शांभवी तंत्र | Shambhavi Tantra PDF




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शांभवी तंत्र पुस्तक | Shambhavi Tantra Book PDF Download

शाम्भवी तन्त्र को प्रायः लुप्त तन्त्र माना गया है। परम्पराके अनुसार इसे शैवतंत्र के अन्तर्गत् रखा गया है। मानव के विकास की विधामें साधना का स्थान उच्च है। साधना क्रममार्ग के अवलम्बन से सम्पन्न होती है। जो अधिकारी पूर्वार्जित क्रम के अनुसार जितना उन्नत होता है, वह उसी मात्रा में क्रमोन्नति का भागी होता है। अर्थात उसने प्राक्तन कर्म के अनुसार पूर्वजन्म में जहां तक की साधना को सम्पन्न कर लिया था, इस जन्म में वह उसी विन्दु से साधना प्रारंभ करता है। अर्थात् पिछले जन्म में वह साधना के पथ पर जितना आगे तक जा चुका था, इस जन्म में उससे आगे के साधन पथ पर वह गतिशील होने लगता है।

साधक को उसके पूर्व जन्म में सम्पादित साधना को फिरसे दोहराने की आवश्यकता नहीं रहती। शांभवी तंत्र ग्रंथ में भी इसी सिद्धान्त को मान्यता प्रदान की गयी है। इसी कारण से एक ही शास्त्र में अधिकारी भेद को प्रधान रखकर तदनुरूप अनेक साधनाओं का वर्णन किया गया है। जो जिस प्रकार की योग्यता से सम्पन्न है, वह तदनुरूप साधना का वरण करता है। तदनुरूप शांभवी साधना का वरण करने के अभाव में साधक अग्रगामी गति प्राप्त कर सकने से वंचित रह जाता है। इसी कारण एक ही तंत्र ग्रंथ में अनेक साधन विधि होता है।

सभी साधकों की योग्यता में विविधता है। जो साधना किसी एक साधक के लिये उपादेय और लाभकारी है, वही साधना किसी अन्य साधक के लिये हानिकर भी हो सकती है। इसीलिये विधान है कि योग्य तथा अन्तर्दृष्टि से साधक सम्पन्न गुरु की पूर्वजन्मार्जित योग्यता का आकलन करते हुये, उसी क्रम से आगे वाली शांभवी तंत्र साधना का विधान करते हैं। इसी कारण से प्राचीन काल के एक ही गुरु विभिन्न साधकों को विभिन्न साधन निर्देश देते हुये परिलक्षित होते है। इसके एक उदाहरण स्वयं ऋषि वशिष्ठजी भी है। जहां वे पुराणों में द्वैतवादी साधन पथ का उपदेश देते हैं, वहीं वे योगवाशिष्ठ अद्वैतमत साधनपथ का उपदेश देते है।


पुस्तकशांभवी तंत्र पीडीएफ / Shambhavi Tantra PDF
लेखकडॉ. गोपीनाथ कविराज
प्रकाशकभारतीय विद्या प्रकाशन, दिल्ली
भाषाहिन्दी
कुल पृष्ठ134
आकार35 MB
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StatusOK


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