श्री ललिता सहस्त्रनाम पुस्तक | Shri Lalita Sahasranama Book PDF Download
मैं गुरुदेव को प्रणाम करता हूँ, मेरी उच्चतम भक्ति गुरु चरणों के प्रति हैं, क्योंकि संसार के समस्त तीर्थ उनके चरणों में समाहित हैं,, इसलिए मैं इस पादुकाओं को प्रणाम करता हु, ललिता सहस्त्रनाम मुझे भवसागरसे पार उतारने में सक्षम हैं, यह पूर्णता देने में सहायक हैं। ये पादुकाएं सिद्ध योगी के चरणों में सुशोभित रहती हैं, और ज्ञानके पुंज को अपने ऊपर उठाया हैं, इसीलिए ये पादुकाएं ही सही अर्थों में सिद्धेश्वर बन गई हैं, इसीलिए मैं इस गुरु पादुकाओं कोभक्ति भावसे प्रणाम करता हूँ।
गुरुदेव "ऐंकार" रूप युक्त हैं, जो कि साक्षात् सरसवती के पुंज हैं, एक प्रकार से देखा जाये तो वे पूर्णरूपेण लक्ष्मी युक्त हैं, मेरे गुरुदेव श्रींकार युक्त हैं, जो संसार के समस्त वैभव, सम्पदा और सुखसे युक्त हैं, जो सही अर्थों में महान विभूति हैं, मेरे गुरुदेव "ॐ" शब्द के मर्म को समझाने में सक्षम हैं, वे अपने शिष्यों को भी उच्च कोटि कि साधना सिद्ध कराने में सहायक हैं, ऐसे गुरुदेव के चरणों में लिपटी रहने वाली ये पादुकाएं साक्षात् गुरुदेवका ही विग्रह हैं, इसीलिए मैं इनको युक्त प्रणाम करता हूँ।
ऐंकार ह्रींकाररहस्ययुक्त श्रींकारगूढार्थ महाविभूत्या ! ओंकारमर्म प्रतिपादिनीभ्याम नमो नमः श्रीगुरुपादुकाभ्याम!! होत्राग्निहोत्राग्नि हविश्यहोतृदृ होमादिसर्वाकृतिभासमानं ! यद् ब्रह्म तद्बोधवितारिणीभ्याम नमो नमः श्रीगुरुपादुकाभ्याम!! कामादिसर्प वज्रगारूडाभ्याम विवेक वैराग्यनिधि प्रदाभ्याम बोधप्रदाभ्याम द्रुतमोक्षदाभ्याम नमो नमः श्रीगुरुपादुकाभ्याम!!
ये पादुकाएं अग्नि स्वरूप हैं, जो मेरे समस्त पापो को समाप्त करने में समर्थ हैं, ललिता सहस्त्रनाम मेरे नित्य प्रति पाप, असत्य, अविचार और अचिन्तन से युक्त दोषोको दूर करने में समर्थ हैं, ये अग्नि कि तरह जिनका पूजन करनेसे मेरे समस्त पाप एक क्षणमें ही नष्ट हो जाते हैं, इनके पूजन से मुझे करोड़ों यज्ञोका फल प्राप्त होता हैं, जिसकी वजहसे मैं स्वयं ब्रह्मस्वरुप होकर ब्रह्मको पहिचानने कि क्षमता प्राप्त कर सका हूँ, जब गुरुदेव मेरे पास नहीं होते, तब ये पादुकाएं ही उनकी उपस्थिति का आभास प्रदान कराती रहती हैं।
मेरे मन में काम, क्रोध, लोभ, मोह और अंहकारके सर्प विचरते ही रहते हैं, जिसकी वजहसे मैं दुखी हूँ, और साधनाओं में मैं पूर्णता प्राप्त नहीं कर पाता, ऐसी स्थितिमें गुरु पादुकाएं गरुड़ के समान हैं, जो एक क्षणमें ही ऐसे कामादि सर्पों को भस्म कर देती हैं, और मेरे हृदयमें विवेक, वैराग्य, ज्ञान, चिंतन, साधना और सिद्धियों का बोध प्रदान करती हैं।
मैं गुरुदेव को प्रणाम करता हूँ, मेरी उच्चतम भक्ति गुरु चरणों के प्रति हैं, क्योंकि संसार के समस्त तीर्थ उनके चरणों में समाहित हैं,, इसलिए मैं इस पादुकाओं को प्रणाम करता हु, ललिता सहस्त्रनाम मुझे भवसागरसे पार उतारने में सक्षम हैं, यह पूर्णता देने में सहायक हैं। ये पादुकाएं सिद्ध योगी के चरणों में सुशोभित रहती हैं, और ज्ञानके पुंज को अपने ऊपर उठाया हैं, इसीलिए ये पादुकाएं ही सही अर्थों में सिद्धेश्वर बन गई हैं, इसीलिए मैं इस गुरु पादुकाओं कोभक्ति भावसे प्रणाम करता हूँ।
गुरुदेव "ऐंकार" रूप युक्त हैं, जो कि साक्षात् सरसवती के पुंज हैं, एक प्रकार से देखा जाये तो वे पूर्णरूपेण लक्ष्मी युक्त हैं, मेरे गुरुदेव श्रींकार युक्त हैं, जो संसार के समस्त वैभव, सम्पदा और सुखसे युक्त हैं, जो सही अर्थों में महान विभूति हैं, मेरे गुरुदेव "ॐ" शब्द के मर्म को समझाने में सक्षम हैं, वे अपने शिष्यों को भी उच्च कोटि कि साधना सिद्ध कराने में सहायक हैं, ऐसे गुरुदेव के चरणों में लिपटी रहने वाली ये पादुकाएं साक्षात् गुरुदेवका ही विग्रह हैं, इसीलिए मैं इनको युक्त प्रणाम करता हूँ।
ऐंकार ह्रींकाररहस्ययुक्त श्रींकारगूढार्थ महाविभूत्या ! ओंकारमर्म प्रतिपादिनीभ्याम नमो नमः श्रीगुरुपादुकाभ्याम!! होत्राग्निहोत्राग्नि हविश्यहोतृदृ होमादिसर्वाकृतिभासमानं ! यद् ब्रह्म तद्बोधवितारिणीभ्याम नमो नमः श्रीगुरुपादुकाभ्याम!! कामादिसर्प वज्रगारूडाभ्याम विवेक वैराग्यनिधि प्रदाभ्याम बोधप्रदाभ्याम द्रुतमोक्षदाभ्याम नमो नमः श्रीगुरुपादुकाभ्याम!!
ये पादुकाएं अग्नि स्वरूप हैं, जो मेरे समस्त पापो को समाप्त करने में समर्थ हैं, ललिता सहस्त्रनाम मेरे नित्य प्रति पाप, असत्य, अविचार और अचिन्तन से युक्त दोषोको दूर करने में समर्थ हैं, ये अग्नि कि तरह जिनका पूजन करनेसे मेरे समस्त पाप एक क्षणमें ही नष्ट हो जाते हैं, इनके पूजन से मुझे करोड़ों यज्ञोका फल प्राप्त होता हैं, जिसकी वजहसे मैं स्वयं ब्रह्मस्वरुप होकर ब्रह्मको पहिचानने कि क्षमता प्राप्त कर सका हूँ, जब गुरुदेव मेरे पास नहीं होते, तब ये पादुकाएं ही उनकी उपस्थिति का आभास प्रदान कराती रहती हैं।
मेरे मन में काम, क्रोध, लोभ, मोह और अंहकारके सर्प विचरते ही रहते हैं, जिसकी वजहसे मैं दुखी हूँ, और साधनाओं में मैं पूर्णता प्राप्त नहीं कर पाता, ऐसी स्थितिमें गुरु पादुकाएं गरुड़ के समान हैं, जो एक क्षणमें ही ऐसे कामादि सर्पों को भस्म कर देती हैं, और मेरे हृदयमें विवेक, वैराग्य, ज्ञान, चिंतन, साधना और सिद्धियों का बोध प्रदान करती हैं।
पुस्तक | श्री ललिता सहस्त्रनाम पीडीएफ / Shri Lalita Sahasranama PDF |
लेखक | शंकर पुरस्वानी |
प्रकाशक | अज्ञात |
भाषा | हिन्दी |
कुल पृष्ठ | 272 |
आकार | 43 MB |
फाइल | |
Status | OK |