एक्यूप्रेशर उपचार हिंदी पुस्तक पीडीएफ | Acupressure Upchar Hindi Book PDF



Acupressure Upchar Hindi Book PDF


एक्यूप्रेशर उपचार हिंदी पुस्तक पीडीएफ | Acupressure Upchar Hindi Book PDF Download

एक्युप्रेशर उपचार पद्धति प्रकृति प्रदत्त विज्ञान है। हमारे ऋषि मुनि और गृहस्थ इसका उपयोग करते रहे हैं, पर विज्ञान के पीछे अंधी दौड़ के कारण भारत के इस प्राचीन ज्ञान को हमने भुला दिया है। सुश्रुत के लेखों में इस विद्या का उल्लेख है, एवं 3000 वर्ष पूर्व यह पद्धति भारत में प्रचलित थी। इस सहजपूर्ण, अहिंसक और निशुल्क पद्धति के व्यापक प्रचार व अध्ययन द्वारा विश्व आरोग्य विशेषकर भारत जैसे अनेक विकासशील एवं निर्धन देशों की गहन समस्या सरलता से हल की जा सकती है। हम सभी नीरोग, स्वस्थ एवं सुखी रहना चाहते हैं और विभिन्न संप्रदायों से जुड़े हुए विभिन्न विधियों और नियमों के अन्तर्गत प्रयासरत भी रहते हैं। मानव शरीर संश्लिष्ट दोषरहित उपकरण है, जो कि संपूर्ण क्रियाये स्वतः संचालित करता रहता है। 

उसकी अपनी संपन्न, कारगर, अत्यन्त प्रभावकारी, सहज और सार्वजनीन, सार्वकालिक, सार्वभौमिक एवं सार्वदेशिक विधियाँ है। उसके अन्तर्गत यदि हम भोजन, श्रम और विश्राम मे संतुलन न रखें और इनके आधारभूत नियमों का उल्लघंन करते है, तो शरीर में विषैले तत्वों का संग्रह प्रारम्भ हो जाता है जिसके फलस्वरूप जैव-रसायनिक, जैव ऊर्जा और अन्य शारीरिक क्रियाओं पर प्रभाव पड़ता है। शरीर में इन अवांछनीय तत्वों का संग्रह ही रोग है। जिसका नामकरण सम्बन्धित लक्षणों, शरीर के अंगों या सूक्ष्मजीवों के आधार पर किया जाता है। हमारे ऋषि, मुनि, साधू, संत और गृहस्व इसका प्रयोग करते रहे हैं। 

आज भी अनेक आभूषणों और वस्त्रो का उपयोग, गृहकार्य और श्रमकार्यों मे एक्युप्रेशर जुड़ा हुआ है। हाथ में कड़ा, पैर में झांज, गले में हार, छोटे बच्चो को काला धागा पहनाना, कान में जनेऊ का लपेटना, हाथ मे कलेवा बाँधना, कपड़े धोना, कुएं से पानी निकालना, लस्सी बनाना, बेलन चलाना, सर पर घड़ा रखना आदि के में एक्युप्रेशर समाया हुआ है। पद्मासन, अर्द्धपद्मासन, सुखासन, वज्रासन आदि द्वारा योग में एवं नित्यप्रति के क्रिया-कलापों द्वारा किस प्रकार यह विधि लाभान्वित करती आ रही है। अब इस ज्ञान, सजगता और एकाग्रता में जब-जब दैनिक जीवन की क्रियाओं की प्रेक्षा करेंगे तो पीड़ा-मुक्त होने की तनाव मुक्त होने की और सुखी जीवन जीने की कला निश्चित जान जायेंगे। 

पर पुरातन मूल्यों को जानना है, श्रमजीवी होना है, स्वयं तपना है, तब ही पूर्ण लाभ होगा। यह चिकित्सा पद्धति भारतवर्ष में 3000 वर्ष पूर्व प्रचलित थी पर शुद्ध रूप में यह विद्यमान न रह सकी। चीनी यात्री यहां निरन्तर आते-जाते रहते थे। यहां से कर वे इस को चीन गये। धीरे-धीरे भारत में यह चिकित्सा लुप्त हो गई लेकिन चीन में इस चिकित्सा पद्धति का बहुत विस्तार हुआ और बाद में विशेषकर एक्युपंचर का जन्मदाता चीन को कहा जाने लगा। भारत में लंका, चीन, आदि देशों मे बौद्ध भिक्षु इस ज्ञान को लेकर गये। 

स्पष्ट उल्लेख मिले हैं कि छठी शताब्दी में बौद्ध भिक्षुओं ने इस ज्ञान को जापान पहुँचाया। जापान में यह पद्धति "शिअस्तु' के नाम से विकसित व लोकप्रिय हुई, इसे पूर्ण मान्यता प्राप्त हुई और इसके शिक्षण संस्थान स्थापित हुए। अमेरिका, ग्रेट ब्रिटेन, कनाडा, आस्ट्रेलिया, भारत आदि देशों में भी अब यह लोकप्रिय होती जा रही है। इस लोकप्रियता का प्रमुख कारण है इस पद्धति की सहजता और यह विशेषता कि यह रोगी को घर बैठे, सिनेमा या टी.वी. देखते, चलते-फिरते यात्रा करते किसी भी स्थान पर दी जा सकती है।

हमारा शरीर पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और आकाश पंच महमू से निर्मित है। संचालन हमारे देह में स्थित प्राण-शक्ति अर्थात् चेतना रूपी बिजली से होता है। इसे ही हम जैव-विद्युत अथवा जैव-शक्ति के रूप में जानते हैं। यह प्राथ शक्ति हमारे शरीर में गर्भाधान के समय आती है। कुछ यौगिक क्रियाओं एवं ध्यान पद्धतियों द्वारा इसे कपाल के मध्य भाग मे बंद आँख से भी देखा जा सकता है।





Bookएक्यूप्रेशर उपचार / Acupressure Upchar
AuthorDr D. P. Sharma
LanguageHindi
Pages204
Size7 MB
FilePDF
CategoryHindi Books, Health
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