हठ योग प्रदीपिका / Hatha Yoga Pradipika PDF Free Download




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हठ योग प्रदीपिका पुस्तक | Hatha Yoga Pradipika Hindi Book PDF Download

इस प्रकार परमगुरुको नमस्कार करके अधिक विघ्नों की आशंका में अधिकही मंगलकी अपेक्षा होती है इस अभिप्राय से अपने गुरुके नमस्काररूप मंगल को करते हुए ग्रंथकार ग्रंथके विषय, संबन्ध, प्रयोजन, अधिकारियोंको दिखाते हैं कि, श्रीमान् जो अपने गुरुनाथ (स्वामी) हैं उनको भक्तिपूर्वक नमस्कार करके स्वात्माराम नामका जो मैं योगी हूँ वह केवल राजयोग की प्राप्तिके लिये हठविद्या का उपदेश (कथन) करता हूँ - अर्थात् हठ विद्याका मुख्य फल केवल राजयोगही हैं सिद्धि नहीं है। क्योंकि सिद्धि तो यत्न के बिना प्रसंगसे ही होजाती है। इससे यह सूचित किया कि, राजयोगरूप फलसहित हठयोग प्रदीपिका ग्रंथका विषय है और राजगोगद्वारा मोक्ष फल (प्रयोजन) है और फलका अभिलाषी अविकारी और ग्रन्थ और विषयका प्रतिपाद्य प्रतिपादक भाव समय है अर्थात् ग्रंथ विषयका प्रतिपादक है और विषय प्रतिपाद्य है और ग्रंथ और मोक्षका प्रयोज्य प्रयोजकभाव संबंध है क्योंकि ग्रंथभी हठयोगके द्वारा मोक्षका कारण है, और ग्रन्थ और विषय फज्ञ योग और मोक्ष इनका साध्यसाधन भाव संबंध है ये सब बात इस श्लोक में कहीं है-

 

अजानतां पुंसां राजयोगज्ञानमिति शेषः। करोतीति कःकृपायाः करः कृपा- करः । कृपया आकर इति वा । तादृशः । अनेक हठमदीपिका करणे अज्ञानुव हेतुरित्युक्तम् । स्वात्मन्यारमते इति स्वात्मारामः हठस्य हठ- प्रकाशकत्वात् हठमदीपिका ताम् । अथवा हट एव प्रदीपिका राजयोग प्रकाशकत्वात् । तां धचे विधत्ते करोतीति यावत् । स्वात्माराम इत्यनेन ज्ञानस्य सप्तमभूमिकां प्राप्तो ब्रह्मविद्वरिष्ठ इत्युक्तम् । तथाच श्रुतिः - 'आत्मक्रीड आत्मरतिः किपावानेष ब्रह्मविदां वरिष्ठः' इति । सप्तभूनपश्यक्ता योगवासिष्ठे- 'ज्ञानभूमिः शुभेच्छाखा प्रथमा समुदा- हृता । विचारणा द्वितीया स्यात्तृतीया तनुमानसा ।। सच्चापतिश्चतुर्थी स्यात्ततोs संसक्तिनामिका । परार्थापाविनी षष्ठी सप्तमी तुर्यगा स्मृता ॥

 

महान् पुरुषों के मानने से हठ योग प्रदीपिका विद्याकी प्रशंसा करतेहुये ग्रंथकार अपनेको भी महापुरुषों सेही हठविधाका लाभ हुआ है इससे अपनाभी गौरव द्योतन करते है कि, मत्स्येंद्र और हरुविद्याको निश्चयसे विशेषकर जानते हैं यहां आय शब्द के पढने से जालंधरनाथ, भर्तृहरि, गोपीचंद आदि भी जानते हैं यह सूचित किया- अर्थात् साधन, लक्षणभेद, फल इनको भी जानते हैं अथवा स्वात्माराम योगी भी गोरक्ष- आदि प्रसादसे हटविद्या को जानता है और सबके परम महान् ब्रह्मानेमी इस विद्याका सेवन किया है इसने यह योगीयाज्ञवल्क्य स्मृति प्रमाण है कि, सबसे पुराने योगके वक्ता हिरण्यगर्भ हैं अन्य नहीं हैं और कहना तभी होता है जब मानसव्यापार पहिले होचुका हो।


पुस्तकहठ योग प्रदीपिका पीडीएफ / Hatha Yoga Pradipika PDF
लेखकस्वात्माराम योगीचंद्र
प्रकाशकक्षेमराज श्रीकृष्णदास प्रकाशन
भाषाहिन्दी
कुल पृष्ठ233
आकार49 MB
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