मियां बीवी के हुकूक Miya Biwi Ke Huqooq PDF Book Hindi



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मियां बीवी के हुकूक पुस्तक | Miya Biwi Ke Huqooq Book PDF Download

दोस्तों के बार-बार कहने पर मियां-बीवी के सही और शरई हक इस किताब में इकट्ठे किए गए हैं ताकि मियां-बीवी अपने वाजिब हक़ को समझ कर अदा कर सकें। इस पर अम्ल कर के जुल्म से बच सकें और किसी को किसी की शिकायत का मौका न मिले। अगर किसी का शौहर अपने वाजिब हक़ से ज्यादा निभा रहा हो या किसी की बीवी अपनी खुशी से अपने शौहर की वाजिब हक़ से ज्यादा ख़िदमत कर रही हो तो वे अल्लाह तआला की इस बड़ी नेमत का शुक्र अदा करते रहें।

अक्सर मर्द तो अपने हक को ज़बरदस्ती समझ लेते हैं और करवा सकते हैं, लेकिन औरत का अदालत के सिवा कोई सहारा नहीं और इसकी मांग करते रहने के अलावा कोई चारा नहीं। अगर मुसलमानों की बदकिस्मती से अदालत नहीं है तो वो जैसेभी हो निभाएं। कयामत के दिन, जब बड़े-बड़े ज़ालिम और घमंडियों के पित्ते पानी होंगे तब नमाज़ के बाद इसी का हिसाब होगा। रब्बुल आलमीन उससे पूरा बदला लेंगे। मज़्लूम के सब गुनाह ज़ालिम को और ज़ालिमकी सब नेकियां मज़लूम को देंगे जबकि ज़ालिम को जन्नत की खुश्बू भी न मिल सकेगी।

निकाह के वक्त से मर्द पर तीन चीजें वाजिब हो जाती हैं- बीवी का खाना कपड़े और रहने का मकान। हां, अगर औरत बुलाने के बावजूद भी बिला वजह, अपने शौहर के घर लौट कर न आए, खाना कपड़ा मर्द पर वाजिब नहीं होगा। अगर मर्द की इजाज़त से माँ-बाप या किसी सगे भाई बहन के घर गई है तब भी इतने दिन के खाने कपड़े की हक़दार है। बीमारी के दिनों का खाना कपड़ा भी मर्द के जिम्मे है। लेकिन ऐसी हालत में भी खाविंद्र अपने घर बुलाए और औरत बिना किसी शरई हक़के जाने से मना कर दे तो खाने कपड़े की हकदार नहीं रहती।



पुस्तकमियां बीवी के हुकूक पीडीएफ / Miya Biwi Ke Huqooq PDF
लेखकहज़रत मौलाना मुफ्ती अब्दुल गनी
प्रकाशकअलहाज मुहम्मद नासिर खान
भाषाहिन्दी
कुल पृष्ठ41
आकार0.8 MB
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