शिव स्वरोदय पुस्तक | Shiv Swarodaya Book PDF Download
इस असार संसार में जहां तक भी संभव हो अपने देहका साधन कर लेना चाहीये यह बात बिकुल सत्य है। तथापी कलिकाल में समाधि, जप, तप आदि साधन अत्यंत दुर्घट हो पड़े हैं। ऐसे समय में धन, यश मोक्ष को देनेवाला यह शिवपार्वती संवादरूप जो 'शिव स्वरोदय' शास्त्र है, इससे मनुष्यों के वांछितार्थ अवश्य ही सिद्ध होंगे, ऐसा विचार कर प्राचीन हस्तलिखित पुस्तक तलाशकर तथा उसके माध्यम से यह भाषांतर बनवाकर लोकहितार्थ के लिए सादर प्रस्तुत किया है। आशा है कि इसमें कहे हुये विधि अनुसार जो कोई लोग भी इसका उपयोग करेंगे तो उनको धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष यह सब उनको प्राप्त होंगे। यह शास्त्र साक्षात् भगवान शिवजीके मुखसे निकले हुए हैं। इस शास्त्र को गुरुमुखसे समझकर इसक उपयोग और पालन कीजिए।
ब्रह्मांडखंड पिडाद्यंस्वरणैव हिनिर्मितं ॥ सृष्टिसं हारकर्ताचस्वरः साक्षान्महेश्वरः ॥
अर्थ- ब्रह्मांडके खंड तथा पिंड. शरीर आदिक स्वरसे- ही रचे हुहैं सृष्टि के संसारको करनेवाला महेश्वरभी साक्षा- तू स्वर स्वरूप ॥
स्वरज्ञानात्परंगुह्यं स्वरज्ञानात्परंधनं ॥ स्वरज्ञाना त्परंज्ञानंनवादृष्टंनवाश्रुतं ॥
अर्थ- स्वर के ज्ञानसे उत्तम गुह्य स्वर ज्ञानसे उत्तम धन स्वर ज्ञानसे उत्तम ज्ञान न तो देखा न सुना ॥
लक्ष्मिप्राप्तिः स्वरबलेकीर्तिः स्वरबलेसुखं ॥ शत्रुं हन्यात्स्वरबलेत थामित्रसमागमः ॥
अर्थ- स्वरके बल होनें मे शत्रुको मारदेवै तथा मित्रका समागम होजावे स्वरके बल होनेमें लक्ष्मीकी प्राप्ति स्वरके बल होनें से कीर्ति तथा सुख होता है ॥
कन्यासिद्धिः स्वरबलेस्वर बलेराजदर्शनं ॥ स्व रेणदेवतासिद्धिःस्वरबलेक्षितिपोवशः ॥
अर्थ- स्वरके बलसे कन्याकी प्राति अर्थात विवाह होवे राजाका दर्शन होवे स्वरसेही देवताकी सिद्धी और स्वरसे राजाको वश में करना होता है ॥
पुस्तक | शिव स्वरोदय पीडीएफ / Shiv Swarodaya PDF |
लेखक | पंडित श्रीधर शिवलालजी |
प्रकाशक | स्वकीय यंत्रालय प्रेस, मुंबई |
भाषा | हिन्दी |
कुल पृष्ठ | 93 |
आकार | 5 MB |
फाइल | |
Status | OK |
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