दश महाविद्या तंत्रसार | Dash Mahavidya Tantra Sara Hindi PDF



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दश महाविद्या तंत्रसार पुस्तक | Dash Mahavidya Tantra Sara Hindi Book PDF Download

देवी पार्वती को आद्यभवानी माना जाता है। इनका पाणिग्रहण संस्कार महादेव के साथ इनकी अभिलाषा के अनुरूप ही हुआ था। पार्वती जनक दक्ष ने एक बार यज्ञ किया जिसमें उसने शिवजी को आमन्त्रित नहीं किया। पार्वती को इस यज्ञ की सूचना प्राप्त हुई तो उसने शिवजी से वहाँ जाने का निवेदन किया जिसे उन्होंने अस्वीकार कर दिया। प्रभु की अभिलाषा वहाँ न जाने की जानकर पार्वती स्वयं के जाने की आज्ञा चाही तो शिव ने दक्ष के शत्रुतापूर्ण व्यवहार का ध्यान रखते हुये उन्हें रोक दिया।

अपने शब्दों की बारम्बार अवहेलना देखकर पार्वती ने कहा- आपकी आज्ञा हो या न हो किन्तु मैं वहाँ जाऊँगी। वहाँ जाकर मैं यज्ञ अंश प्राप्त करूँगी। शिव के उन्हें फिरसे समझाने पर पार्वती क्रोधित हो उठी और उन्होंने अपना रौद्र रूप धारण कर लिया। उनके नेत्र क्रोध से फड़फड़ाने लगे। कुछ स्मरण करके शिवजी ने पार्वती माताको ध्यान से देखा तो पार्वती का शरीर क्रोधाग्नि से जल कर काला पड़ता जा रहा था।

उनका ऐसा भीषण रूप देखकर उन्होंने दूर चले जाना उचित समझा होगा, अतः प्रभु वहाँ से चले गये। कुछ दूर जाने पर वे अपने समक्ष एक दिव्य स्वरूप देखकर अचम्भे में पड़ गये। तत्पश्चात् उन्होंने अपने चारो तरफ देखा तो प्रत्येक दिशा में एक विभिन्न देवीय स्वरूप देखकर स्तम्भित हो गये। अचानक उन्हें पार्वती का स्मरण हुआ और उन्होंने सोचा कि कहीं यह सती का प्रताप तो नही। उन्होंने उनसे पूछा- पार्वती ! यह कैसा माया है?




पुस्तकदश महाविद्या तंत्रसार पीडीएफ / Dash Mahavidya Tantra Sara PDF
लेखकयोगिराज यशपाल
प्रकाशकरणधीर प्रकाशन, हरिद्वार
भाषाहिन्दी
कुल पृष्ठ169
आकार17 MB
फाइलPDF
StatusOK


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