अकल और भैंस हिंदी पुस्तक पीडीएफ | Akal Aur Bhains Hindi Book PDF Download
जब अखबारों में 'हरी क्रांति' की सफलता और चमत्कार की कहानियाँ बार-बार विस्तार पूर्वक प्रकाशित होने लगीं, तो एक दिन श्री अगमलाल 'अगम' ने भी शहर का मोह त्यागकर, खेती करने का फैसला कर लिया। गाँव में उनके चार-पाँच बीघे जमीन थी, जिसे बटाईदारी पर उठाकर, अगमलालजी 'अगम' आज से सात साल पहले ही गाँव छोड़कर जिला के सदर शहर में आ बसे थे। चूँकि, उनके बाप के साथ उनका 'उपनाम' भी लगा हुआ था, इसलिए शहर के लोगों को यह जानने में देरी नहीं लगी कि 'अगमजी' एक साहित्यिक प्राणी हैं।
एक मित्र से किसी वकील की मुहर्रिरी करने की पैरवी करवाई, तो वकील साहब ने उनके उपनामयुक्त नाम पर ही एतराज किया- 'एक ही साथ दो नाम रखना गैरकानूनी है । और जिसका नाम ही गैरकानूनी हो वह कानूनी कारबार कैसे कर सकता है ?" एक सेठजी के घर बच्चों की पढ़ाई का 'टिप्पस' लगाया, तो सेठजी भी उनके नाम और उपनाम से भड़के। पूछा- 'क्यों जी ? गाणा-वाणा तो नहीं बजाते हो ? नहीं जी, हमें ऐसा मास्टर नहीं चाहिए।'
चारों ओर से हारकर, आखिर एक दिन 'अगम' जी अपने नाम की कुर्बानी करने को तैयार हो गए। अपने नाम के अतिरिक्त अंश को कतरकर अलग करना चाहते ही थे कि नौकरी दिला सकनेवाले देवता अचानक प्रसन्न हो गए। एक पुराने प्रेस में 'प्रूफ' देखने की नौकरी मिल गई और तब से अगमलाल 'अगम' अपने अखंड नाम के साथ ही 'प्रूफ' देखते हुए साहित्य-सेवा में संलग्न थे। किंतु इस 'हरी क्रांति' की हवा ने 'अगम' जी के हृदय को ऐसा हरा बना दिया कि उन्हें चारों ओर हरी-हरी ही सूझने लगी ।
और अंततः एक दिन शहर छोड़कर बोरिया-बिस्तर गाँव वापस आ गए। गाँव के लोगों ने जब 'अगम' जी के ग्राम- प्रत्यागमन का समाचार कारण सहित सुना, तो उन्हें खुशी नहीं- अचरज हुआ। कई निकट के संबंधियों और शुभचिंतकों ने उन्हें नेक से नेक सलाह देकर शहर वापस भेजना चाहा। किंतु 'अगम' जी की आँखों के आगे सदैव 'उन्नत किस्म के गेहूं की बालियाँ झूमती रहतीं, 'शंकर मकई' के भूरे भूरे बाल लहराते रहते। और जब आँखों में नींद आती, तो अपने साथ नये किस्म के उन्नत सपने ले आती-आलू की ढेरी, ऊख के अंबार और हरे चने और मटर की मखमली खेतीवाले सपने !
Book | अकल और भैंस / Akal Aur Bhains |
Author | Fanishwar Nath Renu |
Language | Hindi |
Pages | 14 |
Size | 9 MB |
File | |
Category | Hindi Books, Story |
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