अभिनवगुप्त का तंत्रागमीय दर्शन हिंदी पुस्तक पीडीएफ / Abhinavgupt Ka Tantragamiya Darshan Hindi Book PDF
यह समय समय पर लिखे गए मेरे लेखों और वक्तव्यों का संग्रह है। इन्हें पुस्तक का आकार देने के पीछे भाई अम्बिकादत्त शर्मा की प्रेरणा और स्नेह रहा है। चूंकि ये लेख एक लम्बी कालावधि में लिखे गए हैं, अतः एक सामान्य ग्रन्थ में अपेक्षित अन्विति और एकसूत्रता का अभाव प्रेक्षावानू पाठक को अखर सकता है। पर यह अखरना कुछ कम हो जाएगा जब उसे यह पता चलेगा कि सारे निबन्धों का केन्द्रीय अवधानबिन्दु अभिनवगुप्त का चिन्तन या उनकी परम्परा रही है।
इस रूप में उनकी व्यापक एकसूत्रता अक्षुण्ण कही जा सकती है। केवल दो निबन्ध 'पाशुपतदर्शन एवं नकुलीश पाशुपत दर्शन' और "भारतीय दर्शन की समसामयिक अन्वीक्षा : कविराज जी का दृष्टिकोण" इस दृष्टि से आपाततः प्रश्नीय लग सकते हैं परन्तु पाशुपत दर्शन अभिनव की तांत्रिक परम्परा के द्विप्रवाहात्मक स्रोतों में से एक है और कविराज जी की अन्वीक्षा की रूपविधायी प्रेरणाओं में काश्मीरी शिवाद्वयबाद की अत्यन्त प्रभावी भूमिका रही है।
यदि मन के कोने में यह बात रहेगी- स्वयं इन लेखों के सतही अवलोकन से भी यह बात प्रमाणित होगी। तो यह आपाती एकरसता भङ्ग इतना नहीं खलेगा। यद्यपि निबन्धों के लेखन में कोई योजना नहीं थी, उन्हें संजोने में एक स्थूल योजना देखी जा सकती है। लेखों को लेखन के कालानुक्रम में न लेकर विषयवार रखा गया है और इस प्रकार, विषयवस्तु के अनुरोध से पूरी पुस्तक कुछ अनुभागों में बंट गयी है।
इनमें दूसरे अनुभाग के अंतर्गत, दार्शनिक चिन्तन प्रक्रिया के आधार पर लिए गए, तीनों लेखों के संकलन के औचित्य पर प्रश्न किया जा सकता है प्रश्न की अंतर्निहित भावना से सहमत होते हुए भी यह कहना उचित होगा कि व्यापकतर परिवेश में संदर्भीकरण और दार्शनिक चिन्तन के तदितर पक्षों में विनियोजनात्मक अन्वयन की दृष्टि से इनका निवेश पूर्णतः असमाधेय नहीं लगेगा।
Book | अभिनवगुप्त का तंत्रागमीय दर्शन / Abhinavgupt Ka Tantragamiya Darshan |
Author | Navajeevan Rastogi |
Language | Hindi |
Pages | 377 |
Size | 6 MB |
File | |
Category | Hindi Books, Philosophy |
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