योग विज्ञान (दोनो भाग) मुफ्त पुस्तक | Yoga Vigyan (all Volumes) Free Book




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योग विज्ञान पुस्तक | Yoga Vigyan Book PDF Download

"योग विज्ञान" का प्रादुर्भाव वेद के पहले हो चुका था और उसके जन्मदाता हिरण्यगर्भजी महाराज थे। उनके सम्बन्ध में श्रीमद्भागवत् में भी लिखा है कि यह वही हिरण्यगर्भ महाराज थे जिन्होंने वेद विद्या के पहले ही योग विद्या का प्रादुर्भाव किया था। वेदों के विकास के पहले ही योग विद्या तरुण हो चुकी थी। बल्कि योग विद्यासे ही वेद विद्या का जन्म हुआ है। सृष्टि के आरम्भ में हिरण्यगर्भजी महाराज से अग्नि, वायु, आदित्य व अंगिरा नामक चार महर्षियों ने इसे पढ़ा और फिर इन ऋषियों से महर्षि पतंजलि ने सीखकर 'योग दर्शन' नामक ग्रन्थ प्रस्तुत किया। योग शब्द के दो अर्थ है- जोड़ना और उपाय। महर्षि पतंजलि के मतानुसार चित्त की वृत्तियों को रोक देना ही योग है। माया के कारण जीवात्मा और परमात्मा भिन्न मालूम होते हैं। अद्वैत सिद्धांत के अनुसार जिस क्रिया से जीवात्मा को परमात्मा का ज्ञान हो उसी को योग कहते हैं। इस संसारमें माया से बढ़कर दूसरा बन्धन नहीं है और उसी बन्धन को काटने वाला साधन योग विज्ञान कहलाता है। यही व्याख्या महर्षि पतंजलि ने योग के बारे में किया है। कोई यह न समझे कि योग की शिक्षा केवल योगियों के लिए है और सर्व साधारण के लिए नहीं है। योगी शब्द का अर्थ हैं कि जो कोई भी संसार में सदाचार से रहकर अपने जीवनको सफल करना चाहता है, वही योगी है। दुनिया के सभी धर्म इस बातकी पुष्टि करते हैं कि सदाचार ही स्वर्ग का सुगम मार्ग है। योगमें सदाचार का अर्थ केवल शिष्टाचार नहीं है, यौगिक जीवन का अर्थ हैं शरीर का युक्त व्यायाम, सात्त्विक आहार और ब्रह्म विद्या का अध्ययन। हमारे शास्त्र बतलाते हैं कि योग के सिवाय मुक्तिका और कोई मार्ग नहीं। जो लोग यह समझते हैं कि योग साधन केवल विरक्त ही कर सकते हैं, यह धारणा उनका भ्रमपूर्ण ज्ञान है।


पुस्तकयोग विज्ञान पीडीएफ / Yoga Vigyan PDF
लेखकअज्ञात
प्रकाशकश्री पीताम्बरा संस्कृत परिषद्, दतिया
भाषाहिन्दी
कुल पृष्ठ393
आकार137 MB
फाइलPDF
StatusOK

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