रामायण मीमांसा पुस्तक | Ramayan Mimansa Book PDF Download
प्रस्तुत ग्रन्थ के रचयिता सर्वहितैषी वीतराग तत्त्वदर्शी महात्मा हैं । उनका किसी के प्रति मनोमालिन्य अथवा परिपन्थिता वैसे ही संभव नहीं है जैसे शीतरश्मि से तिग्मरश्मि के उत्ताप का उद्गम । फिर भी जहां उन्हें अशुद्धि दिखाई देती है, जहाँ अल्पज्ञों द्वारा वेद और शास्त्रों के अर्थ का अनर्थ कर उनपर प्रहार किया हुआ दीख पड़ता है एवं जहाँ संस्कृतवाङ्मय में अज्ञानवश भारतीय संस्कृति के विरोधी वातावरण का सर्जन किया रहता है, वहाँ उन्हें लोक कल्याण के लिए यह अर्थ अशुद्ध है, शास्त्र का तात्पर्य यह है, यह भारतीय संस्कृति तथा शास्त्रमर्यादा के विपरीत है; यह कहना उचित ही नहीं परमावश्यक भी है। इस प्रकार प्रतिपादन करनेवालों के मधुर वाग्जाल में फँस कर जनता अपनी सनातन मर्यादा का त्याग न करे । भारतीय संस्कृति से भिन्न संस्कृतिवाले वेद-शास्त्रों के तात्पर्य के अनभिज्ञ मनीषियों का कथन अनुकरणीय नहीं है । वह किसी दुरभिसन्धि वा जनता को विधर्मी बनाने के लिए वागुरा है, मार्ग में तृण आदि से आच्छादित महान् गर्त हैं। इस मार्ग का पथिक होनेपर गर्तपात का भय है। यह बात कोई शास्त्रतस्वामिज्ञ महान् मनीषी ही बता सकता है। यदि वह भोलीभाली शास्त्रतात्पर्यानभिज्ञ जनता का हितैषी है तो अवश्य ही यह बताना चाहिए। न बताना उनका अपने कर्तव्य से विचलित होना कहा जायगा। महाकवि श्रीहर्ष ने अपने नैषधीयचरित महाकाव्य में कहा है-
पुस्तक | रामायण मीमांसा पीडीएफ / Ramayan Mimansa PDF |
लेखक | Shri Karpatri Swami |
प्रकाशक | Radhakrishn Dhanuka Prakashan |
भाषा | हिन्दी |
कुल पृष्ठ | 1049 |
आकार | 54 MB |
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Status | OK |