आरोग्य की कुंजी हिंदी पुस्तक पीडीएफ | Arogya Ki Kunji Hindi Book PDF Download
'आरोग्य के विषय में सामान्य ज्ञान' शीर्षक से 'इंडियन ओपिनियन' के पाठकों के लिये मैंने कुछ प्रकरण १९०६ के आसपास दक्षिण अफ्रीका में लिखे थे। बाद में वो पुस्तक के रूप में प्रकट हुआ। हिन्दुस्तान में यह पुस्तक मुश्किल से ही कहीं मिल सकती थी। जब मैं हिन्दुस्तान वापस आया, अस वक्त जिस पुस्तक की बहुत माँग हुई। यहाँ तक कि स्वामी अखंडानन्द जी ने असकी नई आवृत्ति निकालने की इजाजत मांगी, और दूसरे लोगों ने भी उसे छपवाया। जिस पुस्तक का अनुवाद हिन्दुस्तान की अनेक भाषाओं में हुआ, और अंग्रेजी अनुवाद भी प्रकट हुआ । यह अनुवाद पश्चिममें पहुँचा, और उसका अनुवाद युरोप की भाषाओं में हुआ । परिणाम यह आया कि पश्चिममें या पूर्वमें मेरी को पुस्तक जितनी नहीं हुआ, जितनी कि यह पुस्तक । असका कारण में आज तक समझ नहीं सका। मैंने तो ये प्रकरण सहज ही लिख डाले थे। मेरी निगाह में अनकी कोई खास क़दर नहीं थी । मैं जितना अनुमान ज़रूर करता हूँ कि मैंने मनुष्य के आरोग्य को कुछ नये ही स्वरूप में देखा है, और अिसलिओ असकी रक्षा के साधन भी सामान्य वैद्यों और डॉक्टरों की अपेक्षा कुछ अलग ढंगसे बताये हैं। अस पुस्तककी लोकप्रियताका यह कारण हो सकता है। मेरा यह अनुमान ठीक हो या नहीं, मगर जिस पुस्तककी नजी आवृत्ति निकालने की मांग बहुत से मित्रों ने की है । मूल पुस्तक में मैंने विचारों को रखा है, उनमें कोई भी परिवर्तन हुआ है या नहीं, यह जानने की अत्सुकता बहुतसे मित्रों ने बताई है । आज तक इस इच्छा की पूर्ति करने का मुझे कभी वक्त ही नहीं मिला । परन्तु आज जैसा अवसर आ गया है । असका फ़ायदा उठाकर मैं यह पुस्तक नये सिरे से लिख रहा हूँ । मूल पुस्तक तो मेरे पास नहीं है। इतने वर्षों के अनुभव का असर मेरे विचारों पर पड़े बिना रह नहीं सकता । मगर जिन्होंने मूल पुस्तक पढ़ी होगी, वे देखेंगे कि मेरे आज के और १९०६ के विचारों में कोई मौलिक परिवर्तन नहीं हुआ है । इस पुस्तक को नया नाम दिया है 'आरोग्य की कुंजी' । मैं यह अम्मीद दिला सकता हूँ कि विचारपूर्वक पढ़नेवाले और इस पुस्तक में दिये हुअ नियमों पर अमल करनेवालों को आरोग्य की कुंजी मिल जायगी, और अन्हें डॉक्टरों और वैद्यों का दरवाजा खटखटाना नहीं पड़ेगा ।
I had written some cases in South Africa around 1906 for the readers of 'Indian Opinion' under the title 'General Knowledge about Health'. Later it appeared in the form of a book. This book could hardly be found anywhere in India. When I came back to India, this book was in great demand. Even Swami Akhandanand ji asked for permission to bring out its new edition, and other people also got it printed. The book was translated into many languages of India, and the English translation was also published. This translation reached the West, and was translated into the languages of Europe. The result was that neither in the West nor in the East was my book as popular as this book. I have not been able to understand the reason for this till date. I had written this episode naturally. He had no special value in my eyes. As much as I can guess, I have seen human health in a new form, and hence, the means for its protection have also been described in a different way than the ordinary physicians and doctors. This may be the reason for the popularity of this book. Whether my guess is correct or not, but many friends have demanded to bring out the personal edition of this book. Many friends have expressed their curiosity to know whether there has been any change in the ideas that I have expressed in the original book. Till date I have never found time to fulfill this wish. But an opportunity like today has come. Taking advantage of this, I am writing this book afresh. I don't have the original book. The experience of so many years cannot but have an impact on my thoughts. But those who have read the original book will see that there has been no fundamental change in my views today and those of 1906. This book has been given a new name 'The Key to Health'. I can assure that those who read it thoughtfully and follow the rules given in this book will find the key to health, and they will not have to knock on the doors of doctors and healers.
Book | आरोग्य की कुंजी / Arogya Ki Kunji |
Author | Mahatma Gandhi Ji |
Language | Hindi |
Pages | 96 |
Size | 7 MB |
File | |
Category | Hindi Books, Health & Fitness |
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