करें। अपने इस कुप्रयास को यथार्थ सिद्ध करने के लिए इन सभ्य एवं शिक्षित लोगों ने झूठे और भ्रामक किस्से गढ़े और कुरआन हदीस की शिक्षाओं को सन्दर्भ से अलग करके मनमाने अर्थ पहनाए और इस्लाम को एक हिंसक धर्म के रूप में पेश करने का निन्दनीय प्रयास किया। इन लोगों का यह मानना है कि झूठ को इतना प्रचारित किया जाए कि वह 'सत्य' बनकर सामने आ जाए।
मौलाना सैयद अबुल आला मौदूदी पर ख़ुदा अपनी कृपा वर्षा करें कि उन्होंने इस्लामी जिहाद का वास्तविक स्वरूप स्पष्ट करने के लिए और उन असत्यवादियों का असली चेहरा बेनकाब करने के लिए 1927 ई. में उर्दू में एक पुस्तक 'अल-जिहाद फ़िल-इस्लाम' लिखी, जिससे न केवल इस्लामी जिहाद की पवित्रता और महत्ता उजागर हुई, बल्कि अन्य धर्मों और मतों का तुलनात्मक अध्ययन प्रस्तुत करके विद्वान लेखक ने लोगों के सामने दूध का दूध और पानी का पानी करके रख दिया। 'अल-जिहाद फ़िल इस्लाम का यह अध्याय न केवल इस्लामी जिहाद के वास्तविक स्वरूप को प्रस्तुत करता है, बल्कि उसकी वास्तविकता, आवश्यकता और महत्त्व पर भी रौशनी डालता है।
मानव सभ्यता एवं नागरिकता की आधारशिला जिस कानून पर स्थित है उसकी सबसे पहली धारा यह है कि मानव के प्राण और उसका रक्त सम्माननीय है। मानव के नागरिक अधिकारों में सर्वप्रथम अधिकार जीवित रहने का अधिकार है और नागरिक कर्तव्यों में सर्वप्रथम कर्तव्य जीवित रहने देने का कर्तव्य है। संसार के जितने धर्म-विधान और सभ्य विधि-विधान है, उन सब में प्राण-सम्मान का यह नैतिक नियम अवश्य पाया जाता है। जिस क़ानून और धर्म में इसे स्वीकार न किया गया हो, वह न तो सभ्य मानवों का धर्म और कानून बन सकता है, न उसके अन्तर्गत कोई मानव-दल शान्तिमय जीवन व्यतीत कर सकता है और न ही उसे कोई उन्नति प्राप्त हो सकती है।
प्रत्येक व्यक्ति स्वयं समझ सकता है कि यदि मानव प्राण का कोई मूल्य न हो, उसका कोई सम्मान न हो, उसकी सुरक्षा का कोई प्रबन्ध न हो तो चार आदमी कैसे मिलकर रह सकते हैं, उनमें किस तरह परस्पर कारोबार हो सकता है, उन्हें वह शान्ति एवं परितोष और वह निश्चिन्तता तथा चित्त की स्थिरता कैसे प्राप्त हो सकती है, जिसकी मनुष्य को व्यापार, कला और कृषि कार्य, धनार्जन, गृह निर्माण, यात्रा एवं पर्यटन और सभ्य जीवन व्यतीत करने के लिए आवश्यकता होती है। फिर यदि आवश्यकताओं से हटकर मात्र मानवता की दृष्टि से देखा जाए तो इस दृष्टि से भी किसी व्यक्तिगत लाभ के लिए या किसी व्यक्तिगत शत्रुता के कारण अपने एक भाई की हत्या करना निकृष्टतम निर्दयता और अत्यन्त पाषाण हृदयता है।
ऐसा अपराध करके मानव में किसी नैतिक उच्चता का पैदा होना तो अलग रहा, उसका मानवता के स्तर पर स्थित रहना भी असम्भव है। संसार के राजनैतिक क़ानून तो मानव जीवन के सम्मान को केवल दण्ड के भय और शक्ति के बल पर स्थापित करते हैं । किन्तु एक सत्यधर्म का काम दिलों में उसका वास्तविक मान-सम्मान पैदा कर देना है, ताकि जहाँ मानव द्वारा दिए जानेवाले दण्ड का भय न हो और जहाँ मनुष्य को पुलिस रोकने के लिए न हो वहाँ भी लोग एक-दूसरे की अकारण हत्या करने से बचते रहें। इस दृष्टिकोण से प्राण सम्मान की जैसी यथोचित और प्रभावकारी शिक्षा इस्लाम में दी गई है वह किसी दूसरे धर्म में मिलनी कठिन है।
Book | इस्लामी जिहाद / Islamic Jihad |
Author | Sayyed Abul Ala Maududi |
Language | Hindi |
Pages | 32 |
Size | 25 MB |
File | |
Category | Islamic, Hindi Books |
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