ब्रह्मज्ञान और उसकी साधना | Brahmagyan Aur Uski Sadhana PDF


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ब्रह्मज्ञान और उसकी साधना पुस्तक | Brahmagyan Aur Uski Sadhana Book PDF Download

गीता अर्थात् भगवान् श्रीकृष्णका परम मधुर दिव्य संगीत । भागवत-संगीत अर्थात् भगवान्से उत्पन्न समग्र प्रजा के लिए आनन्द, प्रकाश और दिव्य जीवनका अनुभूतिमय सन्देश । यह सात्त्विक - राजस - तामस सम्पूर्ण प्रजा के लिए हितकारी है । स्वधर्ममें निष्ठा, उसका पालन और संवर्द्धन, साथ ही साथ फलकी उपलब्धि इस विद्याकी विशेषता है । भगवान् सच्चिदानन्द अव्यय हैं, उनके वचन के अर्थ भी वे ही हैं ।

आइये, इस संगीतके ताल-स्वरमें ही नहीं, इसके निभृत अन्तरंग में प्रवेश करके देखें कि भगवान् किन दोषों को दूर करना चाहते हैं, हमारे जीवन में किन गुणों का आधान करना चाहते हैं और हमारे अन्दर कौन-सी अपूर्णताएँ, हीनताएँ हैं जिन्हें निकालकर वे हमें सर्वांगपूर्ण बनाना चाहते हैं ।

प्रसंगप्राप्त तेरहवें अध्यायपर ही विचार करें । तेरहवाँ अध्याय एक सीधीसादी सार्वजनीन अनुभूति का अनुवाद करता हुआ प्रारम्भ होता है । शरीर क्षेत्र है और इसका ज्ञाता क्षेत्रज्ञ जड़ और चेतन, यह और मैं, प्रकाश्य और प्रकाशक क्षेत्र का विस्तार अत्यन्त विशाल है । एक नन्हेंसे देह से प्रारम्भ करके प्रकृति पर्यन्त इच्छा, द्वेषादि क्षेत्र के स्वभाव हैं कि विकार हैं, इस प्रपञ्च में पड़ने की आवश्यकता नहीं ।

वे विकार हैं तो भी विकारी होना क्षेत्र का ही स्वभाव है, क्षेत्रज्ञ का नहीं । कोटिकोटि ब्रह्माण्डों के त्रैकालिक उदय-विलय की बोजभूता प्रकृति अपने वृद्धि ह्रास के लिए प्रेरक संस्कार आदिकी अपेक्षा रखती है । वह सर्वथा सापेक्ष ही होती है । बीज केवल सन्मात्र जीवन है । बीज बारसे प्रारम्भ होकर बहिर्मुख- अन्तर्मुख होता रहता है । कर्म और फल बीज में हैं, जीवमें नहीं । क्षेत्र और क्षेत्रज्ञ के हेतुफलात्मक बीज और विवेक के बिना जन्म-मरण रूप संसार से मुक्ति नहीं हो सकती । 

संसार-संसरण, अनेक अवस्थाओं में भटकना, जीवन-मरण, सुख-दुःख यही द्वन्द्वात्मक संसार है । विक्षेप- समाधि भी द्वन्द्व है, साधन- सध्य भी द्वन्द्व है, उपास्य उपासक भी द्वन्द्व है । क्षेत्र- क्षेत्रज्ञ का विवेक द्वन्द्वों से अतीत होने की प्रथम निःस्रेणी है । क्षेत्रज्ञ का शरीर केवल एक देह ही नहीं हैं, सम्पूर्ण प्रकृति और प्राकृत हैं । इसलिए श्रीकृष्ण ने क्षेत्रकी विशाल मर्यादाके अनुसार क्षेत्रज्ञको अपना स्वरूप बताया ।


पुस्तकब्रह्मज्ञान और उसकी साधना पीडीएफ / Brahmagyan Aur Uski Sadhana PDF
लेखकSwami Akhandanand Saraswati
प्रकाशकShrimati Mahendralal Jethi
भाषाहिन्दी
कुल पृष्ठ837
आकार20 MB
फाइलPDF
StatusOK


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