इस्लामी तारीखे आलम हिंदी पुस्तक पीडीएफ | Islami Tareekh E Alam Hindi Book PDF Download
किताब इस्लामी तारीखे आलम का मुसव्वदा पेशे नज़र हुआ। अहकर को सफर और वक़्त की तंगी दामनगीरी रही इसलिए बिल-इस्तीआब मुताला का मौका मयस्सर न आया। अल्बत्ता चीदह चीदह मकामात को मुलाहिजा किया, अबवाब की तरतीब और उनवानाते मज़ामीन की फेहरिस्त को देखने के बाद यह महसूस हुआ कि मोहतरमा सुगरा बशीर कादरी साहिबा ने बहुत सारी कुतुबे दीनीया व रसाइल के वसी मुताले और छान बीन के बाद यह किताब तरतीब दी है। इस लिहाज़ से मुअल्लिफ़ा काबिले सताइश व मुबारकबाद की मुस्तहिक हैं। मौसूफ ने ख़िदमते ख़ल्क और इशाअते सुन्नियत को अपना शिआर बना लिया है जिसके लिए अपनी मताओ हयात लगा दी। यही वह जज्ब-ए-ख़िदमते दीन था जिस ने आपको इज़्दवाजी बंधन में बंधने से माने रखा।
आपने अपनी हयाते मुस्तआर को लिखने पढ़ने के अलावा दीनी इदारा बनाम मदरसा आइशा निसवां अहमद नगर की निगरानी में लगा दिया। माशाअल्लाह। दुआ है रब्बे क़दीर उनकी जुमला मसाई जमीला व ख़िदमाते दीनीया को शर्फे कुबूलियत बख़्शे और मोहतरमा की मुरतबा किताब "इस्लामी तारीखे आलम" को कुबूले आम बनाए। आमीन बजाह सैयदुल मुरसलीन अलैहित्तहीया वत्तस्लीम। अख़ीर में यह बताना ज़रूरी समझता हूं कि यह किताब इस्लामी तारीख़ी मालूमात का इंसाइक्लोपेडिया है, जिस में इस्लामी मालूमात का बहा है। जिसके मुताला से तलबा व तालिबात और आम इंसान भी भरपूर फाइदा हासिल कर सकता है। उम्मीद क़वी है कि लोग इस किताब को हाथों हाथ लेकर मुअल्लिफ़ा की हौसला अफ़ज़ाई फरमाएंगे, उनके लिए तोश-ए-बख्शिश व मग्फ़िरत फरमाएंगे।
मोहतरम कारेईना इंसान की फितरत होती है कि वह दुनिया की अजीब व गरीब चीजों की खोज व जुस्तजू में लगा रहता है। बाज़ औकात उसके दिल व दिमाग में ऐसे-ऐसे सवालात पैदा होते हैं कि यह कायनात यह लौह व कुलम क्या चीज़ है? अल्लाह तआला ने यह जमीन आसमान चांद, सूरज, जन्नत दौजख और यह तमाम मखलूक को किस तरह पैदा किया होगा। इन्हीं सवालात के मद्दे नज़र रखकर यह तारीखे आलम किताब अब उर्दू के बाद हिन्दी में भी निहायत सादा व सरल जुबान में शाया की जा रही है। ताकि आम आदमी भी इसे पढ़कर इस्तेादा कर सके।
इंसान चाहे कितना भी पढ़ लिखकर इल्म हासिल कर ले आलिम व प्राजिल बने तो इसका मतलब यह नहीं कि उसे तमाम कुदरती चीजों का इल्म हासिल है लिहाजा कायनात की हर चीज़ का इल्म तो अल्लाह तआला के सिवा किसी को नहीं और यह तारीखे आलम तो उसकी ला महदूद कारखानए कुदरत ने ज़र्रा बराबर भी हैसियत नहीं। और न ही समुद्र बेकरां में एक कतरा की भी हो सकती है। ख़ालिके काइनात अल्लाह तआला ने सबसे पहले नूरे मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम को तख़्लीक़ फरमाया, जो एक हज़ार साल तक अल्लाह तआला की तस्बीह व तहलील के साथ तवाफ़ करता रहा।
अल्लाह तआला ने उस नूर से चार क़िस्म के अनासिर पैदा किए : पहली किस्म : पहली किस्म से अर्शे आज़म पैदा किया, फिर उस से सात आसमान (एक आसमान से दूसरा आसमान पांच सौ बरस की मसाफ़त का है) फिर ज़मीन बनाई, ज़मीन के भी सात तबकात हैं। हर तबक़ का फासिला पांच सौ बरस मसाफ़त का है। दूसरी किस्म : दूसरी किस्म से कलम बनाया, फिर लौह बनाया। फिर कलम को हुक्म हुआ लिख "बिस्मिल्लाहिर्रहमानिर्रहीम" कलम ने बिस्मिल्ला- हिर्रहमानिर्रहीम के बाद कहा, अब क्या लिखू? हुक्म हुआ लिख "ला इलाहा इल्लल्लाहु" कलम ने लिखना शुरू किया। एक हज़ार साल तक लिखता रहा। जब मुहम्मदुर रसूलुल्लाह लिखना शुरू किया तो मारे हैबत के उसका मुंह शक हो गया, फिर एक हज़ार साल तक लिखा। तीसरी क़िस्म : तीसरी किस्म से जन्नत और दोज़ख बनाई।
चौथी किस्म : फरिश्ते, जिन्नात, आलमे अरवाह पैदा किए। फ़रिश्तों को आसमान पर और जिन्नात को ज़मीन पर बसाया। जिन्नात ज़मीन पर सात हज़ार साल तक आबाद रहे। फिर उन में फसाद बरपा हो गया। यहां तक कि खूंरेज़ जंग शुरू हो गई। जिसकी वजह से अल्लाह तआला ने उन्हें पहाड़ों और जज़ीरों में बसाया, जो हमेशा के लिए वहीं आबाद हो गये। लौहे महफूज़ : लौहे महफूज़ को लौहे महफूज़ इसलिए कहा जाता है कि वह शैतान के शर से महफूज़ है, इसके अलावा उसके अन्दर तमाम मख्लूक की तकदीरें लिख कर महफूज़ कर दी गई हैं।
Book | इस्लामी तारीखे आलम / Islami Tareekh E Alam |
Author | Sugra Bashir Qadri |
Language | Hindi |
Pages | 402 |
Size | 18 MB |
File | |
Category | Islamic, Hindi Books |
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