अकाली बाबा फूला सिंघ जी हिंदी पुस्तक पीडीएफ | Akali Baba Phoola Singh Ji Hindi Book PDF Download
अकाली फूला सिंघ जी उन महान् व्यक्तित्वों में से एक थे जिनसे, जो शत्रु हर वर्ष दरिया खैबर, गोमल, बोलन से चढ़ कर हिन्दुस्तान आता था और यहाँ की इज्ज़त-आबरू लूट कर ले जाया करता था, इतना भयभीत हुआ कि उसको इस ओर मुंह करने का साहस ही न रहा। नौशहरे की लड़ाई, जो अकाली जी ने 1823 में लड़ी थी, उसमें से मुल्ला रशीद ने भाग कर जान बचाई थी। मुल्ला रशीद बहुत जोशीला गाज़ी तथा इलाके का प्रसिद्ध मौलवी था। मुल्ला रशीद ने जब खालसा के करारे हाथ देखे तो इतना भयभीत हुआ कि बाकी सारी उम्र उसने सिंघों के विरुद्ध सोचने का नाम तक न लिया। एक बार काबुल दरबार में उसको पूछा गया कि मुल्ला जी, फिर कब जेहाद का नारा लगा कर सिंघों से टक्कर लोगे।
तब मुल्लां ने कहा कि सिंघों के साथ, सामने हो कर न लड़ने का इरादा बदल सकता हूँ यदि मुझे कोई इतना लम्बा भाला बना दें कि मैं सीमा पर पहाड़ों की चोटियों पर बैठकर माझे में बैठे सिंघों को मार सकूँ, तो बनने को तैयार हूं, परन्तु यदि कभी आप कहो कि मैदान में सिंघों के साथ आमने-सामने की लड़ाई करूं, तब यह मेरे से नहीं हो सकता क्योंकि सिंघों को मैदान में सामने देख कर मेरी सात जन्म की होश गुम हो जाती है। फिर अपने पांवों को चूमकर मुल्लां साहिब कहने लगे कि मैं नौशहरे की लड़ाई में से केवल इन पांवों की सहायता से भागकर ज़िंदा बच निकला था, नहीं तो अपने अन्य हज़ारों भाइयों के साथ मैदानि जंग में मेरा कचूमर हो जाता।
यह मुल्लां अच्छा चतुर था और विनोदी स्वभाव का होने के कारण बड़े-बड़े रइसों तथा हाकिमों तक इसकी पहुँच थी। एक बार काबुल के दरबार में - वहाँ के हाकिम के साथ — जो पहले पेशावर का गवर्नर रह चुका था, मुल्लां जी की बातचीत हुई। नौशहरे की लड़ाई का वर्णन करते हुए हाकिम ने कहा कि पेशावर का किला बहुत मज़बूत है, यदि यह कभी काबुल में होता तो बहुत कार्य देता। मुल्लां ने हँसते हुए कहा कि इस किले को काबुल पहुँचाना बहुत आसान है। यदि तुम चाहो तो मैं इसका प्रबन्ध कर सकता हूँ। हाकिम ने बड़ी हैरानी से पूछा वह कैसे हो सकता है ?
तो मुल्लां ने कहा कि आप चारों भाई मेरे साथ पेशावर चलो और मैं तुम सब को किले की एक दीवार से, मज़बूत रस्सों से बाँध कर सामने से एक सिंघ को तुम्हारे पर छोड़ दूँगा। तुम सिंघ को देखते ही घबरा कर भागोगे, जैसा कि तुम आम तौर पर करते हो तो यह किला बराबर तुम्हारे साथ खिंचता हुआ काबुल पहुँच जायेगा। मुल्लां के इस लतीफे को सुन कर दरबारी हँस-हँस कर उल्टे हो गये तो मुल्लां को शाबाश देते हुए कहने लगे कि तुमने अफ़गानों का खूब नक्शा उतारा है।
बांगर क्षेत्र के गांव शीहां के एक साधारण गुरसिख, भाई ईशर सिंघ, मिसल निशानां के निवास पर आपका जन्म 1761 में हुआ। सन् 1762 ई० को अहमदशाह अब्दाली ने सिखों का नामोनिशान मिटाने के लिए छठा हमला किया। सिखों ने इसका डटकर मुकाबला करने की योजना बनाई और जगराओं के समीप इकट्ठे हुए। उन्होंने रणनीति अपनाई कि अब्दाली की फौज को खींचते हुए मालवा के मरूथलों में ले जाया जहाँ पानी की कमी के कारण उसे दुःखी किया जाये। इसी युद्ध में ही भाई ईशर सिंघ जी को काफी गहरे घाव लगे और कुछ दिनों के पश्चात् वे कालवास हो गये।
इन दिनों में ही इन के दूसरे भाई संत सिंघ जी ने जन्म लिया। इनके पिता जी के कालवास होने से पूर्व इनका हाथ बाबा नारायण सिंघ, मिसल शहीदां को पकड़ा दिया। अकाली फूला सिंघ जी ने दस वर्षों की आयु में ही नितनेम, अकाल उस्तति, 33 सवैये तथा अन्य बहुत-सी बाणियाँ कंठ कर लीं। गुरबाणी का प्यार इतना था कि खेलने-कूदने की अलबेली अवस्था में भी हमेशा गुरबाणी ही पढ़ते रहते। धार्मिक विद्या में अच्छा निपुण होने के पश्चात् हर गुरसिख बच्चे के लिए शस्त्र विद्या बहुत ज़रूरी थी, इसलिए अकाली जी को शस्त्र विद्या का प्रशिक्षण आरम्भ करवाया गया।
Book | अकाली बाबा फूला सिंघ जी / Akali Baba Phoola Singh Ji |
Author | Sikh Missionary College |
Language | Hindi |
Pages | 25 |
Size | 19 MB |
File | |
Category | Hindi Books |
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