संत कबीर पुस्तक | Sant Kabir Book PDF Download
गोरखनाथ के मत में योगी के नाद, विभूति ओर आदेश बताये गये है। मुद्रा का बड़ा माहात्म्य है। सिद्ध सिद्धान्त पद्धति में कहा गया है कि 'भुदू' धातु गोदार्थक और 'रा' भातु दानार्थक है। ये दोनो जीवात्मा और परमात्मा के वाचक है। इन दोनों की एकता करनेवाली यह मुद्रा है जिसके दर्शन से देवगण प्रसन्न होते है और असुरगण भाग जाते है। यह साक्षात कल्याण दायिनी है। इस मुद्राको कान फाड़कर पहनाया जाता है। इस पवित्र मुद्रा के कारण क्षुरिका भी महत्त्वपूर्ण हो जाती है। इसीलिये क्षुरिका की महिमा वर्णन के लिये क्षुरिकोपनिषद् रचित हुई है। उस उपनिषद् में बताया गया है कि एक बार छुरिका के स्पर्श से मनुष्य योगी हो जाता और जन्म मरण के बंधन से मुक्त हो जाता है। नादको ही अनाहद नाम से भी कहा गया है। आदेश आत्मा, परमात्मा और जीवात्मा इन तीनो के मिलने को कहते है। इस प्रकार योगियों के सभी चिह्न असल में आध्यात्मिक वृत्तियो के प्रतीक मात्र है। परन्तु अवधूत के लिए यह सब नियम अवश्य पालनिए नहीं है। वह कही भोगी होकर, कहीं त्यागी होकर, कहीं पिशाच सा बना हुआ, कही राजा होकर, कहीं आचारपरायण बन कर, सर्वमय होता हुआ भी रह सकता है। वह न दुःख को दुख समझता है न सुखको सुख। वह कहीं भूमि पर सो सकता है कहीं पलंगपर, कही कन्या धारण कर लेना, कही दिव्य वसन, कही शाकाहार पर ही दिन गुजार देता है और कहीं मधुर भोजन पाने पर उसे भी ग्रहण करता है। किन्तु संत कबीर दास जी इस प्रकार योग में भोग को पसन्द नहीं करते। न तो वे बाहरी भेदभाव को पसन्द करते हैं और न सर्वमय होकर सर्वविवर्जित बने रहने के आचार को। योगी तो वह है जो न भीख माँगे, न भूखा सोये, न झोली पत्र और न बटुआ रखे।
पुस्तक | संत कबीर पीडीएफ / Sant Kabir Hindi PDF
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लेखक | हजारी प्रसाद द्विवेदी |
प्रकाशक | हिंदी भवन शांति निकेतन |
भाषा | हिन्दी |
कुल पृष्ठ | 385 |
आकार | 9 MB |
फाइल | PDF |
Status | OK |
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